द लेंस डेस्क। टेलीक़ॉम कंपनी वोडाफोन आईडिया (वी) में सरकार ने इसमें अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली है। अब सरकार का हिस्सा 22.6 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 49 प्रतिशत हो गया है। वोडाफोन आइडिया (Vi) लंबे वक्त से कर्ज के बोझ तले दबी हुई है। कंपनी पर करीब 2.16 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, जिसमें से ज्यादातर हिस्सा सरकार को स्पेक्ट्रम और AGR (Adjusted Gross Revenue) के बकाये के रूप में देना है। 31 मार्च 2025 को कंपनी ने ऐलान किया कि सरकार इसके 36,950 करोड़ रुपये के बकाये को इक्विटी में बदल रही है। मतलब, ये पैसा अब सरकार को शेयरों के रूप में दिया जाएगा, जिसके लिए 3,6950 करोड़ शेयर 10 रुपये प्रति शेयर की कीमत पर जारी किए गए हैं। इस कदम से सरकार की हिस्सेदारी 22.6% से बढ़कर 48.99% हो गई है, और वो अब कंपनी की सबसे बड़ी शेयरहोल्डर बन गई है।
दूसरी बार कर्ज को इक्विटी में बदला
ये दूसरी बार है जब सरकार ने Vi के कर्ज को इक्विटी में बदला है। पहली बार फरवरी 2023 में 16,133 करोड़ रुपये का कर्ज इक्विटी में कन्वर्ट किया गया था, तब सरकार का हिस्सा 33 प्रतिशत तक पहुंचा था। लेकिन इस बार हिस्सेदारी और बढ़ गई। हालांकि, ऑपरेशनल कंट्रोल अभी भी प्राइवेट प्रमोटर्स – यूके की वोडाफोन ग्रुप और भारत की आदित्य बिड़ला ग्रुप के पास रहेगा।
आदित्य बिड़ला ग्रुप का हिस्सा घटा
ये कदम सितंबर 2021 के टेलिकॉम रिफॉर्म्स पैकेज का हिस्सा है, जिसके तहत सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों को राहत देने के लिए उनके बकाये को इक्विटी में बदलने का ऑप्शन दिया था। Vi के लिए ये जरूरी था, क्योंकि सितंबर 2025 से उसकी मोरेटोरियम अवधि खत्म होने वाली है, और तब उसे हर साल करीब 43,000 करोड़ रुपये के भुगतान शुरू करने पड़ते। अब इस कन्वर्जन से उसका सालाना बोझ घटकर 17,000 करोड़ रुपये तक आ जाएगा, जो कंपनी को थोड़ी राहत देगा।
कौन-कौन वोडाफोन के साथ जुड़ा?
वोडाफोन की भारत में कहानी 1990 के दशक से शुरू होती है, और इसने कई कंपनियों के साथ पार्टनरशिप की है।
हचिसन मैक्स टेलिकॉम
वोडाफोन ने भारत में एंट्री 1992 में हचिसन मैक्स टेलिकॉम के साथ की। ये हॉन्गकॉन्ग की हचिसन व्हामपोआ की सब्सिडियरी थी। 2000 तक इस जॉइंट वेंचर में वोडाफोन ने 33% हिस्सा खरीदा। 2005 में इसका नाम बदलकर हचिसन एल्सार (Hutchison Essar) हो गया, जिसमें भारत की एल्सार ग्रुप भी पार्टनर थी। 2007 में वोडाफोन ने हचिसन का पूरा 67% हिस्सा 11.5 बिलियन डॉलर में खरीद लिया, और कंपनी का नाम वोडाफोन इंडिया हो गया।
एल्सार ग्रुप (2005-2011)
हचिसन एल्सार में एल्सार की 33% हिस्सेदारी थी। जब वोडाफोन ने हचिसन को खरीदा, तो एल्सार पार्टनर बना रहा। 2011 में एल्सार ने अपनी हिस्सेदारी 5.46 बिलियन डॉलर में वोडाफोन को बेच दी, और इस तरह वोडाफोन इंडिया पूरी तरह वोडाफोन ग्रुप की हो गई।
आदित्य बिड़ला ग्रुप (2018 से अब तक)
2016 में रिलायंस जियो की एंट्री से टेलिकॉम मार्केट में हलचल मच गई। वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेल्युलर (आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी) ने 2018 में मर्जर का फैसला किया। इससे वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (Vi) बनी। मर्जर के बाद वोडाफोन ग्रुप की 45.1% और आदित्य बिड़ला ग्रुप की 26% हिस्सेदारी थी। बाकी पब्लिक शेयरहोल्डर्स के पास था। ये पार्टनरशिप आज भी चल रही है, हालांकि सरकार की बढ़ती हिस्सेदारी से दोनों का शेयर कम हो गया है।
अन्य ग्लोबल पार्टनरशिप्स
वोडाफोन ने ग्लोबल लेवल पर भी कई टाइअप किए, जैसे अफ्रीका में अफ्रीमैक्स (2016-17), रूस में MTS (2008), और मिस्र में टेलिकॉम मिस्र (2006) के साथ। लेकिन भारत में उसकी मुख्य पार्टनरशिप ऊपर बताई गई कंपनियों के साथ रही।
अब आगे क्या होगा ?
ये कदम Vi को फाइनेंशियल सांस लेने का मौका देगा, लेकिन चुनौतियां बाकी हैं। कंपनी को 4G नेटवर्क बढ़ाने और 5G में निवेश के लिए अभी भी तगड़ा फंड चाहिए। कुछ ब्रोकरेज (जैसे Citi Research) इसे पॉजिटिव मानते हैं और शेयर प्राइस टारगेट 12 रुपये रखते हैं, पर कई विश्लेषकों का कहना है कि बिना नई पूंजी के Vi की हालत सुधरना मुश्किल है। शेयर प्राइस में भी उतार-चढ़ाव जारी है – 1 अप्रैल 2025 को 26% उछाल के बाद 8 अप्रैल तक ये 7.17 रुपये पर था।