नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
भारत में पिछले पांच वर्षों में 65 लाख से ज़्यादा बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है, जिनमें से लगभग 30 लाख यानी लगभग आधी लड़कियां हैं। गुजरात में भी यह संख्या 341% बढ़ी है, जो चौंकाने वाला तो है ही, साथ ही गंभीर समस्याओं का संकेत भी है।
राज्य-स्तरीय विश्लेषण के अनुसार 2025-26 में स्कूल न जाने वाले बच्चों की सबसे ज़्यादा संख्या गुजरात में दर्ज की गई। राज्य ने 2.4 लाख ऐसे छात्रों की पहचान की जो अब स्कूल नहीं जा रहे हैं, जिनमें किशोर आयु वर्ग की 1.1 लाख लड़कियां शामिल हैं।
संसद में हाल ही में दिए गए एक बयान से देश में स्कूल छोड़ने वालों की संख्या का पता चलता है। पिछले पांच वर्षों में 65.7 लाख बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है और इनमें से लगभग आधे (29.8 लाख) किशोरियां थीं। यह आंकड़े महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस सांसद रेंकुआ चौधरी के एक प्रश्न के उत्तर में दिए।
गुजरात में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में अचानक हुई वृद्धि ने ध्यान खींचा है। 2024 में, राज्य में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या केवल 54,541 थी। इस साल 2.4 लाख तक पहुँचना 340 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्शाता है।
स्कूल न जाने वाली लड़कियों की संख्या, जो 2024 में सिर्फ एक थी, 2025 में बढ़कर 1.1 लाख हो जाएगी। असम में कुल 1,50,906 बच्चे स्कूल नहीं जाते, जिनमें 57,409 लड़कियां थीं। उत्तर प्रदेश में 99,218 बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, जिनमें 56,462 लड़कियां शामिल हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में राज्य सरकार ने 50 से कम विद्यार्थियों वाले स्कूलों को निकटवर्ती संस्थानों में विलय कर दिया था, इस निर्णय को अब स्कूल छोड़ने की बढ़ती प्रवृत्ति के मद्देनजर देखा जा रहा है।
केंद्र ने कई चुनौतियों की सूची दी है जो लड़कियों के स्कूल छोड़ने का कारण बनती हैं। इनमें प्रवासन, गरीबी, घरेलू ज़िम्मेदारियां, बाल श्रम और सामाजिक दबाव शामिल हैं। अधिकारियों ने कहा कि ये मुद्दे प्रायः लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए लंबे समय तक स्कूल में रहने से रोकते हैं।
संसद में बताया गया कि राज्य सरकारें स्कूल छोड़ चुके छात्रों की पहचान करने और उन्हें पुनः नामांकित करने के लिए विशेष अभियान चला रही हैं। पात्र छात्रों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत उनकी फीस भी वापस की जाती है।
केंद्र ने “बच्चों को स्कूल वापस लाओ” अभियान भी शुरू किया है और राज्यों, स्कूल प्रबंधन समितियों और स्थानीय निकायों से बच्चों का पता लगाने और उन्हें पुनः नामांकित करने के लिए मिलकर काम करने को कहा है।संसद को बताया गया कि 2024-25 में समग्र शिक्षा के तहत 56,694.70 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिसमें केंद्र ने 34,45,820 करोड़ रुपये का योगदान दिया।

