[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
‘भूपेश है तो भरोसा है’ फेसबुक पेज से वायरल वीडियो पर FIR, भाजपा ने कहा – छत्तीसगढ़ में दंगा कराने की कोशिश
क्या DG कॉन्फ्रेंस तक मेजबान छत्तीसगढ़ को स्थायी डीजीपी मिल जाएंगे?
पाकिस्तान ने सलमान खान को आतंकवादी घोषित किया
राहुल, प्रियंका, खड़गे, भूपेश, खेड़ा, पटवारी समेत कई दलित नेता कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में
महाराष्ट्र में सड़क पर उतरे वंचित बहुजन आघाड़ी के कार्यकर्ता, RSS पर बैन लगाने की मांग
लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर AC बस में लगी भयानक आग, 70 यात्री बाल-बाल बचे
कांकेर में 21 माओवादियों ने किया सरेंडर
RTI के 20 साल, पारदर्शिता का हथियार अब हाशिए पर क्यों?
दिल्ली में 15.8 डिग्री पर रिकॉर्ड ठंड, बंगाल की खाड़ी में ‘मोंथा’ तूफान को लेकर अलर्ट जारी
करूर भगदड़ हादसा, CBI ने फिर दर्ज की FIR, विजय कल पीड़ित परिवारों से करेंगे मुलाकात
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
सरोकार

गणेश शंकर विद्यार्थी:  सामाजिक सुधारों की मुखर आवाज

Editorial Board
Editorial Board
Published: March 25, 2025 2:53 PM
Last updated: April 14, 2025 9:47 PM
Share
SHARE
The Lens को अपना न्यूज सोर्स बनाएं
  • 25 मार्च 1931 को कानपुर में सांप्रदायिक दंगे में कर दी गई थी उनकी हत्‍या

गणेश शंकर विद्यार्थी एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था। उनके पिता जयंती प्रसाद एक शिक्षक थे, जिससे उन्हें शिक्षा के प्रति प्रेम विरासत में मिला। गणेश शंकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा।

उन्होंने 1913 में हिंदी साप्ताहिक पत्रिका “प्रताप” की शुरुआत की, जो स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार के मुद्दों को उठाने वाला एक प्रभावशाली मंच बन गया। वे न केवल एक कुशल लेखक थे, बल्कि एक निडर पत्रकार भी थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाई और जनता को जागरूक किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे।

25 मार्च 1931 को कानपुर में सांप्रदायिक दंगे के दौरान लोगों को बचाने की कोशिश करते हुए उनकी हत्या कर दी गई। उनकी मृत्यु ने देश को एक साहसी और समर्पित व्यक्तित्व से वंचित कर दिया, लेकिन उनकी विरासत आज भी प्रेरणा देती है।

आज उनकी पुण्‍यतिथि पर ‘द लेंस’ लेकर आया है उनकी कलम से लिखा निबंध ‘धर्म की आड़’। यह निबंध आज के ताजा हालात पर इसलिए प्रासंगिक है कि देश के अलग–अलग हिस्‍सों में धर्म की आड़ में तनाव फैलाया जा रहा है। कभी संभल तो कभी नागपुर जैसी घटनाएं हमारे सामने हैं।  

धर्म की आड़

इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और ज़िद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर। रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ धर्म और ईमान को जानें, या न जानें, परंतु उनके नाम पर उबल पड़ते हैं और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़नेवाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरजे, पढे़-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी।

साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को क्या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फ़ायदा उठा रहे हैं।

पाश्चात्य देशों में, धनी लोग गरीब मजदूरों के परिश्रम से बेजा लाभ उठाते हैं।  उसी परिश्रम की बदौलत गरीब मजदूर की झोंपड़ी का मज़ाक उड़ाती हुई उनकी अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती हैं! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं, और उसी के बल से, वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज़्म आदि का जन्म हुआ।

हमारे देश में, इस समय, धनपतियों का इतना ज़ोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मन-माना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर, धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के  नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।

मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेलते और थोडे़-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्य-प्रति बढ़ते जाने वाले झगडे़ कम न होंगे।

धर्म की उपासना के  मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊंचे उठाने का साधन हो। वह, किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें, और दूसरों का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।

देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निःसंदेह, अत्यंत बुरा था, जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में, खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है। देश को स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ है कि इस समय, हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।

महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्त्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्माजी के धर्म’ का स्वरूप क्या है? धर्म से महात्माजी का मतलब धर्म के ऊँचे और उदार तत्त्वों ही से हुआ करता है। उनके मानने में किसे एतराज़ हो सकता है।

अज़ाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज़ पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज़ भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार की रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ़ पहुंचाने के लिए आज़ाद समझते हैं तो, इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी। सबके कल्याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पडे़गा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़ सकेगी।

ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो, वे ला-मज़हब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दुःख का खयाल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों और ला-मज़हब लोगों को अधिक प्यार करेगा, और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!

TAGGED:Ganesh Shankar Vidyarthiindian freedom fighterjournalistkanpur
Previous Article इफ्तार की सियासत में लालू पड़े अकेले, कांग्रेस के दिग्गज नदारद
Next Article ऑस्कर विजेता फिल्म निर्माता हमदान की आंख पर पट्टी बांधकर ले गए इजरायली सैनिक, दोस्त को है शक…
Lens poster

Popular Posts

नई कारें लाॅॅन्‍च, जाने कीमत

2025 साल की शुरुआत ऑटोमोबाइल्स के लिए काफी अच्छी रही। साल की शुरुआती महीनों में…

By The Lens Desk

मुंबई में भारी बारिश से त्राहिमाम, रनवे पर घंटों खड़े जहाज, यात्रियों को निकलना हुआ मुहाल

नेशनल ब्यूरो। मुंबई मुंबई में लगातार हो रही तेज बारिश और आंधी-तूफान से जनजीवन अस्त-व्यस्त…

By Lens News Network

2027 तक अल नस्र से ही जुड़े रहेंगे क्रिस्टियानो रोनाल्डो

खेल डेस्क। दुनिया के स्टार फुटबॉलर पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो अगले दो साल तक सऊदी…

By दानिश अनवर

You Might Also Like

Uttarkashi cloud burst
सरोकार

कुदरत ने फिर चेताया है कि हिमालय से खिलवाड़ बंद हो!

By अनिल जैन
Daniel Pearl
सरोकार

उठो ‘डैनी’: अब्दुल रऊफ मारा गया

By सुदेशना रुहान
Rahul Gandhi
सरोकार

राहुल गांधी : निशानेबाजी में मेडलिस्ट, मगर सियासत में निशाना लगाने से क्यों बार-बार चूक जाते हैं?

By रशीद किदवई
shimla paan
सरोकार

शिमला और पान

By अपूर्व गर्ग

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?