
“द लेंस” के लिए मुंबई से रवि बुले की रिपोर्ट
Bollywood vs south cinema: बीते चार-पांच वर्षों में दक्षिण की फिल्मों ने बॉलीवुड के सामने तगड़ी चुनौतियां पेश की हैं। कहानी, अभिनय और तकनीक हर लिहाज से दक्षिण बीस नजर आ रहा है। वह तेजी से अपनी अलग अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने की तरफ बढ़ चुका है। जबकि बॉलीवुड फिल्में अपनी ही जमीन पर पैर टिकाए रखने का संघर्ष कर रही हैं। आखिर क्यों हुआ ऐसाॽ जानिए…
नवंबर 2021 में ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर फिल्म रिलीज हुई, जय भीम । इसके एक दृश्य में पुलिस अधिकारी बने प्रकाश राज थाने में आने वाले व्यक्ति को इसलिए थप्पड़ मारते हैं कि वह उनसे हिंदी में बात करता है। वह उस व्यक्ति से तमिल में अपनी बात रखने को कहते हैं।
इस पर अच्छा खासा विवाद खड़ा हुआ और लगा कि दक्षिण में जिस तरह से हिंदी का विरोध समय-समय पर सामने आता है, अगर इसे राजनीति की हवा मिली, तो साउथ की फिल्मों के लिए उत्तर भारत की हिंदी पट्टी में दरवाजे बंद भी हो सकते हैं। मगर हुआ उल्टा।
करीब महीने भर बाद, दिसंबर 2021 में पुष्पा नाम की तेलुगू फिल्म बगैर किसी शोर-शराबे और प्रचार के हिंदी में डब करके रिलीज की गई और देखते-देखते जंगल की आग जैसे उसके चर्चे फैल गए। यहां से दक्षिण भारतीय फिल्मों ने उत्तर भारत में नई छलांग भरी और ‘पैन-इंडिया’ शब्द लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा।
ऐसे चढ़ा बुखार

Bollywood vs south cinema: पुष्पा के बाद साउथ की फिल्मों का जो रंग उत्तर भारतीय दर्शकों पर चढ़ा, वह आज बॉलीवुड को मुंह चिढ़ा रहा है। हालांकि पुष्पा से पहले निर्देशक एसएस राजामौली की बाहुबली शृंखला की दो फिल्में धमाका कर चुकी थीं।
बाहुबलीः द बिगनिंग (2015) खत्म होने पर पैदा हुए सवाल ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा’ का जवाब पार्ट-2 (2017) के आने तक हिंदी दर्शकों के साथ आंख-मिचौली खेलता रहा। परंतु 2021 के अंत में आई पुष्पाः द राइज के बाद साउथ के सिनेमा का क्रेज हिंदी पट्टी में नई ऊंचाई पर पहुंच गया।
पुष्पा के बाद आई केजीएफः चैप्टर 2 (कन्नड़ 2022), आरआरआर (तेलुगू 2022), लियो (तमिल 2023) और सालार (तेलुगू 2023) ने हिंदी में 500 करोड़ के ऊपर का बिजनेस किया। फिर 2024 में दिसंबर के जाते-जाते पुष्पा 2: द रूल तेलुगू से हिंदी में डब होकर रिलीज हुई और 800 करोड़ से ऊपर का कलेक्शन किया।
आज यह डब फिल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास की सबसे ज्यादा कमाऊ फिल्म है और मजे की बात यह कि इसके सितारे अल्लू अर्जुन को सही ढंग से हिंदी नहीं आती। जबकि दुनिया भर में पुष्पा 2 की कुल कमाई 1871 करोड़ रुपये रही।
Bollywood vs south cinema : दर्शक साउथ के साथ
खास तौर पर कोविड 19 के दौर में दक्षिण भारत से आने वाली तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम फिल्मों ने हिंदी दर्शकों को ओटीटी पर वह मनोरंजन दिया, जो जमीन से जुड़ा था। जबकि बीते ढाई दशक में बॉलीवुड का हिंदी सिनेमा लगातार अपनी जमीन और अपने दर्शकों से दूर होता गया।
