अमेरिकी टैरिफ को अर्थव्यवस्था को चौपट करने वाला बता रहे ज्यादातर विशेषज्ञ, जीडीपी प्रभावित होने की आशंका, विदेशी मुद्रा भंडरा पर पड़ेगा प्रभाव
आवेश तिवारी
दिल्ली। चार दिनों पहले की ही तो बात है, अमेरिका से भारत व्यापारिक समझौते के लिए आया प्रतिनिधमंडल सकारात्मक बातचीत का सन्देश देकर वापस लौटा है। दरअसल पिछले सप्ताह ख़त्म हुई भारत और अमेरिका के बीच पहले दौर की द्विपक्षीय बातचीत के बाद वाणिज्य मंत्रालय द्वारा कहा जाने लगा कि टैरिफ को लेकर फंसी गुत्थी अंततः सुलझा ली जायेगी लेकिन हुआ उल्टा।
अपने अविश्वसनीय निर्णयों को लेकर चर्चित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को अपना अच्छा दोस्त बताते हुए कहा कि भारत क्रूरता के साथ सबसे ज्यादा टैक्स वसूल करने वाले देशों में से एक है और फिर बीती रात भारत समेत 180 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी । ट्रंप, ने भारत पर 26 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। एक तरफ विशेषज्ञ इसे भारत की आर्थिक रीढ़ को छिन्न भिन्न करने वाला बता रहे हैं वहीँ दूसरी तरह ऐसे लोग भी हैं जिनका कहना है कि इससे भारत को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा ।
खतरनाक है यह टैरिफ का दंश
दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिकी के जाने माने प्रोफ़ेसर दिब्येंदु मैती कहते हैं कि यह गंभीर स्थिति है। इससे भारत में रोजगार से जुड़े तमाम उद्योगों की निर्माण क्षमता और उत्पादन क्षमता दोनों प्रभावित होगी। दिब्येंदु कहते हैं कि जिन जगहों पर छूट दी गई है भले वो सेमीकंडक्टर हों या फार्मा वहाँ रोजगार नहीं हैं। दिब्येंदु कहते हैं कि मुझे समझ में नहीं आता कि प्रधानमन्त्री मोदी ने अमेरिका जाकर क्या बातचीत की थी, या फिर द्विपक्षीय बातचीत में क्या हुआ ?
तात्कालिक संकट से इनकार
बहुराष्ट्रीय कंपनी पैडेको के भारतीय चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर विभव जोशी लेंस से बातचीत में कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि इससे हिंदुस्तान पर कोई तात्कालिक संकट आएगा। विभव कहते हैं कि आप खुद देखिये एल एंड टी जैसा अर्थव्यवस्था को संसूचित करने वाला स्टॉक सवा परसेंट ऊपर है, सब चंगा है। वह कहते हैं कि मंदी की कोई अपरिहार्य स्थिति आएगी ऐसा नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि अमेरिका को पता है कि नुकसान उसका भी होगा ।
बातचीत से समाधान की आस
भारत अमेरिका वाणिज्य संबंधों पर गहरी पकड़ रखने वाले अभिजित दास कहते हैं कि दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच की अध्यक्षता वाला दल आने वाले हफ्तों में बीटीए के तहत क्षेत्रीय विशेषज्ञ-स्तरीय वर्चुअल बैठकें करने पर सहमत है, मुझे लगता है कि जब बातचीत होगी तो समस्या का समाधान भी होगा ।
जीडीपी में गिरावट का डर
बढ़े हुए टैरिफ को लेकर चिंताएं भी हैं संतोष गुप्ता विदेशी व्यापार मामलों के विशेषज्ञ हैं और पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। संतोष कहते हैं कि ट्रंप के ऐलान का बेहद दूरगामी असर पड़ने वाला है अगले वर्ष हमारे जीडीपी में इससे लगभग 0.5 फीसदी की अतिरिक्त गिरावट आएगी। संतोष कहते हैं कि जो सबसे बड़ा नुकसान होगा वह विदेशी मुद्रा का होगा क्योंकि अब आयात पहले से काफी कम होगा। संतोष कहते हैं कि इस स्थिति से घरेलु उद्योगों को बढ़ावा देकर निपटा जा सकता था, लेकिन सरकार ने शुरू से घरेलु उद्योगों को तरजीह नहीं दी।
जवाब और भी हैं
विदेशी मामलों की जानकार कादम्बिनी शर्मा कहते हैं कि जब ट्रेड टॉक चल रहे हों तो किसी निर्णय पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। आप कैसे कह सकते हैं कि यह टैरिफ 26 फीसदी ही होगा। बातचीत के बाद यह 5 फीसदी पर आ जाए। दूसरी बात घरेलू राजनीति के फ्रेम में वैश्विक राजनीति को नहीं देखना चाहिए कादम्बिनी कहती हैं कि आप बताइये कि इस टैरिफ की बढ़ोत्तरी से अमेरिका क्या हासिल कर लेगा ? कितने लोग हार्ले डेविडसन खरीदते हैं। कितने टेस्ला की कार खरीदेंगे? कादम्बिनी कहती हैं मत भूलिए टैरिफ की यह व्यवस्था अस्थायी है।