नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक बेहद विवादास्पद फैसले को रद्द कर दिया और उसकी भाषा को पूरी तरह असंवेदनशील करार दिया जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की के प्राइवेट पार्ट्स पकड़ना, पायजामे की डोरी तोड़ना और पुलिया के नीचे घसीटने की कोशिश करना “रेप का प्रयास” नहीं माना जा सकता।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने साफ कहा कि इस तरह की टिप्पणियां पीड़ितों को इतना डरा सकती हैं कि वे अपनी शिकायत ही वापस ले लें या कोर्ट में झूठ बोलने पर मजबूर हो जाएं। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि अब यह मामला आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (बलात्कार के प्रयास) के तहत ही चलेगा।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में 10 नवंबर 2021 की शाम एक 14 साल की नाबालिग लड़की अपनी मां के साथ घर लौट रही थी। रास्ते में गांव के ही पवन, आकाश और अशोक ने उसे बाइक पर छोड़ने का बहाना किया। बीच रास्ते में पवन और आकाश ने उसके निजी अंगों को पकड़ा, आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और पायजामे का नाड़ा तक तोड़ दिया। लड़की के चीखने-चिल्लाने पर जब दो ग्रामीण दौड़े आए तो आरोपियों ने देशी कट्टा दिखाकर उन्हें धमकाया और भाग निकले।
ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों पर बलात्कार और बलात्कार के प्रयास की गंभीर धाराएं लगाई थीं। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने मार्च 2025 में अपने एकल पीठ के फैसले में इन धाराओं को हटा दिया और केवल छेड़खानी व पॉक्सो की हल्की धाराएं (IPC 354B तथा पॉक्सो 9/10) रहने का आदेश दे दिया।
तीन अन्य आरोपियों की रिवीजन याचिका भी स्वीकार कर ली गई। इस फैसले के खिलाफ पूरे देश में जबरदस्त गुस्सा भड़का था। महिला संगठनों, वकीलों और कई राजनीतिक दलों ने इसे पीड़िता के साथ अन्याय बताया था।
आखिरकार 8 दिसंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का वह पूरा आदेश खारिज कर दिया और मूल गंभीर धाराओं को बहाल करते हुए मामले की सुनवाई फिर से शुरू करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो पीड़ित को हिम्मत दे, उसे डराए नहीं।

