- 25 साल तक परिसीमन को टाला जाए
- लोकसभा में मौजूदा सीटों की संख्या 543 को बरकरार रखा जाए
लोकसभा सीटों के परिसीमन (डिलिमिटेशन) को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व में दक्षिण भारत के सत्तारूढ़ दल केंद्र सरकार से आर-पार के मूड में हैं। 22 मार्च को हुई संयुक्त कार्य समिति की बैठक में तय किया गया कि इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।
प्रस्ताव पारित किया गया कि परिसीमन को अगले 25 साल तक टाल दिया जाए। 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा में मौजूदा सीटों की संख्या 543 को बरकरार रखा जाए। साथ ही जनसंख्या नियंत्रण में सफल राज्यों के लिए संवैधानिक संशोधन की वकालत की गई।
न्यूज़ एजेंसियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों के अनुसार पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार सहित बीजू जनता दल, बीआरएस और शिरोमणि अकाली दल के प्रतिनिधि शामिल हुए।
इस बैठक में आंध्र प्रदेश में विपक्षी नेता और वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष वाईएस जगनमोहन रेड्डी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने संयुक्त कार्य समिति के प्रस्ताव का समर्थन किया।
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस बैठक में शामिल तो नहीं हुए, हालांकि उन्होंने बीजू जनता दल के दो प्रतिनिधियों को भेजा और भुवनेश्वर से एक बयान जारी कर केंद्र सरकार से इस संवेदनशील मुद्दे पर सभी पक्षों के साथ “गहन विचार-विमर्श” करने की मांग की।
पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस से इस बैठक में प्रतिनिधित्व की अपेक्षा थी, लेकिन उसने इस मंच से दूरी बना ली। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी इस बैठक में नहीं आए, उनकी पार्टी टीडीपी केंद्र में एनडीए की सहयोगी है।
जानिए परिसीमन पर किस नेता ने क्या कहा
- एमके स्टालिन: “हमें परिसीमन के खिलाफ एकजुट होना होगा, वरना हमारी पहचान और संसद में प्रतिनिधित्व खतरे में पड़ जाएगा। यह लड़ाई निष्पक्षता के लिए है और इसके लिए कानूनी रास्ते भी अपनाने होंगे।” अपने पहले संबोधन में स्टालिन ने जोर देकर कहा, “हमें इस बात पर पूरी तरह सहमत होना होगा कि मौजूदा जनसंख्या के आधार पर परिसीमन को स्वीकार नहीं किया जा सकता।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह ‘न्यायसंगत परिसीमन’ के विरोध में नहीं हैं।
- पिनराई विजयन: “परिसीमन एक खतरे की तरह मंडरा रहा है। केंद्र की भाजपा सरकार बिना सहमति के इसे लागू करना चाहती है, जिससे दक्षिण की सीटें कम होंगी और उत्तर को फायदा होगा।”
- रेवंत रेड्डी: “जनसंख्या आधारित परिसीमन से दक्षिण की सियासी ताकत कमजोर होगी। यह उन राज्यों के लिए सजा है, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को अपनाया।”
- डीके शिवकुमार: “यह लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं, बल्कि दक्षिण की अस्मिता और 1500 साल पुरानी विरासत की है। लोकतंत्र और संघवाद खतरे में हैं।”
- भगवंत मान: “भाजपा उन राज्यों की सीटें घटाना चाहती है, जहाँ वह हारती है। क्या जनसंख्या नियंत्रण के लिए दक्षिण और पंजाब को सजा मिलेगी?”
- नवीन पटनायक: “सीटों के लिए जनसंख्या ही एकमात्र पैमाना नहीं हो सकता। ओडिशा, पंजाब और दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण में अग्रणी रहे हैं।”
- के टी रामाराव (बीआरएस): “दक्षिण भारत देश की जीडीपी में 36% योगदान देता है, फिर भी जनसंख्या सिर्फ 19% है। संसद में मौजूदा सीटें बनाए रखनी चाहिए, हालांकि विधानसभाओं में सीटें बढ़ाई जा सकती हैं।”