- आवेश तिवारी
नई दिल्ली। पटना में सोमवार को पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास पर आयोजित राजद की इफ्तार रैली ने बिहार की सियासत को गरमा दिया है।
नहीं आए कृष्णा, राजेश, मुकेश
लालू परिवार द्वारा व्यक्तिगत आमंत्रण देने के बावजूद कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार ही नहीं तमाम छोटे बड़े कांग्रेस नेता एवं वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी गैरमौजूद रहे। कांग्रेस और बीआईपी पार्टी के बड़े नेताओं की गैर मौजूदगी से चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है।
हाशिए पर लालू के नजदीकी कांग्रेसी नेता
नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी ने हाल के दिनों में सांगठनिक फेरबदल के दौरान लालू के खासमखास माने जाने वाले बिहार के तमाम नेताओं को पहली पंक्ति से हटाकर पिछली पंक्ति में खड़ा कर दिया है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर कृष्णा को भेजना, कन्हैया यादव के नेतृत्व में “पलायन रोको, रोजगार दो” यात्रा निकालना इसी मुहिम का हिस्सा है।

क्या है असल सियासत
अब्दुल बारी की इफ्तार दावत को लेकर प्रभात खबर के पत्रकार आशीष झा कहते हैं कि अखिलेश प्रसाद सिंह के जाने से कांग्रेस और राजद को जोड़ने वाली कड़ी टूट गई है लेकिन इस कड़ी का टूटना भी जरूरी था, यह कांग्रेस को कमजोर कर रही थी। पटना के वरिष्ठ चुनाव विश्लेषक अमित कुमार कहते हैं कि अभी विधानसभा चुनाव में समय बचा है कांग्रेस जिस आक्रामक ढंग से प्रचार कर रही अगर वह अकेले चुनाव लड़ जाए तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। अमित कुमार कहते हैं कि आज के वक्त में बिहार के कांग्रेस की जमीन राजद से भले थोड़ा बहुत कम हो लेकिन जद यू से ज्यादा है। अमित कुमार का कहना है कि कांग्रेस के साथ राजद को सम्मान और बराबरी का व्यवहार करना होगा, कांग्रेस नेतृत्व इसके साफ संकेत दे रहा है।
मुजफ्फरपुर में मुकेश
जहां तक मुकेश सहनी का सवाल है मुकेश तेजस्वी के साथ चुनाव यात्रा में हेलीकॉप्टर पर तो मछली खाने में परहेज नहीं लिए लेकिन सोमवार मुजफ्फरपुर के पारू में आयोजित दावत-ए-इफ्तार में भाग लिए। कार्यक्रम में दिवंगत पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहेब ने भी शिरकत की। सोच कर देखिए कि पटना से मुजफ्फरपुर की दूरी महज 70 किमी है। दबी जुबान में कुछ नेता कहते हैं कि लालू जी खुद ही कांग्रेस पर दबाव डालने के लिए मुकेश को पटना आने से रोक दिए होंगे कि कांग्रेस को कहा जा सके कि महागठबंधन टूट सकता है।
इफ्तार की ताकत
बिहार में रमज़ान के दौरान नेताओं के घरों पर आयोजित दावत ए इफ्तार न केवल सियासी समीकरणों को बनाने बिगाड़ने के काम आती है, बल्कि किस नेता का बाजार गर्म है किसका ठंडा यह दावत ही तय करती है। चुनावी साल में बिहार की राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है? इसका अंदाजा भी दिग्गजों की इफ्तार पार्टियों में जुटे मेहमानों की मौजूदगी से लगाया जाता है। नीतीश और लालू तो हर बरस अपनी इफ्तार दावतों में एक दूसरे को मात देने की कोशिश करते हैं।
नीतीश की दावत का हुआ था विरोध
पटना में रविवार को नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी कुछ मुस्लिम संगठनों के विरोध की वजह से चर्चा में रही थी। तमाम मुस्लिम दिग्गज जमीयत उलेमा-ए-हिंद और इमारत ए शरिया ने वक्फ विधेयक पर एनडीए के सहयोगी नीतीश कुमार, एन चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान के रुख को देखते हुए बड़ा फैसला लिया और इन नेताओं द्वारा इफ्तार, ईद मिलन और दूसरे कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का फैसला कर लिया। देखना होगा कि अब इफ्तार की यह सियासत क्या रंग लाती है।