आजादी के 78 साल बाद, 21 नवंबर 2025 को भारत में श्रम कानूनों (LABOUR LAW) का सबसे बड़ा बदलाव हुआ। केंद्र सरकार ने 29 पुराने कानूनों को खत्म कर चार नए श्रम कोड पूरे देश में लागू कर दिए। भाजपा सरकार इसे ‘मजदूरों की जिंदगी बदलने वाला ऐतिहासिक कदम’ बता रही है, लेकिन देश की 10 सबसे बड़ी ट्रेड यूनियनों ने इसे ‘मजदूरों के साथ धोखा’ करार दिया है। 26 नवंबर को संविधान दिवस पर पूरे देश में हड़ताल का ऐलान हो चुका है।इस एक्सप्लेनर में हम समझेंगे: इन कोड्स का इतिहास, सरकार के 10 बड़े वादे, यूनियनों के 10 प्रमुख आरोप, और भविष्य में क्या असर हो सकता है। क्या ये सुधार रोजगार बढ़ाएंगे या असुरक्षा?
इतिहास से वर्तमान
1947 में आजादी के समय भारत में 150 से ज्यादा श्रम कानून थे – केंद्र के 44 बड़े कानून और हर राज्य के 100 से अधिक नियम। एक ही मुद्दे पर चार राज्यों में चार अलग नियम! कंपनियों को 25 तरह के रजिस्ट्रेशन और रिटर्न भरने पड़ते थे। ये ज्यादातर ब्रिटिश काल के थे, जैसे ट्रेड यूनियंस एक्ट 1926, फैक्ट्रीज एक्ट 1948, मिनिमम वेजेज 1948, और ग्रेच्युटी एक्ट 1972। सुविधाएं कम, जटिलताएं ज्यादा।
1991 के आर्थिक सुधारों के बाद विदेशी कंपनियां आईं, लेकिन शिकायत यही थी: “भारत में हायर-फायर नामुमकिन, लेबर लॉ बहुत सख्त।” विश्व बैंक और IMF ने लगातार रिफॉर्म की मांग की। 2002 में राष्ट्रीय श्रम आयोग ने सिफारिश की: सभी कानूनों को 4-5 कोड में एकीकृत करें। लेकिन सरकारें हिचकिचाईं।2014 में मोदी सरकार के आने पर लेबर रिफॉर्म टॉप एजेंडे में आया। 2015 से काम शुरू, 2017-18 में ड्राफ्ट तैयार। 1 फरवरी 2017 को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में ऐलान किया: “44 पुराने कानून चार कोड में बदलेंगे।” 2019 में पहला कोड (वेतन संहिता) पास हुआ, 2020 में बाकी तीन। लेकिन संसद में हंगामा, विपक्ष का वॉकआउट, और सड़कों पर 25 करोड़ लोगों की ऐतिहासिक हड़ताल। इसके बाद कोरोना ने सब रोक दिया। राज्यों को नियम बनाने थे, लेकिन 15 से ज्यादा राज्य तैयार नहीं हुए। ट्रेड यूनियनों का विरोध जारी रहा। आखिरकार, 21 नवंबर 2025 को 29 कानून खत्म, चार कोड लागू हुए । संसद से पांच साल पुरानी मंजूरी अब औपचारिक रूप ली।
चार नए श्रम कोड: क्या हैं ये?
