द लेंस डेस्क।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “रेसिप्रोकल टैरिफ” नीति ने वैश्विक व्यापार और बाजारों को हिलाकर रख दिया है। इस नीति के तहत, ट्रंप ने घोषणा की है कि जो देश अमेरिका पर टैरिफ लगाएंगे, उन्हें उसी अनुपात में जवाबी टैरिफ झेलना होगा। 2 अप्रैल, 2025 को लागू इस फैसले ने न केवल व्यापारिक संतुलन को प्रभावित किया है बल्कि भारत सहित दुनियाभर के बाजारों और मुद्राओं पर गहरा असर डाला है। शेयर बाजारों में गिरावट, तेल की कीमतों में उछाल और रुपये की कमजोरी ने एक नए आर्थिक संकट की आशंका को जन्म दिया है।
वैश्विक बाजारों पर असर
ट्रंप के टैरिफ फैसले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर दिया है। प्रमुख बाजारों पर इसका प्रभाव दिखायी दिया –
अमेरिकी बाजार
वॉल स्ट्रीट में डाउ जोन्स इंडेक्स में 2 अप्रैल को 800 अंकों की गिरावट दर्ज की गई।
निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ी क्योंकि टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए आयातित सामान महंगा हो सकता है।
यूरोपीय बाजार
यूरोप के FTSE 100 और DAX जैसे सूचकांकों में 3-4% की गिरावट देखी गई।
यूरो की कीमत में अस्थिरता बढ़ी, जो 1.08 डॉलर के आसपास मंडरा रही है।
एशियाई बाजार
जापान का निक्केई 225 और चीन का शंघाई कंपोजिट 5% तक लुढ़क गए।
तेल की कीमतें बढ़ने से एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ा क्योंकि ये देश बड़े आयातक हैं।
भारतीय बाजार
गुरुवार को 3 अप्रैल को जैसे ही बाजार खुला तो ट्रम्प के फैसले का प्रभाव सेंसेक्स और निफ़्टी में भी दिखाई दिया, सेंसेक्स में दोपहर 12 बजे तक 240 अंक की गिरावट देखी गयी
फार्मा, ऑटो और टेक्सटाइल जैसे निर्यात-निर्भर सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
भारत पर आर्थिक प्रभाव
भारत, अमेरिका के साथ 200 अरब डॉलर का व्यापार करता है, इस टैरिफ वॉर से भारत सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है।
निर्यात पर संकट
भारत अमेरिका को फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और ऑटो पार्ट्स का बड़ा निर्यातक है।
10% टैरिफ से इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।
आयात लागत में वृद्धि
भारत अमेरिका से इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी आयात करता है। टैरिफ वॉर से ये सामान महंगे होंगे, जिसका असर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ेगा।
तेल की कीमतों का दबाव
टैरिफ वॉर से वैश्विक अनिश्चितता बढ़ी, जिसके चलते ब्रेंट क्रूड की कीमत 73 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई।
भारत अपने तेल का 80% आयात करता है, यह महंगाई का बड़ा कारण बन सकता है।
रुपये पर असर
ट्रंप के टैरिफ फैसले ने भारतीय रुपये को भी कमजोर किया है। 2 अप्रैल को रुपया 84.50 प्रति डॉलर के स्तर तक लुढ़क गया, जो पिछले छह महीनों का सबसे निचला स्तर है। निवेशकों ने सुरक्षित संपत्तियों (जैसे डॉलर) की ओर रुख किया, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा। तेल और अन्य आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ने से भारत का चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ सकता है जो रुपये को और कमजोर करेगा।
आरबीआई की भूमिका
भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपये को संभालने के लिए हस्तक्षेप शुरू किया है। आरबीआई ने 2 अप्रैल को 1 अरब डॉलर से ज्यादा की बिक्री की। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर टैरिफ वॉर लंबा चला तो रुपया 85 के पार जा सकता है। आरबीआई के पास 650 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो रुपये को संभालने में मदद कर सकता है लेकिन यह लंबे समय तक कारगर नहीं होगा।
भारत और विश्व के लिए चुनौतियां
शेयर बाजारों में अस्थिरता और रुपये की कमजोरी से निवेशक सतर्क हो गए हैं। तेल और आयातित सामानों की कीमतें बढ़ने से महंगाई का खतरा मंडरा रहा है।अगर टैरिफ वॉर जारी रहा, तो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी, जिससे भारत जैसे देशों का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ठप हो सकता है।भारत के लिए यह अवसर भी है। अगर वह अमेरिका के लिए चीन का विकल्प बन सके तो निर्यात बढ़ सकता है।रुपये की कमजोरी, महंगाई का खतरा और बाजारों में अस्थिरता से निपटने के लिए भारत को सधी हुई रणनीति अपनानी होगी।