बेसिर-पैर की कहानियां, नकली किरदार, पैसे की चमक-दमक, एनआरआई हीरो-हीरोइन, संगीत का शोर में बदलना, झूठी मार्केटिंग, सितारों का अहंकार, बढ़ा-चढ़ा कर बताए जाने वाले बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के साथ-साथ मल्टीप्लेक्सों के लगातार महंगे होते टिकट हिंदी सिनेमा के पतन का कारण बने।
दूसरी तरफ दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपने देश-समाज की संस्कृति, मिट्टी से जुड़ी कहानियां, समाज में कहानियों की जड़ें, कहानियों में पारिवारिक रिश्ते, अपने-से लगते किरदार, उन्नत तकनीक और दक्षिण भारतीय सितारों की सहजता हिंदी के दर्शकों को आकर्षित करती गई।
हिंदी के दर्शकों ने महसूस किया कि दक्षिण भारतीय फिल्में न केवल ज्यादा मनोरंजक हैं, बल्कि उनके जीवन के नजदीक भी हैं। नतीजा यह कि कोविड काल में ओटीटी के साथ दक्षिण की फिल्में हिंदी सिनेमा के दर्शकों का अनिवार्य हिस्सा बन गईं।
अपनी अलग पहचान

Bollywood vs south cinema: बीते पांच साल में साउथ की सैकड़ों फिल्में हिंदी में डब हुईं। दर्जनों हिंदी के बॉक्स ऑफिस पर आईं। इनमें ब्लॉक बस्टर होकर करोड़ों कमाने वाली फिल्मों के अलावा भी तमाम फिल्में बहुत पसंद की गईं।
जय भीम, असुरन, मिन्नल मुरली, कांतारा, कार्तिकेय 2, सीता रामम, मंजुमल बॉय्ज, कल्कि 2898 एडी, महाराजा, हनुमान, आदुजीविथमः द गोट लाइफ, प्रेमालु, आवेशम, लकी भास्कर, मियाझगन और मार्को से लेकर ऑल वी इमेजन एज लाइट जैसी साउथ की फिल्मों ने देश के साथ-साथ विदेश में भी धूम मचाई। कोरोना पश्चात काल में एक बड़ी घटना यह हुई कि बॉलीवुड की अंतरराष्ट्रीय पहचान को साउथ के सिनेमा ने धीरे-धीरे हथियाना शुरू कर दिया।
खास तौर पर आरआरआर के ऑस्कर तक धमक जमाने और वहां मौलिक संगीत के लिए ट्रॉफी जीतने के साथ, यह संदेश बाहर जाने लगा कि भारत की सारी फिल्में बॉलीवुड का प्रतिनिधित्व नहीं करती। तमिल-तेलुगू के साथ खास तौर पर मलयालम ने अपनी पहचान पुख्ता की है। खास तौर पर ओटीटी के माध्यम से।
Bollywood vs south cinema : मजबूत उपस्थिति
बीते वर्षों में हिंदी के दर्शकों ने इस बात को स्पष्ट समझ लिया कि दक्षिण भारत का सिनेमा न केवल बॉलीवुड फिल्मों से पूरी तरह अलग है, बल्कि वहां भी भाषाई सिनेमा की अपनी-अपनी अलग विशेषताएं हैं। आज स्पष्ट है कि तेलुगू फिल्में लार्जर दैन लाइफ, एक्शन और सिने-मसालों से भरपूर होती हैं। जबकि तमिल का सिनेमा कहीं सामाजिक-पारिवारिक लीक पर चलता है।
मलयालम फिल्मों की पहचान उसकी अनोखी, संवेदनशील और प्रयोगात्मक कहानियों के लिए है, जो दर्शकों के दिलों में उतर जाती है। वहीं कन्नड़ फिल्में इन सबके बीच ठोस आकार लेती नजर आ रही हैं। 2018 में आई केजीएफः पार्ट 1 ने कन्नड़ सिनेमा में पहली बार 100 करोड़ रुपये कमाई की सीमा रेखा को लांघते हुए 250 करोड़ का आंकड़ा छुआ।
इसके बाद केजीएफः पार्ट 2 ने वर्ल्ड वाइड कलेक्शन में 1,250 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड बनाया। इस बीच कांतारा, 777 चार्ली और विक्रांत रोना जैसी कन्नड़ फिल्मों ने भी वैश्विक और हिंदी दर्शकों के बीच अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई।
