हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जााने की घोषणा सुखद होने के साथ ही गहरी मानवीय संवेदना के प्रति आश्वस्ति भी जगाती है। विगत छह दशकों से निरंतर रच रहे विनोद जी की कविताएं गहरे मानवीय सरोकार से जुड़ी हैं। वह अमूमन मुखर राजनीतिक पक्षधरता के लिए नहीं जाने जाते, लेकिन वह खुद को वंचितों के बेहद करीब पाते हैं। गहरी संवेदना में डूबा कोई कवि ही ऐसी पंक्ति लिख सकता है, सबसे गरीब आदमी के लिए सबसे सस्ता डॉक्टर भी बहुत महंगा है! एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा भी था, ‘मैं हर उस व्यक्ति के साथ हूं, जो हाशिये पर है और जिंदगी के सबसे निचले पायदानों पर धकेल दिया गया है।’ कविताओं के साथ ही विनोद जी ने तीन उपन्यास भी लिखे हैं, जिन्होंने अपने अनूठे शिल्प के जरिये पाठकों के बीच अपनी खास जगह बनाई है। उनके पहले उपन्यास नौकर की कमीज पर सुप्रसिद्ध फिल्मकार दिवंगत मणि कौल फिल्म भी बना चुके हैं। विनोद जी अपने गद्य में फंतासी के जरिये ऐसा सम्मोहन रचते हैं, जिसमें हाथी पर बैठकर स्कूल जाते मास्टर जी भी पाठक को सहज लगने लगते हैं। उनकी कविताएं हों या उपन्यास या कहानियां, उनमें सबसे सुंदर तत्व दरअसल जीवन को सहजता से देखने की उनकी दृष्टि है। अचरज नहीं कि आज भी वह जीवन को पूरे उत्साह से देखते हैं और निरंतर उसी सहजता से लिख रहे हैं। खास यह भी कि वे इन दिनों बच्चों के लिए भी खूब लिख रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि विनोद जी का नाम जुड़ने से ज्ञानपीठ की परंपरा और समृद्ध हुई है।