नई दिल्ली। जनसंख्या आधारित परिसीमन के खिलाफ दक्षिण के राज्यों में आवाज मुखर होती जा रही है। आज 27 मार्च को तेलंगाना विधानसभा ने प्रस्ताव पारित करते हुए जनसंख्या को परिसीमन का एकमात्र आधार बनाए जाने का विरोध किया।
मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी द्वारा पेश इस प्रस्ताव में कहा गया कि यदि लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए केवल जनसंख्या को आधार बनाया जाता है, तो इससे दक्षिण भारतीय राज्यों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
मुख्यमंत्री रेड्डी ने चेताया कि इस प्रक्रिया से दक्षिणी राज्यों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व वर्तमान 24 फीसदी से घटकर 19 फीसदी रह जाएगा। उन्होंने बिना किसी दल का नाम लिए यह आरोप लगाया कि केंद्र की सत्ताधारी पार्टी इस परिसीमन के जरिए दक्षिणी राज्यों की राजनीतिक ताकत को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
रेड्डी ने तेलंगाना के सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर एकजुट होने और केंद्र सरकार से संवाद करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर सहमत नहीं होती है, तो संघर्ष करना पड़ेगा। विधानसभा अध्यक्ष जी. प्रसाद कुमार ने प्रस्ताव के पारित होने की घोषणा की।
दक्षिण के राज्यों की लामबंदी
22 मार्च को तमिलनाडु में डीएमके द्वारा बुलाई गई बैठक में दक्षिण राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस मुद्दे पर मिलकर लड़ने की बात कही। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कानूनी विकल्प अपनाने तक की बात कही, जबकि केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इस कदम को राजनीतिक हितों से प्रेरित बताया। इस बैठक में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार भी शामिल हुए।