बेरोजगारी, पलायन और अफसरशाही के खिलाफ बिहार में जनमानस ने तख्ता नहीं पलटा… बल्कि तख्त को उठाकर एनडीए के हवाले कर दिया है। मीडिया और एजेंसियों के एग्जिट पोल और विश्लेषण धरे के धरे रह गए। ऐसे जनादेश की अपेक्षा शायद ही एनडीए के किसी ने की होगी। बिहार के 20 वर्षों के राजनीतिक इतिहास को देखें, तो यही नजर आया की नीतीश जिधर गए, जनादेश उधर ही गया।
एनडीए 200 का आंकड़ा पार कर 202 पर पहुंच गया, वहीं महागठबंधन महज 35 सीटों पर सिमट गया। हार ऐसी की 15 जिलों में खाता तक नहीं खुला और 10 जिलों में महज एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा। सत्तारूढ़ पार्टी में यह परिवर्तन हुआ कि इस बार बीजेपी 20.08 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 89 सीट पाकर बड़े भाई और जदयू 19.25 फीसद वोट शेयर पा कर 85 सीट के साथ दूसरे नंबर पर रही।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महिला वोट बैंक की वजह से इस तरह का चुनावी रिजल्ट आया है। पत्रकार और जानकार मान रहे हैं कि एनडीए की इस सफलता में महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई है। 2025 विधानसभा चुनावों ने एक नई राजनीतिक दिशा दिखाई है, जहां महिलाओं की भागीदारी ने जाति और पारिवारिक बाधाओं को पार कर एक मजबूत किसान और लाभार्थी आधारित वोट बैंक का निर्माण किया है।
इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी इतिहास रच गई। बिहार विधानसभा की 243 सीट के लिए हुए 2025 के चुनाव में महिलाओं ने मताधिकार का इस्तेमाल जमकर किया। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल मतदान 67.13 प्रतिशत रहा था। इसमें महिलाओं की हिस्सेदारी 71.78 प्रतिशत थी, जबकि पुरुषों ने 62.98 प्रतिशत मतदान किया था।
सूद समेत लड़कियों ने नीतीश जी को थैंक्स कहा
पेशे से शिक्षिका और लेखिका स्वाति कुमारी बताती हैं कि,बिहार की राजनीति दशकों से जाति समीकरण पर चलती रही है। लेकिन 2025 के चुनाव ने साफ कर दिया कि महिला वोट अब स्वतंत्र, निर्णायक और जाति-निरपेक्ष है। नीतीश कुमार ने महिलाओं को एक नए वोट बैंक के तौर पर स्थापित कर दिया है। 3.5 करोड़ महिला मतदाताओं वाला बिहार अब किसी भी राजनीतिक दल के लिए ‘वोट बैंक’ नहीं, बल्कि ‘वोट डिटरमिनर’ बन चुका है।”
रिटायर्ड अधिकारी और लेखक अरुण कुमार झा कहते हैं, ‘2005 से पहले बिहार में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति बहुत भयावह थी। घर से निकलना सपना था। उस वक्त शुरू-शुरू में बिहार में झुंड की झुंड लड़कियां अपने स्कूल ड्रेस में साइकिल से स्कूल जाने लगी। नया बिहार जैसा लग रहा था। वक्त आया तो इस बार सूद समेत उन्होंने नीतीश जी को थैंक्स कहा है।’
पत्रकार निधि बताती हैं कि ‘अगर आप नीतीश कुमार की पिछले 20 वर्षों की राजनीति देखिए, तो वह ‘न्याय के साथ विकास’ पर केंद्रित रही। आखिरकार न्याय की शुरुआत कहां से होती है? विचार नहीं विकास के मायनों में बिहार एक पिछड़ा राज्य है। बावजूद इसके नीतीश कुमार ने बिहार में महिलाओं को सबसे बड़ा वोट बैंक बना दिया है। महिलाओं पर केंद्रित राजनीति में देश का कोई दूसरा नेता नीतीश कुमार का हाथ नहीं पकड़ सकता। शराबबंदी पर राजस्व हो या राजनीति हर तरह से वो घेरे गए, लेकिन नीतीश कुमार शराबबंदी पर अडिग रहे। नतीजा सबके सामने हैं। महिलाओं ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर नीतीश कुमार को आशीर्वाद दिया है।’
