नवंबर 2015 में केन्द्र सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना की शुरुआत की थी। योजना का उद्देश्य लोगों को अपना सोना बैंकों में जमा करने के लिए प्रोत्साहित करना था। इस पहल को व्यक्तियों को उनके सोने के जमा पर ब्याज अर्जित करने की इजाजत देकर सोने के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। लेकिन ये योजना अब सरकार के लिए सिर दर्द बन गई हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार ने मीडियम टर्म और लॉन्ग टर्म गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम को बुधवार को बंद कर दिया है। बता दें सरकार इस स्कीम के तहत नवंबर, 2024 तक लगभग 31,164 किलोग्राम सोना जुटा चुकी थी।
क्या है सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम
केंद्र सरकार ने डिजिटल गोल्ड को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस योजना को शुरू किया था। हालांकि, इसमें केवल पेपर पर रिटेल निवेशक ऑनलाइन सोने में निवेश कर सकते थे। जिसमें सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का मैच्योरिटी पीरियड रखा गया था। वहीं, निवेशकों के पास ऑप्शन था कि वे पांच साल बाद भी चाहे तो आंशिक रिडीम कर सकते थे।
कैसे काम करती थी ये योजना
स्कीम के तहत लोग अपने घरों में पड़ा सोना, बैंकों में जमा कर उस पर ब्याज हासिल कर सकते थे। वहीं बैंकों के पास सोना डिपॉजिट होने से देश की सोने की आयात (इंपोर्ट) पर निर्भरता कम हो रही था। स्कीम के तहत बैंकों में जमा किए गए सोने की पहले शुद्धता जांची जाती थी, और फिर उसे गोल्ड बार्स में बदलकर ग्राहक के गोल्ड डिपॉजिट अकाउंट में जमा कर दिया जाता था। फिर उस अकाउंट पर ग्राहकों को ब्याज मिलता था। अगर ग्राहक अपना सोना वापस लेना चाहे तो बार या सिक्के के रूप में उसे वापस ले सकता था।
क्या है बंद करने की वजह
योजना को बंद करने का फैसला सरकार ने बाजार की बदलती परिस्थितियों और इसके प्रदर्शन के कारण लिया गया है। इसके बावजूद बैंकों के पास अपने कॉमर्शियल हितों के आधार पर शॉर्ट टर्म गोल्ड जमा की पेशकश करने का सरकार ने विकल्प रखा है। योजना की कठिनाई और जेवरों से इमोसनली संबंध अहम बाधाएं थीं। कई भारतीय अपने पारंपरिक गहनों से इमोसनली तौर पर जुड़े हुए हैं, जिन्हें इस योजना के तहत पिघलाना पड़ा, जिससे भागीदारी में बाधा उत्पन्न हुई।
क्या थी चुनौतियां
सोने की जांच और जमा करने की प्रक्रिया काफी बोझिल और लंबी थी। इसके अलावा परीक्षण केन्द्र भी सीमीत थे, प्रतिभागियों को अपनी होल्डिंग्स की घोषणा करने और अर्जित ब्याज पर कर का भुगतान करने की जरूरत का भी सामना करना पड़ा, जिसने कई लोगों को शामिल होने से डिसकरेज किया। इसके अलावा, बैंकों द्वारा जागरूकता और प्रचार की कमी ने इसकी सीमित सफलता में योगदान दिया।
जिसने निवेश किया, उसका क्या होगा ?
जो लोग पहले ही GMS में निवेश कर चुके हैं, उन्हें घबराने की जरुरत नहीं है। योजना की अवधि समाप्त होने तक आपका सोना और अर्जित ब्याज सुरक्षित रहेगा। हालांकि, इस योजना के तहत भविष्य में मध्यम या लॉन्ग टर्म जमा में निवेश करना संभव नहीं होगा। कुछ बैंक अभी भी अपने विवेक पर शॉर्ट टर्म जमा विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
भारतीय घरों में कितना सोना
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के घरों में आभूषण सिक्के और बिस्किट के रूप में लगभग 30,000 टन सोना है। इस धन का अधिकांश हिस्सा बिना किसी आय या आर्थिक योगदान के अलमारी या लॉकर में बेकार पड़ा रहता है। जीएमएस ने इस पेसिव ऐसेट को जुटाने की कोशिश की लेकिन अलग-अलग चुनौतियों के कारण योजना को संघर्ष करना पड़ा।