हरियाणा से सटे शंभू-खनौरी बॉर्डर पर करीब सवा साल से धरने पर बैठे किसानों पर बुधवार देर रात की गई सख्ती ने पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार का बर्बर चेहरा सामने ला दिया है। कल ही किसान संगठनों की चंडीगढ़ में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उद्योग तथा व्यापार मंत्री पीयूष गोयल के साथ हुई ताजा बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी। इस वार्ता से लौट रहे किसान नेताओं सरवन सिंह और जगजीत सिंह डल्लेवाल को पंजाब की सीमा में घुसते ही हिरासत में ले लिया गया और फिर धरना स्थल पर पुलिस ने बुलडोजर के साथ भारी तोड़फोड़ कर किसानों को वहां से हटने को मजबूर कर दिया। यही नहीं, पड़ोसी हरियाणा ने भी इस बार्डर के नजदीक लगे बैरिकेड्स हटा दिए। किसानों की मांगों को लेकर केंद्र की एनडीए सरकार हो या पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार, दोनों का रवैया बेहद मनमाना है। चार साल पहले दिल्ली की सरहद पर हुए सालभर लंबे चले आंदोलन को केंद्र के भरोसे किसानों ने वापस तो ले लिया था, लेकिन आज वे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। जिस आम आदमी पार्टी को पंजाब की सत्ता तक पहुंचने में किसानों ने अहम भूमिका निभाई थी, उसने भी उनसे किनारा कर लिया है। यह सचमुच बेहद त्रासद है कि खेती-किसानी को जीडीपी में हिस्सेदारी से आंकने वाली आर्थिक नीतियों ने किसानों को हाशिये पर धकेल दिया है।