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छत्तीसगढ़

केंद्र छत्तीसगढ़ की खदानें लौटाए- बृजमोहन

नितिन मिश्रा
नितिन मिश्रा
Byनितिन मिश्रा
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Published: March 27, 2025 5:15 PM
Last updated: March 27, 2025 5:21 PM
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नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की खदानों में खनिज संपदाओं की माइनिंग करने के बाद खदानों के रिक्लेमेशन का मुद्दा संसद तक पहुंच गया है। रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने रिक्लेमेशन के मुद्दे को लेकर खुदाई करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की खदानों से अयस्कों को निकालने के बाद उन्हें खुला छोड़ दिया जाता है। जिससे मानव जीवन और पशुओं के जीवन को खतरा है। एक बस के खदान में गिर जाने की वजह से 10 लोगों की मौत हो गई है। प्राइवेट कंपनियों को माइनिंग करने के बाद उनका रिक्लेमेशन कर सरकार को सौंपना चाहिए।

पहले जानिए रिक्लेमेशन क्या है?

खदानों के रिक्लेमेशन का मतलब है कि “उन्हें फिर से उसी रूप में विकसित किया जाए जैसे वो माइनिंग के पहले थे। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई कोयला खदान है वहां पर माइनिंग का काम पूरा हो चुका है, और खदान बंद की जानी है, तो खदान को खुला ना छोड़कर उसको भरना होता है। जिससे वह हिस्सा पहले के जैसे ही सामान्य हो जाए “

सांसद बृजमोहन ने उठाया मुद्दा

छत्तीसगढ़ खनिज संपदाओं से संपन्न प्रदेश है। यहां कई तरह की खदानें संचालित की जा रहीं हैं। रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने गुरुवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य में कोयला, लौह अयस्क, सीमेंट और अन्य खनिज खदानों की बदहाल स्थिति का गंभीर मामला उठाया। उन्होंने अपने प्रश्न के जरिए खनन मंत्री का ध्यान इस ओर आकर्षित किया और सरकार से इस पर तत्काल ठोस कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है, जहां कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड सहित कई सरकारी और निजी कंपनियां बड़े पैमाने पर खनिज खनन कर रही हैं। भारत में जितना कोयला खनन होता है, उसमें सबसे अधिक खनन छत्तीसगढ़ में होता है। एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान भी इसी राज्य में स्थित है।

100 से ज्यादा खदानों को छोड़ा गया खुला

सांसद बृजमोहन ने खदानों को लेकर कहा कि खनन कार्य समाप्त होने के बाद खदानों का रिक्लेमेशन नहीं किया जा रहा है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। वर्तमान में राज्य में 100 से अधिक खदानें ऐसी हैं, NMDC समेत अन्य निजी कंपनियों द्वारा संचालित खदानों की स्थिति एक जैसी है, जहाँ खनिज निकालने के बाद खदानों को छोड़ दिया जाता है। जो पर्यावरणीय संकट और जल प्रदूषण के साथ ही मानव जीवन एवं पशुओं के लिए खतरा है।

पिछले साल हुई थी 10 मजदूरों की मौत

पिछले साल मुरूम खदान में निजी कंपनी की बस गिरने की वजह से 10 मजदूरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। बृजमोहन अग्रवाल ने घटना को आधार बनाते हुए कहा कि गहरे खदानों में गिरने से दुर्घटनाएं हो रही हैं, जिससे जान-माल का नुकसान हो रहा है। हाल ही में एक बस दुर्घटना में 10 से अधिक मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है। खदानों के कारण भूस्खलन और आकस्मिक दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। खनन कंपनियां खनिज निकालने के बाद खदानों को यूँ ही छोड़ देती हैं, जिससे वह भूमि अनुपयोगी बन जाती है। छत्तीसगढ़ में देश के कुल सीमेंट उत्पादन का 26% निर्माण होता है, लेकिन सीमेंट कंपनियां भी खदानों को पुनः भरने या समतल करने की जिम्मेदारी नहीं निभा रही हैं।

इन शर्तों पर दिया जाता है खनन का टेंडर

  1. टेंडर लेने वाली कंपनी को पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण किया जाएगा।
  2. टेंडर लेने वाली कंपनी को रिक्लेमेशन योजना प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें खदानों को पुनर्स्थापित और पुनर्विकसित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।
  3. टेंडर लेने वाली कंपनी को वनस्पति और जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए कदम उठाने होंगे।

रिक्लेमेशन की शर्तों का पालन नहीं होने पर कड़ी कार्रवाई का है नियम

यदि खनन करने वाली कम्पनियां रिक्लेमेशन की शर्तों का पालन नहीं करती है, तो जुर्माना, दंड और लाइसेंस रद्द कर देने का नियम है। दंड के तहत लाइसेंस रद्द और खदान बंद करने का ठोस कदम सरकार उठा सकती है। यहां तक कि यदि पर्यावरणीय नियमों का पालन नहीं करने पर भी लाइसेंस रद्द करने का नियम है।

TAGGED:Brijmohan AgrawaalCCLLok Sabha
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