29 पुराने कानूनों को समेटकर बने ये चार कोड श्रम मुद्दों को सरल बनाते हैं:
वेतन संहिता 2019 – वेतन, बोनस, ओवरटाइम से जुड़े नियम।
औद्योगिक संबंध संहिता 2020 – यूनियन, हड़ताल, छंटनी, विवाद निपटान।
सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 – पीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, गिग वर्कर्स।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियां संहिता 2020 – काम के घंटे, सुरक्षा, इंस्पेक्शन।
सरकार के 10 बड़े वादे: ‘मजदूरों के हक मजबूत होंगे’
सरकार का दावा: ये कोड निवेश बढ़ाएंगे, रोजगार सृजित करेंगे, और 2015 के 19% से 2025 में 64% श्रमिकों को सोशल सिक्योरिटी कवर देंगे।
हर मजदूर को न्यूनतम वेतन की गारंटी
ओवरटाइम पर दोगुना वेतन – 8 घंटे से ज्यादा काम पर हर घंटे का दोगुना भुगतान अनिवार्य।
महिलाओं को पुरुषों बराबर सैलरी – एक ही काम पर भेदभाव पर जुर्माना-सजा।
गिग वर्कर्स को पीएफ-पेंशन-बीमा – स्विगी, जोमैटो, उबर-ओला ड्राइवर्स को पहली बार सोशल सिक्योरिटी।
ग्रेच्युटी सिर्फ 1 साल में – फिक्स्ड टर्म जॉब में 1 साल पूरा होने पर ग्रेच्युटी।
लिखित नियुक्ति पत्र अनिवार्य – सैलरी, टाइमिंग, छुट्टी सब लिखित में।
40+ उम्र वालों को फ्री हेल्थ चेकअप – सालाना मुफ्त मेडिकल जांच कंपनी का दायित्व।
मातृत्व अवकाश 26 हफ्ते – पहले 12-18 हफ्ते, अब 6 महीने पेड लीव।
महिलाओं को रात शिफ्ट की छूट – सुरक्षा, ट्रांसपोर्ट के साथ सहमति पर।
500+ कर्मचारियों वाली फैक्ट्री में सुरक्षा समिति – मजदूर-मैनेजमेंट की संयुक्त टीम दुर्घटनाओं पर नजर।
ट्रेड यूनियनों का गुस्सा
10 प्रमुख यूनियनों (CITU, AITUC, INTUC आदि) ने इन्हें ‘मजदूर-विरोधी’ बताया। उनका कहना: ये मालिकों को फायदा देंगे, मजदूरों की सुरक्षा छीनेंगे।
हायर-फायर आसान – 300 कर्मचारियों तक की कंपनी बिना अनुमति छंटनी कर सकेगी (पहले 100), नौकरी की सुरक्षा खत्म।
ठेका प्रथा को खुली छूट – फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट सभी क्षेत्रों में, स्थायी नौकरियां खत्म, लाभ छिनेंगे।
हड़ताल नामुमकिन – 14 दिन पहले नोटिस जरूरी, 60 दिन में दूसरी हड़ताल禁; नोटिस न देने पर बर्खास्तगी।
यूनियन बनाना मुश्किल – मान्यता के लिए 51% सदस्य जरूरी (पहले 10%), सौदेबाजी का अधिकार छिनेगा।
12 घंटे शिफ्ट वैध – पहले 8-9 घंटे, अब ओवरटाइम सहित 14-15 घंटे; सेहत को खतरा।
इंस्पेक्शन सिस्टम कमजोर – रैंडम/ऑनलाइन, मालिक खुद सर्टिफिकेट भरेंगे; दुर्घटनाएं बढ़ेंगी।
असंगठित मजदूर बाहर – 50 करोड़+ रेहड़ी-पटरी, निर्माण मजदूरों को कोई ठोस लाभ; रजिस्ट्रेशन तंत्र कमजोर।
राज्यों-यूनियनों की आवाज दबी – केंद्र को अंतिम अधिकार, कंसल्टेशन नाममात्र; कोई वास्तविक चर्चा नहीं।
मालिकों को मनमानी – नियम खुद बनाने, दंडित करने की स्वतंत्रता; सुरक्षा मानक ढीले।
बिना चर्चा पास – 2019-20 लॉकडाउन में जल्दबाजी, ट्राइपार्टाइट कंसल्टेशन नहीं, विपक्ष निलंबित।
भारतीय मजदूर संघ (BMS), भाजपा-RSS समर्थित, ने कोड्स का स्वागत किया: ‘सरलीकरण से रोजगार बढ़ेगा।’ लेकिन बाकी 10 यूनियनों ने 26 नवंबर को हड़ताल ऐलान किया ।
भविष्य का सवाल
सरकार इसे ऐतिहासिक सुधार बता रही है – “नियम आसान होंगे, FDI आएगा, निवेश बढ़ेगा, लाखों नई नौकरियाँ पैदा होंगी”, जबकि 10 बड़ी ट्रेड यूनियनें इसे “लेबर फ्लेक्सिबिलिटी का नया नाम” कहकर खारिज कर रही हैं और दावा कर रही हैं कि हायर-एंड-फायर, ठेका प्रथा और 12 घंटे की शिफ्ट से मालिकों को मनमानी की खुली छूट मिलेगी, जबकि मजदूरों की नौकरी और सेहत दोनों खतरे में पड़ जाएँगी। केंद्र ने 21 नवंबर 2025 से चारों कोड लागू कर दिए हैं, लेकिन ज्यादातर राज्य अभी तक अपने नियम नहीं बना पाए हैं, इसलिए असल तस्वीर अगले 6-12 महीनों में ही साफ होगी कि ये सुधार मजदूरों की जिंदगी बदलते हैं या सिर्फ मालिकों की सुविधा बढ़ाते हैं। आप क्या सोचते हैं – ये कोड मजदूरों के हक में हैं या मालिकों के पक्ष में? 26 नवंबर की प्रस्तावित हड़ताल को सपोर्ट करेंगे या नहीं?

