द लेंस डेस्क।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी आयातित कारों, हल्के ट्रकों और ऑटो पार्ट्स पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जिससे वैश्विक बाजारों में हलचल मच गई है। 27 मार्च 2025 को की गई इस घोषणा के तहत वाहनों पर टैरिफ 2 अप्रैल से और ऑटो पार्ट्स पर 3 मई से लागू होगा। इसका मकसद अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देना और करीब 100 अरब डॉलर का अतिरिक्त राजस्व जुटाना है। लेकिन इस फैसले ने अमेरिकी बाजार पर निर्भर भारतीय ऑटो कंपनियों के लिए चिंता बढ़ा दी है।
भारत ऑटो कंपोनेंट उद्योग में उभरता हुआ खिलाड़ी है, जिसने वित्तीय वर्ष 2024 में 21.2 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें से 6.79 अरब डॉलर अमेरिका को गया। इस टैरिफ से प्रमुख कंपनियों पर असर पड़ सकता है:
टाटा मोटर्स: जगुआर लैंड रोवर (JLR) की मूल कंपनी को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अमेरिका JLR की 22% बिक्री का बाजार है। यूके और स्लोवाकिया में बनने वाली कारों की लागत बढ़ सकती है, जिससे मार्जिन पर दबाव पड़ेगा। घोषणा के बाद टाटा मोटर्स के शेयरों में 5-7% की गिरावट देखी गई।
सोना कॉम्स्टार: टेस्ला का सबसे बड़ा भारतीय सप्लायर होने के नाते, इस कंपनी का 43% राजस्व अमेरिका से आता है। टैरिफ से पार्ट्स की कीमतें बढ़ने की आशंका है।
भारत फोर्ज: अमेरिका से 38% राजस्व के साथ, यह कंपनी ट्रक और भारी वाहन पार्ट्स पर प्रभाव महसूस कर सकती है।
अन्य कंपनियां: समवर्धन मदरसन, एचर मोटर्स (रॉयल एनफील्ड), और बालकृष्ण इंडस्ट्रीज (टायर्स) भी प्रभावित हो सकती हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि टैरिफ में क्या-क्या शामिल होगा।
घोषणा के बाद वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल देखी गई। भारत में निफ्टी ऑटो इंडेक्स 1.34% गिरा, जबकि अमेरिकी बाजारों में भी नुकसान हुआ। टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने चिंता जताई कि यह टैरिफ विदेशी पार्ट्स की कीमतें बढ़ाएगा, जिससे अमेरिकी ऑटोमेकर्स को भी नुकसान होगा।
वैश्विक स्तर पर इस नीति की आलोचना हो रही है। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने इसे “हमला” करार दिया और जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी। जापान और यूरोपीय संघ ने भी नाराजगी जताई है। आलोचकों का कहना है कि इससे सप्लाई चेन बाधित होगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए वाहनों की कीमतें बढ़ेंगी।
भारतीय सरकार इस टैरिफ के असर को कम करने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत की तैयारी कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपनी दवा निर्यात की ताकत का इस्तेमाल कर सकता है, क्योंकि अमेरिका भारतीय जेनेरिक दवाओं पर निर्भर है।