नई दिल्ली। चांदी के बाजार में इन दिनों हलचल मची है। कीमतें पिछले कुछ दिनों में 2 लाख के पार पहुंच चुकी हैं। दिसंबर में ही कीमतों में 15,000 रुपये तक का उछाल आया है, जो निवेशकों के बीच उत्साह तो पैदा कर रहा है, लेकिन सवाल भी खड़े कर रहा है कि यह तेजी कितनी टिकाऊ रहेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच चांदी न केवल सुरक्षित निवेश का विकल्प बन रही है, बल्कि हरित ऊर्जा और तकनीकी क्रांति की चाबी भी साबित हो रही है।
चांदी की कीमतों में इस साल 100% से ज्यादा की तेजी आई है, जो सोने को भी पीछे छोड़ रही है। मुख्य वजहें हैं वैश्विक सप्लाई की कमी और मांग का बेतहाशा बढ़ना। सिल्वर इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक 2025 में बाजार में 200 मिलियन औंस से ज्यादा का घाटा रह सकता है, जो पांचवें साल में लगातार जारी है।
खनन उत्पादन ठहरा हुआ है, जबकि मांग आसमान छू रही है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों ने डॉलर को कमजोर किया है, जिससे कीमती धातुओं की ओर निवेशकों का रुझान बढ़ा। इसके अलावा, अमेरिकी टैरिफ नीतियां चांदी के आयात को महंगा बना सकती हैं।
औद्योगिक स्तर रिकॉर्ड तोड़ मांग
चांदी अब सिर्फ आभूषणों तक सीमित नहीं। वैश्विक स्तर पर इसकी 58% मांग औद्योगिक उपयोग से आ रही है, जो 2025 में नया रिकॉर्ड बनाने को तैयार है। सिलर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे क्षेत्रों में चांदी की चालकता और थर्मल गुणों की वजह से इसकी जरूरत दोगुनी हो गई है।
सिल्वर इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2024 में कुल औद्योगिक खपत 1.16 बिलियन औंस के पार पहुंची, जिसमें सोलर फोटोवोल्टेइक (पीवी) सेक्टर ने 17% हिस्सा लिया। 2025 में यह आंकड़ा और ऊंचा चढ़ सकता है, क्योंकि चीन में सोलर क्षमता 45% बढ़ चुकी है और ईवी बैटरी में चांदी का उपयोग बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले पांच सालों में पीवी और ईवी सेक्टर अकेले 150 मिलियन औंस अतिरिक्त मांग पैदा करेंगे।
आभूषण बाजार: भारत में चमक बरकरार लेकिन वैश्विक चुनौतियां भी
दूसरी ओर आभूषण क्षेत्र में चांदी की खपत स्थिर लेकिन चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। 2024 में ज्वेलरी फैब्रिकेशन 208.7 मिलियन औंस तक पहुंचा, जिसमें भारत का योगदान सबसे बड़ा रहा। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में सोने के विकल्प के रूप में। हालांकि 2025 में वैश्विक स्तर पर 4% की गिरावट की आशंका है, क्योंकि ऊंची कीमतें उपभोक्ताओं को प्रभावित कर रही हैं। भारत में आयात शुल्क में कटौती और ब्रांडेड ज्वेलरी की बढ़ती लोकप्रियता ने इसे संभाला है, लेकिन चीन जैसे बाजारों में आर्थिक मंदी ने नुकसान पहुंचाया। कुल मिलाकर, आभूषण खपत औद्योगिक मांग से पीछे रह गई है, लेकिन सांस्कृतिक महत्व इसे जीवंत रखे हुए है।
भविष्य में निवेश का मौका?
विशेषज्ञ चांदी को 2025-2030 के लिए आकर्षक निवेश बता रहे हैं। यूबीएस के अनुसार अगले साल जून तक कीमतें 42 डॉलर प्रति औंस (लगभग 3,500 रुपये प्रति 10 ग्राम) छू सकती हैं, जबकि लंबे समय में 100 डॉलर का लक्ष्य संभव है। स्प्रॉट इन्वेस्टमेंट के विश्लेषक कहते हैं कि स्ट्रक्चरल डेफिसिट और इंडस्ट्रियल ग्रोथ से चांदी का बुल मार्केट मजबूत हो रहा है, जो इस साल 25% की तेजी का सबूत है। हालांकि, वे सलाह देते हैं कि पोर्टफोलियो का 10-15% ही चांदी में लगाएं, क्योंकि अस्थिरता बनी रहेगी। फिडेलिटी इंटरनेशनल जैसे संस्थान इसे “अंडरवैल्यूड मॉनेटरी मेटल” बता रहे हैं, जो विकास पर लीवरेज देगी।

