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लेंस संपादकीय

सीएए की अगली कड़ी

The Lens Desk
Last updated: March 28, 2025 6:51 pm
The Lens Desk
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लोकसभा में पारित आप्रवास विधेयक को लेकर संदेह नहीं होना चाहिए कि इसके जरिये मोदी सरकार किसी न किसी तरह बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों से आए मुस्लिम शरणार्थियों और घुसपैठियों के मुद्दों को राजनीतिक रंग देना चाहती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का संसद में दिया गया भाषण इसकी तस्दीक करता है, जिसमें उन्होंने भारत के पांच हजार साल के इतिहास की दुहाई देते हुए कहा है कि भारत को किसी शरणार्थी नीति की जरूरत नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसे जरूरी बताते हुए शाह ने यहां तक कह दिया कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है कि कोई भी जब चाहे यहां आकर रह जाए! उनके निशाने पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं, जिसे उन्होंने छिपाया भी नहीं। वह शायद भूल गए कि भारत स्वामी विवेकानंद का भी देश है, जिन्होंने 1893 में शिकागो में दिए गए अपने मशहूर भाषण के जरिये दुनिया को बताया था कि उनके देश ने सभी धर्मों के लोगों को शरण दी है। दूसरी ओर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के जरिये मोदी सरकार की विभाजनकारी नीति पहले ही सामने आ चुकी है, जिसमें पड़ोसी देशों के मुस्लिमों को छोड़कर अन्य धर्मों के नागरिकों को नागरिकता देने के प्रावधान किए गए हैं। निसंदेह बांग्लादेश से घुसपैठ एक बड़ी समस्या रही है, जिस पर मानवीय आधार पर और अंतरराष्ट्रीय कायदों के तहत कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन मुश्किल यह है कि मोदी सरकार ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक पर व्यापक चर्चा के लिए भी तैयार नहीं होती, यहां तक कि उसने विपक्ष की इसे संसदीय समिति को भेजने की मांग भी ठुकरा दी।

TAGGED:Amit ShahCAAEditorialImmigration
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