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लेह-लद्दाख: तरक्की की राह पर, क्या बचेगी पहचान?

पूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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Published: March 26, 2025 5:22 PM
Last updated: April 16, 2025 2:26 PM
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लेंस ब्‍यूरो | लेह -लद्दाख, भारत का वो खूबसूरत जगह जहां बर्फ से ढके पहाड़ आसमान को चूमते हैं और बहती नदियों की कल-कल की आवाज शांति देती है, ये जगह अब केवल हाइकर्स, बाइकर्स और कैंपिंग प्रेमियों का स्वर्ग नहीं रहा बल्कि यह अब एक नई कहानी लिख रहा है, विकास, कनेक्टिविटी और बदलाव की। मेगा रेलवे प्रोजेक्ट्स से लेकर दुनिया की सबसे ऊंची सड़क टनल तक, लद्दाख अब पहले से कहीं ज्यादा सभी के करीब आने वाला है। लेकिन पर्यटक रास्तों से परे, यहाँ टिकाऊ विकास और स्थानीय सशक्तिकरण की गहरी मांग भी उठ रही है। आइए जानते हैं कि लद्दाख कैसे बदल रहा है और इसका स्थानीय लोगों के लिए क्या मतलब है।

रेलवे से आधा हो जाएगा सफर
वो दिन गए जब लद्दाख पहुंचने के लिए दिल्ली से लेह तक 40 घंटे का थकाऊ सड़क सफर करना पड़ता था, घुमावदार खतरनाक रास्तों से गुजरते हुए या फिर महंगी फ्लाइट से जेब खाली करनी पड़ती थी। केंद्रीय राजमार्ग मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने हाल ही में बिलासपुर-मनाली-लेह रेलवे प्रोजेक्ट की घोषणा की, जो 131 अरब रुपये का होगा, यह मेगा प्रोजेक्ट सफर को सिर्फ 20 घंटे का बना देगा। सोचिए, रात को दिल्ली से ट्रेन में बैठे और सुबह आंख खुली तो लेह की ठंडी हवाओं का मज़ा ले सकेंगे।

इस प्रोजेक्ट का सर्वे और विस्तृत रिपोर्ट 2023 में पूरी हो चुकी है। पहला चरण (भानुपली से बरमाना) 2022 में शुरू हुआ, जिसमें भानुपली-बिलासपुर खंड पर काम चल रहा है और यह 2025 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। अगले चरण मंडी, मनाली और लेह तक वित्त और रक्षा मंत्रालय की मंजूरी का इंतज़ार कर रहे हैं, और निर्माण 2025 के अंत या 2026 में शुरू हो सकता है। हालांकि, राज्य सरकार की फंडिंग और जमीन अधिग्रहण में देरी से समयसीमा आगे खिसक सकती है।

शिंकु ला टनल
लद्दाख की कनेक्टिविटी में एक और मील का पत्थर है शिंकु ला टनल, जो 15,800 फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे ऊंची सड़क टनल होगी। जून 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई यह 4 किमी लंबी ट्विन-ट्यूब टनल, 1,200 करोड़ रुपये की लागत से बन रही है। बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइज़ेशन (BRO) इसे 2028 तक पूरा करने की दिशा में काम कर रहा है। यह टनल सर्दियों में बंद रास्तों को खोलेगी, जिससे पर्यटकों का सफर आसान होगा और सेना को तेज़ सप्लाई मिलेगी।

2,405 करोड़ रुपये का नीमू-पदाम-दारचा रोड प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश और लद्दाख को सालभर जोड़ेगा। कई सालों से चल रहे इस प्रोजेक्ट में मार्च 2024 में नीमू से दारचा तक कनेक्टिविटी हासिल हुई। चौड़ीकरण और ब्लैकटॉपिंग का काम जारी है, जो 2025 के अंत तक पूरा हो सकता है। शिंकु ला टनल के साथ मिलकर यह ऑल-वेदर रोड बनेगा, जो सर्दियों में बाइकर्स, ट्रैवलर्स और सेना के लिए रुकावटों को खत्म करेगा।

लेह हवाई अड्डे का नया टर्मिनल
हवाई यात्रा को आसान बनाने के लिए लेह हवाई अड्डे पर 640 करोड़ रुपये का नया टर्मिनल बन रहा है। 2025 में घोषित यह प्रोजेक्ट अभी प्लानिंग स्टेज में है, लेकिन मध्य या अंत 2025 तक शुरू हो सकता है। ज्यादा फ्लाइट्स और सस्ती टिकटों के साथ यह लद्दाख की पर्यटन-आधारित अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई देगा।

पर्यटन से परे – क्या है सोनम वांगचुक का सपना ?


ये प्रोजेक्ट्स जहां पर्यटन को बढ़ावा देंगे, वहीं पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक कई दशकों से स्थानीय लोगों की बड़ी मांगों को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं। उनकी मांगें हैं कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले, संविधान की छठी अनुसूची में राज्य को शामिल करे ताकि जनजातीय पहचान और हिमालयी पर्यावरण को बचाया जा सके। इसके अलावा लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीटें, स्थानीय नौकरी आरक्षण, और पब्लिक सर्विस कमीशन की मांग की जा रही है और सबसे अहम, ऐसा विकास जो ग्लेशियरों और संस्कृति को नुकसान न पहुंचाए। 2024 में वांगचुक के विरोध प्रदर्शन के तौर पर भूख हड़ताल की थी, इस मामले ने पूरे देश का ध्यान खींचा और लेह एपेक्स बॉडी (LAB) व कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) की मांगों को मज़बूती दी।

इन मांगों के अलावा स्थानीय स्तर पर भी मांगे उठ रही है, कनेक्टिविटी से आगे, लोग स्वशासन, पर्यावरण संरक्षण, और शिक्षा-रोज़गार के अवसर चाहते हैं। उन्हें डर है कि छठी अनुसूची जैसे सुरक्षा कवच के बिना उनकी जमीन और परंपराएं बाहरी लोगों के हाथों चली जाएंगी। सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं जैसे 95% नौकरी आरक्षण, पहाड़ी परिषदों में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व, और पांच नए जिले (जांस्कर, द्रास, शाम, नुब्रा, चांगथांग) लेकिन राज्य दर्जे और स्वायत्तता पर बातचीत अभी बाकी है।

लद्दाख पर्यटन ,व्यापार और रणनीति का केंद्र बनने की राह पर है लेकिन अपनी आत्मा को बचाने की चुनौती के साथ। रेल, सड़क और हवाई मार्ग इसे दुनिया के करीब ला रहे हैं, लेकिन प्रगति और संरक्षण का संतुलन जरूरी है। क्या लेह-लद्दाख इन विकास के सोपानों में बढ़ते-बढ़ते अपनी अस्मिता बनाये रखेगा ये सवाल बड़ा है।

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Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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