बॉक्स ऑफिस बिजनेस में गिरावट

दक्षिण के फिल्मी उभार ने बॉलीवुड को तगड़ा झटका दिया। हालांकि बॉलीवुड के कई दिग्गज मानते हैं कि यह एक दौर है और जल्द ही बीत जाएगा। असली समस्या यह है कि एक तरफ साउथ का सिनेमा नई ऊंचाइयां छू रहा है, वहीं बॉलीवुड पतन की राह पर दिख रहा है।
कलात्मकता को छोड़ कर उसने बीते बरसों में बॉक्स ऑफिस को ही पैमाना माना। यही पैमाना अब उसकी ढलान की गवाही दे रहा है। 2024 के आंकड़े बता रहे हैं कि अव्वल तो बॉलीवुड का बॉक्स ऑफिस बिजनेस 2023 के मुकाबले गिरा, दूसरी तरफ हिंदी की टिकट खिड़की के कलेक्शन में भी डब फिल्मों की हिस्सेदारी बढ़ गई है।
2023 में बॉलीवुड की कुल बॉक्स ऑफिस कमाई 5,380 करोड़ रुपये थी। जो 2024 में घट कर 4,679 करोड़ रह गई। इस कमाई में भी 37 फीसदी हिस्सा साउथ की डब फिल्मों से आया था। यानी 3,215 करोड़ रुपये हिंदी फिल्मों ने कमाए और 1,464 करोड़ रुपये दक्षिण की हिंदी डब फिल्मों ने टिकट खिड़की पर इकट्ठा किए। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा पुष्पा 2 और कल्कि 2098 एडी का है।
Bollywood vs south cinema: सब चंगा तो नहीं मगर…
बॉलीवुड में बन रही हिंदी फिल्मों की बिगड़ती स्थिति के बीच ऐसा नहीं है कि साउथ में सब चंगा ही है। तमिल सिनेमा के लिए 2024 बड़ा झटका देने वाला रहा है। उसकी 223 फिल्में फ्लॉप रही और तमिल फिल्म उद्योग को 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा हुआ। सूर्या की कंगुवा, कमल हासन की इंडियन 2 और रजनीकांत की वैट्टेयन जैसी अत्यंत बड़े बजट की फिल्में धराशायी हो गई।
हिंदी में भी इन्हें किसी नहीं पूछा। कई मलयालम फिल्मों को पैन-इंडिया तारीफ मिलने के बावजूद वहां भी घबराहट है। मलयालम की 204 रिलीज फिल्मों में से केवल 26 को बॉक्स ऑफिस सफलता मिली। इस इंडस्ट्री को 2024 में करीब 700 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
हालांकि अच्छी बात यह है कि 2023 के मुकाबले भारतीय सिनेमा में 2024 में मलयालम फिल्मों का बॉक्स ऑफिस शेयर 10 फीसदी बढ़ गया। पहली बार मलयालम का ग्लोबल कलेक्शन 1000 करोड़ रुपये से ऊपर गया। साथ ही सिनेमाघरों में मलयालम फिल्मों को देखने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ। 2023 में जहां 6.7 करोड़ दर्शक मलयालम फिल्मों के लिए थिएटर में पहुंचे थे, वहीं 2024 में उनकी संख्या 12.6 करोड़ थी।
इस साल उम्मीदें
Bollywood vs south cinema : 2025 बॉलीवुड के साथ-साथ साउथ के सिनेमा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 2025 की पहली तिमाही बीत चुकी है और बॉलीवुड में विक्की कौशल स्टारर छावा (600 करोड़ से अधिक) को छोड़कर कोई फिल्म कमाल नहीं कर पाई है। यहां तक कि सलमान खान की ईद पर रिलीज हुई सिकंदर भी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी और फ्लॉप रही।
