द लेंस डेस्क। 28 मार्च 2025 की सुबह म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के भूकंप ने न सिर्फ इमारतों को ढहाया, बल्कि लाखों लोगों की जिंदगी को भी हिला कर रख दिया। इसके झटके थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक तक महसूस किए गए, जहां ऊंची इमारतें ताश के पत्तों की तरह बिखर गईं।
इस प्राकृतिक आपदा ने जानमाल का भारी नुकसान किया, लेकिन इसके पीछे छिपी हैं अनगिनत मानवीय पीड़ायें, कहानियां और उनमें छिपा डर, हिम्मत, और उम्मीद। दुनिया भर के मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया में दर्द की दास्तां दिखाती हुई वीडियोज और पोस्ट सामने आये हैं।
मांडले के नजदीक एक छोटे से गांव में रहने वाली 38 वर्षीय नाय म्यिंट उस सुबह अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में लगी हुई थीं, जब अचानक धरती कांपने लगी।
वह कहती हैं, “मैं रसोई में काम कर रही थी, और मेरा 10 साल का बेटा बगल के कमरे में खेल रहा था। तभी सब कुछ हिलने लगा। मैंने उसे आवाज दी, लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ कर पाती, छत का एक हिस्सा भरभराकर गिर पड़ा,” नाय म्यिंट आंसुओं के बीच बताती हैं।
उनका बेटा अभी भी मलबे के नीचे फंसा है, और गांव के लोग व राहत टीमें उसे बाहर निकालने के लिए दिन-रात जुटी हुई हैं। “वह मेरा इकलौता सहारा है। मैं बस भगवान से प्रार्थना कर रही हूं कि वह सुरक्षित मिल जाए,” उनकी नजरों में डर और उम्मीद की किरण एक साथ नजर आती है।
मांडले में ऐतिहासिक मांडले पैलेस के कुछ हिस्से भी इस भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गए। स्थानीय निवासी इसे सिर्फ एक इमारत का नुकसान नहीं मानते, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान पर चोट के रूप में देखते हैं।
50 साल के को जी, जो पास में एक दुकान चलाते हैं, कहते हैं, “ये पैलेस हमारी यादों का हिस्सा था। अब इसे टूटा हुआ देखकर लगता है, जैसे हमारा इतिहास ही मिट गया।”
बैंकॉक के चटुचक मार्केट के पास एक 30 मंजिला निर्माणाधीन इमारत के ढहने से 40 से ज्यादा मजदूरों के मलबे में फंसे होने की आशंका है।
29 साल के संजय पासवान, जो बिहार से आए थे और पिछले एक साल से इस साइट पर काम कर रहे थे, बताते हैं, “हम कंक्रीट डाल रहे थे, तभी फर्श हिलने लगा। मैं भागा और किसी तरह बाहर निकल आया, लेकिन मेरा दोस्त रमेश अंदर ही रह गया। उसकी पत्नी को क्या जवाब दूंगा?”
संजय की आवाज में गुस्सा और दुख साफ सुनाई देता है। राहत और बचाव कार्य जारी हैं, लेकिन हर गुजरते पल के साथ उम्मीदें कम होती जा रही हैं।
थाईलैंड के चियांग माई में वाट चेदी लुआंग मंदिर, जो 14वीं सदी से वहां की आस्था और संस्कृति का प्रतीक रहा है, इस भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया। मंदिर की दीवारों में दरारें पड़ गईं, और कुछ हिस्से जमीन पर बिखर गए।
62 साल की माए सोम, जो मंदिर के पास फूल बेचती हैं, कहती हैं, “ये मंदिर मेरे लिए दूसरा घर था। हर सुबह यहाँ आकर फूल चढ़ाती थी। अब ये टूट गया तो लगता है, जैसे मेरी आस्था भी हिल गई।” माए की आंखों में आंसू हैं, लेकिन वह आगे कहती हैं, “फिर भी, हमें इसे दोबारा बनाना होगा। जिंदगी रुकती नहीं।”
उत्तराखंड के देहरादून से परिवार के साथ थाईलैंड घूमने आए अभिषेक शर्मा उस वक्त अपने होटल के कमरे में थे, जब भूकंप आया।
अभिषेक बताते हैं- “कमरे में सामान हिलने लगा। मेरी पत्नी और बच्चे चीख रहे थे। हम सीढ़ियों से नीचे भागे। बाहर निकले तो देखा कि सड़क पर अफरा-तफरी मची थी” । उनकी शाम की फ्लाइट थी, लेकिन अब सब रद्द हो गया। “पिछले 12 घंटे से हम कमरे में ही हैं। बाहर जाने की हिम्मत नहीं हो रही। ऐसा भूकंप मैंने जिंदगी में कभी नहीं देखा,”
एक पत्रकार पत्रलेखा चटर्जी जो बैंकॉक में रहतीं हैं उन्होंने फेसबुक पोस्ट में बताया की भूकंप का दहशत इतना ज्यादा था कि 700 लोग भूकंप वाली रात बिल्डिंग के सामने एक पार्क में बिताये, यहां लोग घबरा भी रहे थे दूसरी ओर एक दूसरे को ढांढस भी दे रहे थे।
भूकंप के बाद म्यांमार और थाईलैंड में राहत कार्य तेजी से शुरू हो गए हैं। भारत ने “ऑपरेशन ब्रह्मा” के तहत राहत सामग्री और बचाव दल भेजे हैं। स्थानीय लोग भी एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आए हैं। बैंकॉक में एक नर्स, सुनीता चौधरी, जो लटसन हॉस्पिटल में काम करती हैं, बताती हैं, “हमने मरीजों को बाहर निकाला। सड़क पर स्ट्रेचर लगाए गए। हर कोई डरा हुआ था, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी।”
अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, इस भूकंप से म्यांमार में 1,000 से ज्यादा लोगों की मौत की आशंका है, जबकि थाईलैंड में अब तक 10 मौतें दर्ज की गई हैं। म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र में एक पुल पूरी तरह ढह गया, और बैंकॉक में कई इमारतों को नुकसान हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि सागाइंग फॉल्ट इस भूकंप की वजह थी, जो म्यांमार में 1,200 किमी तक फैली है।
भूकंप ने न सिर्फ इमारतों को तोड़ा, बल्कि लोगों के सपनों और उम्मीदों को भी चकनाचूर कर दिया। फिर भी, इन कहानियों में एक बात साफ है, इंसान की जिजीविषा। मलबे के ढेर के बीच से भी जिंदगी की नई किरणें निकल रही हैं। म्यांमार और थाईलैंड के लोग इस आपदा से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, और दुनिया भर से मिल रही मदद उनकी हिम्मत बढ़ा रही है।