नई दिल्ली। देश में इस वक्त वायु प्रदूषण की चर्चा जोरों पर है। दिल्ली के इंडिया गेट पर प्रदर्शन भी देखने को मिले हैं। वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाने की घटनाओं को जिम्मेदार माना जाता रहा है। लेकिन इस बीच भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के नए आंकड़ों ने चौंकाने वाला खुलासा किया है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस साल भी मध्य प्रदेश लगातार दूसरी बार भारत में फसल अवशेष (पराली) जलाने का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है। छह उत्तरी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली) में अब तक हुई कुल पराली जलाने की घटनाओं में करीब आधी घटनाएं अकेले मध्य प्रदेश में ही दर्ज की गई हैं।
लंबे समय से पंजाब और हरियाणा को दिल्ली की खराब हवा के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है, लेकिन नए आंकड़े बताते हैं कि दोनों राज्यों ने पराली जलाने की प्रवृत्ति पर काफी सफलतापूर्वक काबू पा लिया है। वहीं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान इस दिशा में उतनी तेजी नहीं दिखा पाए हैं।
आईएआरआई के सीआरईएएमएस प्रोजेक्ट के सैटेलाइट डेटा के अनुसार, इस सीजन में अब तक इन छह राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 28,529 बार फसल अवशेष जलाए जाने की घटनाएं दर्ज हुई हैं।
- पंजाब में घटनाएं 36,663 से घटकर सिर्फ 5,092 रह गईं
- हरियाणा में 2,303 से गिरकर 623 पर आ गईं
- इसके उलट मध्य प्रदेश में 12,500 से बढ़कर 14,165 हो गईं
- उत्तर प्रदेश में 3,996 से बढ़कर 5,803
- राजस्थान में 1,775 से बढ़कर 2,841 हो गईं
टॉप-10 जिलों में सात जिले मध्य प्रदेश के
आंकड़ों में दिलचस्प बात यह है कि इस बार सबसे ज्यादा पराली जलाने की घटनाओं वाले टॉप-10 जिलों में सात जिले मध्य प्रदेश के हैं श्योपुर, होशंगाबाद, दतिया, जबलपुर, ग्वालियर, सिवनी और सतना। बाकी तीन में राजस्थान का हनुमानगढ़ और पंजाब का तरनतारन व संगरूर शामिल हैं। खास तौर पर श्योपुर जिले में इस साल अब तक 2,325 घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं।
पिछले साल (2024) पूरे सीजन में मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 16,360 घटनाएं हुई थीं, जबकि पंजाब 10,909 के साथ दूसरे नंबर पर था। इस बार पहली दफा उत्तर प्रदेश पंजाब से आगे निकलकर दूसरे स्थान पर पहुंच गया है।
कुल मिलाकर पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में 50-80 फीसदी तक भारी गिरावट आई है, जबकि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह समस्या पुराने स्तर पर ही बरकरार है या थोड़ी बढ़ भी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य प्रदेश में धान की खेती तेजी से बढ़ने और मानसून के बदलते पैटर्न के कारण यह समस्या गंभीर होती जा रही है।

