द लेंस ब्यूरो। सत्रह साल पहले 26 नवंबर 2008 को मुंबई को दहला देने वाले आतंकी धमाकों से जुड़े तहव्वुर राणा को भारत लाने में देश की जांच एजेंसियों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है। अमेरिका में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद राणा की वापसी ने आतंकी धमाके के जख्मों को हरा कर दिया है। फिर भी अभी सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या उसे सजा मिल पाएगी? क्या उन धमाकों के पीड़ितों को सही मायने में न्याय मिल पाएगा? राणा की वापसी कूटनीतिक रूप से बड़ी जीत तो है, लेकिन अब भी ऐसे कई अपराधी हैं, जिन्होंने विदेशों में पनाह ले रखी है। मामला सिर्फ आतंकवाद का नहीं है, आर्थिक आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले भी कई भगोड़े और सटोरियों का भी है, आखिर उनकी वापसी कब होगी? उनके प्रत्यर्पण के रास्ते में कैसी मुश्किलें हैं आइये इसे समझने की कोशिश करते हैं…..
सुर्खियों में: तहव्वुर राणा की वापसी
आज अप्रैल को नई दिल्ली के हवाई अड्डे पर एक खास विमान उतरा, इसमें सवार था तहव्वुर हुसैन राणा, वह शख्स जिस पर 2008 के मुंबई आतंकी हमले की साजिश में शामिल होने का इल्ज़ाम है। 166 लोगों की जान लेने वाले उस काले दिन की साजिश में शामिल राणा को अमेरिका से भारत लाने में छह साल लगे। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की टीम ने उसे लॉस एंजिल्स से हिरासत में लिया और अब वह दिल्ली की जेल में है। भारत के वांछित हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा के साथ उसकी साठगाँठ और डेविड हेडली को मदद देने के आरोपों का सामना करते हुए क्या वह आतंक के बड़े राज़ खोलेगा? यह सवाल हर भारतीय के मन में है।
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यह जीत भारत के लिए बड़ी है लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है। चलिए देखते हैं कि भारत ने किन-किन भगोड़ों को पकड़ा और कौन अभी भी कानून से आँखमिचौली खेल रहा है –
भारत की कूटनीतिक जीत: जब भगोड़े भारत के जाल में आए
भारत ने अपने प्रत्यर्पण संधि के तहत सफलताएं हासिल कीं हैं। यहाँ कुछ नाम हैं, जिन्हें वापस लाकर भारत ने दुनिया को अपनी ताकत दिखाई:
आतंक के सौदागर

अजमल कसाब – 26/11 मुंबई हमले का एकमात्र जीवित आतंकी अजमल कसाब था, जिसने लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित लड़ाके के रूप में 2008 में 166 लोगों की जान ली। हमले के दौरान मुंबई में पकड़े गए कसाब को चार साल तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद 21 नवंबर, 2012 को पुणे की यरवदा जेल में फाँसी दी गई। हालाँकि वह प्रत्यर्पण का मामला नहीं था, उसकी सजा ने दुनिया को दिखाया कि भारत आतंक के खिलाफ कितना गंभीर है।



अपराध की दुनिया



मनी लॉन्ड्रिंग के केस




अधूरी लड़ाई: भगोड़े जो अभी दूर हैं
कई बड़े नाम अभी भी भारत की पकड़ से बाहर हैं। फिलहाल भारत के सामने कई चुनौतियां हैं
प्रमुख फरार आतंकी




मनी लॉन्ड्रिंग के मुख्य फरार आरोपी





अपराध और आतंक के प्रमुख फरार आरोपी



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आंकड़ों में प्रत्यर्पण: भारत की ताकत और अधूरी राह
भारत का प्रत्यर्पण अभियान कुछ ठोस आँकड़ों के साथ अपनी ताकत और चुनौतियों को बयाँ करता है। विदेश मंत्रालय (MEA, 2025 तक) के अनुसार भारत ने 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण समझौते कर रखे हैं जो भारत की कूटनीतिक विदेश नीति की मिसाल हैं। इन संधियों की बदौलत 2002 से लेकर अब तक 70 से ज्यादा भगोड़ों को भारत वापस लाया जा चुका है जिसमें से 13 आतंकवाद से जुड़े मामले हैं (NIA डेटा, 2024)। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी गंभीर है। लोकसभा में दिसंबर 2024 के सत्र के दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि पिछले पाँच वर्षों में भारत ने 178 प्रत्यर्पण अनुरोध किए जिनमें से 65 अनुरोध अकेले अमेरिका में लंबित हैं। यह आँकड़ा भारत के सामने खड़ी चुनौती को उजागर करता है क्योंकि कुल 178 बड़े अपराधी अभी भी विदेशों में छिपे हैं। गृह मंत्रालय की 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 30% से ज्यादा मामले मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े हैं जबकि 25% आतंकवाद से।
कूटनीति का जाल: 48 संधियाँ,12 सहमतियाँ
भारत का कानून अब सीमाओं को नहीं मानता। अपराधियों को पकड़ने की यह जिद भारत की प्रत्यर्पण संधियों से मुमकिन हो रही है जो आतंकवाद से लेकर आर्थिक घोटालों तक हर मोर्चे पर लड़ाई लड़ रही हैं। विदेश मंत्रालय (MEA) के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2025 तक भारत ने 48 देशों के साथ औपचारिक प्रत्यर्पण संधियाँ की हैं और 12 अन्य देशों के साथ सहमति व्यवस्थाएँ बनाई हैं।
12 देशों, जैसे श्रीलंका, सिंगापुर, और एंटीगुआ के साथ भारत की औपचारिक संधि नहीं, मगर सहमति है। इन व्यवस्थाओं ने भी भगोड़ों को वापस लाने में मदद की हालाँकि प्रक्रिया में वक्त लगता है। मेहुल चोकसी का मामला एंटीगुआ में अभी भी अटका है।
ये संधियाँ भारत की विदेश नीति की दूरदर्शिता का नतीजा हैं। आतंकवाद पर अमेरिका और जर्मनी, आर्थिक अपराधों पर UAE, और पड़ोसी खतरों पर बांग्लादेश के साथ सहयोग भारत की रणनीति को दिखाता है। गृह मंत्रालय का अनुमान है कि 2002 से अब तक 70 से ज़्यादा भगोड़े इन संधियों के दम पर पकड़े गए। लेकिन चुनौतियाँ भी हैं, पाकिस्तान के साथ संधि न होने से दाऊद और हाफिज सईद अभी भी फरार हैं।
पाकिस्तान का इनकार, ब्रिटेन में कानूनी पेंच, और कनाडा के साथ तनाव (अर्श दल्ला का मामला) भारत के सामने बड़ी दीवारें हैं। कूटनीति की पेचीदगियाँ और देशों के बीच तनाव इस राह को मुश्किल बनाते हैं। फिर भी हर सफलता चाहे वह तहव्वुर राणा हो या अबू सलेम, दुनिया को बताती है कि भारत हार नहीं मानता। क्या यह भारत को वैश्विक मंच पर और ताकतवर बनाएगा? इसका जवाब आने वाला वक्त देगा।