अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ब्रांडिंग एक्सपर्ट थे। अब राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी राजनीति पर भी ब्रांडिंग का असर साफ दिखाई दे रहा है। जगहों, स्मारकों का नाम बदलने होड़ अमेरिका में भी शुरू हो गई है। इसे डोनाल्ड ट्रंप की उस विचारधारा से जोड़कर देखा जा रहा, जिसे वो पूरे अमेरिका में थोपना चाहते हैं। यह कुछ कुछ उसी तर्ज पर जैसा भारत में नाम बदलने की परंपरा चल रही है।
“द वाशिंगटन पोस्ट” ने इस मामले पर खबर प्रकाशित की है। जिसके अनुसार हाल ही में, नॉर्थ कैरोलाइना के एक सैन्य अड्डे का नाम फिर से फोर्ट ब्रैग कर दिया गया, लेकिन इस बार ऐसा किसी कॉन्फेडरेट जनरल के सम्मान में नहीं किया गया। इसी तरह, वॉशिंगटन में “ब्लैक लाइव्स मैटर” प्लाज़ा को हटाने का काम शुरू हो गया है।
ट्रंप ने हाल ही में टेक्सास के एक वाइल्डलाइफ रिफ्यूज कैंप का नाम बदलकर 12 वर्षीय जोसलीन नुंगारे के नाम पर रख दिया, जो कथित रूप से अवैध प्रवासियों की हिंसा का शिकार हुई थी। ट्रंप इससे पहले अलास्का के डेनाली पर्वत का नाम बदलने और मैक्सिको की खाड़ी को “गुल्फ ऑफ अमेरिका” बताने की कोशिश कर चुके हैं।
ट्रंप की रणनीति नामों के जरिए अपनी विचारधारा को स्थापित करने की रही है। वे अपने राजनीतिक विरोधियों को भी उपनाम देते रहे हैं, जैसे “क्रूक्ड हिलेरी” और “लिटिल मार्को”। 2015 में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद, उन्होंने फ्लोरिडा के गवर्नर जेब बुश को “लो-एनर्जी जेब” और टेक्सास के सीनेटर टेड क्रूज़ को “लायन टेड” (झूठा टेड) कहा।
ट्रंप और ब्रांडिंग की राजनीति
जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मीडिया और सार्वजनिक मामलों के प्रोफेसर ईथन पोर्टर का कहना है, “ट्रंप पहले एक ब्रांडिंग एक्सपर्ट थे, राजनीति में आने से पहले वे यही करते थे। और ब्रांडिंग का सबसे अहम पहलू नाम होते हैं। अब जब उनके पास अधिक शक्ति है, तो वे पूरे देश को अपना डोमेन मानते हैं।”
ट्रंप समर्थकों का मानना है कि ये बदलाव पारंपरिक नामों को पुनः स्थापित करने का एक प्रयास है, जिसे “वोक” (अत्यधिक उदारवादी) दौर में हटा दिया गया था। ट्रंप प्रशासन के पहले प्रेस सचिव सीन स्पाइसर कहते हैं, “इसका मुख्य उद्देश्य परंपराओं और देशभक्ति को फिर से लोगों के सामने लाना है।” जबकि विरोधियों के अनुसार यह इतिहास को बदलने की कोशिश है।