द लेंस डेस्क। केंद्र सरकार ने गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब इन वर्कर्स और उनके परिवारों को आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य कवरेज मिलेगा। श्रम और रोजगार मंत्रालय की सचिव सुमिता डावरा ने बताया कि इस योजना को लागू करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। भारत में तेजी से बढ़ती गिग अर्थव्यवस्था को देखते हुए यह घोषणा लाखों वर्कर्स के लिए वरदान साबित हो सकती है।
केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित इस योजना के तहत उबर, ओला, स्विगी, जोमैटो जैसे प्लेटफॉर्म्स से जुड़े एक करोड़ गिग वर्कर्स को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलेगा। ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण के बाद उन्हें एक पहचान पत्र दिया जाएगा, जिसके जरिए वे मुफ्त इलाज का लाभ उठा सकेंगे। नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में गिग वर्कर्स की संख्या एक करोड़ से ज्यादा होगी, जो 2029-30 तक 2.35 करोड़ तक पहुँच सकती है। राइडशेयरिंग, डिलीवरी और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले ये वर्कर्स अब तक सामाजिक सुरक्षा से वंचित थे।
5 लाख रुपये का कवरेज गिग वर्कर्स को चिकित्सा आपात स्थिति में वित्तीय संकट से बचाएगा। इससे उनकी आय का इस्तेमाल इलाज के बजाय परिवार और आजीविका के लिए हो सकेगा। स्वास्थ्य खर्चों से राहत मिलने से इन वर्कर्स की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, जो अक्सर अनिश्चित आय पर निर्भर रहते हैं। ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण गिग वर्कर्स को औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाएगा, जिससे भविष्य में अन्य योजनाओं का लाभ मिलने का रास्ता खुलेगा।
हालांकि यह योजना आशाजनक है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं, कई गिग वर्कर्स तकनीकी रूप से कम जागरूक या अशिक्षित हैं। ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण और योजना को समझना उनके लिए मुश्किल हो सकता है। प्लेटफॉर्म कंपनियों को अपने वर्कर्स का डेटा सरकार के साथ साझा करना होगा। गोपनीयता और व्यावसायिक हितों के कारण वे इसमें हिचकिचाहट दिखा सकती हैं। सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के नियम अभी तक पूरी तरह लागू नहीं हुए। इस योजना में भी प्रशासनिक देरी हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आयुष्मान से जुड़े अस्पतालों की कमी या खराब गुणवत्ता लाभ को प्रभावित कर सकती है।
अभी तक उबर, ओला, स्विगी, जोमैटो जैसी कंपनियाँ गिग वर्कर्स को “स्वतंत्र ठेकेदार” मानती हैं और उन्हें स्वास्थ्य बीमा जैसे लाभ नहीं देतीं। हालांकि, कुछ सीमित कदम उठाए गए हैं, जैसे
स्विगी: कोविड-19 के दौरान डिलीवरी पार्टनर्स के लिए अस्थायी स्वास्थ्य बीमा शुरू किया था।
जोमैटो: दुर्घटना बीमा की सुविधा देता है, लेकिन यह व्यापक स्वास्थ्य कवरेज नहीं है।
उबर: भारत में अभी तक कोई बड़ा स्वास्थ्य लाभ शुरू नहीं किया।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को कंपनियों पर दबाव डालना चाहिए कि वे सामाजिक सुरक्षा फंड में योगदान दें। अगर ऐसा हुआ, तो कंपनियों की लागत बढ़ सकती है, जिसका असर ग्राहकों पर कीमतों के रूप में पड़ सकता है। दूसरी ओर, कुछ कंपनियाँ इसे अपनी कॉर्पोरेट जिम्मेदारी के तहत प्रचारित कर सकती हैं।
वैसे तो यह योजना गिग वर्कर्स के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है, लेकिन इसकी सफलता सरकार और कंपनियों के सहयोग पर निर्भर करेगी। अगर पंजीकरण आसान बनाया जाए, जागरूकता बढ़ाई जाए और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर किया जाए, तो यह गिग अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ-साथ लाखों परिवारों की जिंदगी बदल सकती है।