इसके अतिरिक्त फतेह, इमरजेंसी, आजाद, स्काई फोर्स, देवा, मेरे हस्बैंड की बीवी, बैडएस रवि कुमार और द डिप्लोमेट जैसी फिल्में बड़े नामों की मौजूदगी में भी टिकट खिड़की पर कोई कमाल नहीं दिखा पाईं। फिलहाल बॉक्स ऑफिस पर जाट (सनी देओल) पर सबकी नजरें हैं। आने वाली दिनों में केसरीः चैप्टर 2 (अक्षय कुमार), रेड 2 (अजय देवगन), जॉली एलएलबी 3 (अक्षय कुमार), हाउसफुल 5 (मल्टी स्टारर) और वार 2 (ऋतिक रोशन) से उम्मीदें लगाई जा रही हैं।
जबकि साउथ की जिन फिल्मों का इंतजार हो रहा है उनमें रजनीकांत की कुली, कमल हासन की ठग लाइफ, ऋषभ शेट्टी की कांतारा पार्ट 2, विजय की थलपति 69, सूर्या की रेट्रो, प्रभास की राजा साहब, यश की टॉक्सिक, विष्णु मांचू की मल्टी स्टारर कणप्पा, चिरंजीवी की विश्वांभर, पवन कल्याण की हरि हर वीर मल्लूः पार्ट 1 शामिल हैं। यह सभी हिंदी में भी डब होकर रिलीज होंगी। समझा जा सकता है कि बॉलीवुड फिल्मों को साउथ से कैसी टक्कर मिलने जा रही है।
बॉलीवुड चला साउथ

हकीकत यही है कि पैन-इंडिया फिल्मों के मार्केट में साउथ का असर बढ़ रहा है। साउथ की फिल्में डब होकर हिंदी में आ रही हैं और यही वजह है कि आज टीवी पर 70 फीसदी इनका प्रसारण हो रहा है और 30 फीसदी बॉलीवुड फिल्में बची हैं। बॉलीवुड भले ही खुल कर इस बात को स्वीकार करने से हिचक रहा है, मगर सच यही है कि हिंदी के तमाम सितारे साउथ के निर्देशकों के साथ काम करने के मौके तलाश रहे हैं।
शाहरुख-सलमान-आमिर-अक्षय-अजय-ऋतिक ये सभी या तो साउथ के निर्माता-निर्देशकों के साथ काम कर रहे हैं या फिर इनकी फिल्मों की कहानियों के कनेक्शन तथा सहयोगी कलाकार आज साउथ से आ रहे हैं। कभी बॉलीवुड फिल्मों में नई लकीर खींचने की कोशिश करने वाले अनुराग कश्यप तो मुंबई छोड़कर सीधे साउथ ही चले गए। नए साल में उन्होंने मुंबई छोड़कर हैदराबाद को नया ठिकाना बना लिया।
इमरान हाशमी साउथ में विलेन बनकर आने वाले हैं। बॉबी देओल और संजय दत्त साउथ में विलेन की पारी को जमाने की तैयारी में हैं। अमिताभ बच्चन और सैफ अली खान भी साउथ में पूरी दिलचस्पी ले रहे हैं।
दीपिका पादुकोण, जाह्नवी कपूर, दिशा पटानी और कियारा आडवाणी तमिल-तेलुगु फिल्में कर रही हैं। हॉलीवुड से लौटीं प्रियंका चोपड़ा मोस्ट-वांटेड डारेक्टर एस.एस. राजामौली की अगली फिल्म में महेश बाबू के अपोजिट काम कर रही हैं।
विकल्प कम नहीं
भारतीय सिनेमा में आने वाला समय निश्चित ही काफी उथल-पुथल भरा है क्योंकि भाषा की सीमाएं टूट रही हैं। ऐसे में बॉलीवुड के सामने रीजनल यानी क्षेत्रीय कहे जाने वाले सिनेमा और खास तौर पर दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों के मुकाबले खुद को बीस साबित करने की बड़ी चुनौती है।
मगर फिलहाल जिस तरह की फिल्में हिंदी में बन रही हैं, निर्माता-निर्देशकों का जो रवैया दिख रहा है, जिस तरह से बॉक्स ऑफिस पर सितारों का मार्केट धुंधला पड़ रहा है… वह बॉलीवुड के लिए अच्छी खबर तो नहीं है। हिंदी के फिल्मकारों को जमीन से जुड़ने और अपने दर्शकों की नब्ज को गौर से पढ़ने की जरूरत है। वर्ना दर्शकों के पास आज विकल्पों की कोई कमी नहीं है।
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