हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है, जो न सिर्फ जागरूकता का मंच है, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी है जो ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के साथ जी रहे हैं। साल 2025 में यह दिन तकनीकी प्रगति, भावनात्मक जुड़ाव और सामाजिक समावेशन के साथ एक नया अध्याय शुरू करने का वादा करता है। भारत में, जहाँ ऑटिज़्म के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं, यह दिन हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम कैसे तकनीक और प्यार के जरिये इन खास व्यक्तियों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस 2025 : वैश्विक स्थिति- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में हर 100 बच्चों में से 1 को ऑटिज़्म है। इंडियन जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स (2023) के अध्ययन के मुताबिक, भारत में हर 68 बच्चों में से 1 ऑटिज़्म से प्रभावित है। शहरी क्षेत्रों में यह संख्या अधिक है जो बेहतर निदान की ओर इशारा करती है।
2025 तक भारत में ऑटिज़्म के मामलों में 10-15% बढ़ोतरी की संभावना है जो जागरूकता और डायग्नोस्टिक सुविधाओं के विस्तार का परिणाम हो सकता है। ऑटिज़्म लड़कों में लड़कियों से 4 गुना ज़्यादा देखा जाता है यानी 80% प्रभावित बच्चे लड़के हैं। भारत में औसत निदान उम्र 3-5 साल है, जबकि विकसित देशों में यह 2 साल से कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर और भी बड़ा है।
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आज का युग तकनीक का है और यह ऑटिज़्म से जूझ रहे बच्चों और बड़ों के लिए एक वरदान बनकर उभरा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बच्चों के चेहरे के भाव और आवाज़ को समझकर उनकी भावनाओं को डिकोड कर रहा है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (2024) के एक अध्ययन के अनुसार, AI टूल्स ने संचार कौशल में 25-30 फीसदी सुधार किया है।
विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस 2025 : भारत में “AutiSense” जैसे ऐप्स2024 तक 10,000 से ज़्यादा परिवारों तक पहुँचे हैं। वर्चुअल रियलिटी बच्चों को सुरक्षित माहौल में सामाजिक कौशल सिखा रही है। जर्नल ऑफ ऑटिज़्म एंड डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (2023) के मुताबिक VR थेरेपी से सामाजिक कौशल में 28-35 फीसदी सुधार हुआ।
दिल्ली में 2024 के एक पायलट प्रोजेक्ट में 50 बच्चों पर किए गए परीक्षण में 70 फीसदी ने आत्मविश्वास में बढ़ोतरी दिखाई। स्मार्टवॉच और अन्य डिवाइसेज तनाव को मॉनिटर कर रहे हैं। 2024 तक इनका उपयोग 15% बढ़ा है, और भारत में भी यह धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है।
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भारत में ऑटिज़्म की राह आसान नहीं है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (2023) के सर्वे के अनुसार, शहरी भारत में 60% लोग ऑटिज़्म को जानते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा सिर्फ 20% है। केवल 5% स्कूलों में ऑटिस्टिक बच्चों के लिए विशेष सुविधाएँ हैं हालांकि सरकार का लक्ष्य 2025 तक इसे 15% तक ले जाना है।
प्रति 10,000 ऑटिस्टिक व्यक्तियों पर केवल 1 प्रमाणित थेरेपिस्ट है, जो वैश्विक औसत (1:1,000) से कहीं कम है लेकिन उम्मीद अभी बाकी है। तकनीक और जागरूकता अभियान इस अंतर को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। ऑटिज़्म सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, यह उन परिवारों और व्यक्तियों की कहानी है जो हर दिन एक नई लड़ाई लड़ते हैं।
ऑटिज़्म से प्रभावित 15 साल का आरव, उसने कोडिंग सीखकर एक ऐसा ऐप बनाया जो बच्चों को भावनाएँ समझने में मदद करता है। उसकी कहानी यह साबित करती है कि सही मौका मिले तो ऑटिस्टिक व्यक्ति चमत्कार कर सकते हैं। तमिलनाडु की 12 साल की एक लड़की ने 2024 में ड्राइंग प्रतियोगिता में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। उसकी कला ने सोशल मीडिया पर 2 लाख लोगों का दिल जीत लिया। 10% ऑटिस्टिक व्यक्ति सैवेंट सिंड्रोम से प्रभावित होते हैं, जिसमें वे गणित, संगीत या कला में अद्भुत कौशल दिखाते हैं।
यह दिवस हमें सिखाता है कि ऑटिज़्म कोई बाधा नहीं, बल्कि एक अलग दृष्टिकोण है। तकनीक जहाँ इन बच्चों को आत्मनिर्भर बना रही है, वहीं समाज का प्यार उन्हें अपनाने की ताकत दे रहा है। हर जीवन की अपनी कहानी है और हर कहानी को सम्मान मिलना चाहिए।
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