जेएनयू के छात्र सत्यम बिहार की राजनीति की पढ़ाई कर रहे हैं। वह कहते हैं कि बिहार घूम लीजिए। पुलिस हो शिक्षिका हो या अस्पताल में काम कर रही कर्मचारी हो या सचिवालय में अधिकारी। लड़कियों की अच्छी खासी संख्या है। तमाम कानूनी अड़चन के बाद भी पंचायत और नगर परिषद के सीटों में महिलाओं के लिए आरक्षण दिया। इतनी बड़ी संख्या में जीविका दीदी को तैयार करना जो धर्म और जाति के बंधन को तोड़ नीतीश कुमार को आशा का प्रतीक बनाई। आशा, आंगनवाड़ी, रसोइया में महिलाओं की अच्छी खासी संख्या है। यही तो न्याय साथ विकास है। राजनीतिक विश्लेषक और कई विपक्षी दल यह भूल जाते हैं कि महिला समाज का हक 50 % है।
अगर उम्मीदवारी के लिहाज से देखा जाए, तो इस बार दोनों चरणों के कुल 2616 प्रत्याशियों में महिलाओं की संख्या 255 थी। प्रमुख पार्टियों में जनसुराज ने 25, एलजेपी ने 06, बीजेपी ने 12, जेडीयू ने 13 तो राजद ने 23, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने 02 और आरएलएम ने 01 कांग्रेस ने 05 और वीआईपी-सीपीआई (एमएल) ने 01-01 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था।
इनमें बीजेपी की 10, जेडीयू की 09, राजद और एलजेपी (आर) की 03-03, हम की 02 और आरएलएम की 01 यानी कुल बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार 28 महिला उम्मीदवारों ने शानदार जीत दर्ज की है। इससे पहले 2020 में यह संख्या 25 तो 2010 में 34 थी।
‘10,000 शक्ति’ के सामने ध्वस्त हुआ महागठबंधन

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ दिनों पहले लाया गया था। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत जीविका योजना से जुड़ी पात्र महिलाओं को स्वरोजगार के लिए मदद के तौर पर 10 हजार रुपये दिए गए। उनके काम की प्रगति संतोषजनक पाई जाती है, तो उन्हें आगे 2 लाख रुपये तक आर्थिक सहायता और दी जाएगी।
इस योजना के तहत अब पांच किस्तों में पैसा ट्रांसफर हो चुका है। पहली किस्त का पैसा 26 सितंबर को भेजा गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75 लाख महिलाओं के खाते में ऑनलाइन पैसा भेजा। इसके बाद, 3 अक्टूबर, 6 अक्टूबर, 17 अक्टूबर और 24 अक्टूबर को योजना के तहत लाभार्थियों के खाते में पैसा ट्रांसफर किया गया। यह सिर्फ 10,000 रुपये का बैंक ट्रांसफर नहीं, बल्कि राजनीति का वह सीक्रेट कोड था जिसने बिहार की सत्ता का पूरा समीकरण बदल दिया।
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच RJD ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं को सीधे बैंक खाते में 10,000 रुपये देने पर सवाल भी उठाए। राजद सांसद मनोज झा ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि 17, 24 और 31 अक्टूबर को पैसा भेजा गया और अगली किस्त 7 नवंबर को दी जानी है, जो वोटिंग से तीन दिन पहले है। चुनाव के दिनों में आम लोगों को मुफ्त की सौगात देकर उनका समर्थन हासिल करने की प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट भी नाराजगी जता चुका है।
महिला वोटरों को लुभाने के लिए तेजस्वी यादव ने भी ‘माई-बहन मान योजना’ शुरू करने की बात कही थी। इस योजना के तहत उनकी सरकार बनने पर हर गरीब और वंचित महिला को 2500 रुपये दिए जाने का वादा किया गया था।
चुनावी अभियान के दौरान विपक्ष ने दावा किया कि सरकार बनने के बाद पैसे वापस लिए जाएंगे। जिसके बाद नीतीश कुमार ने इसे झूठ बताते हुए महिलाओं को भरोसा दिया था कि एक भी पैसा वापस नहीं जाएगा। इस ट्रेंड को पहले मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना, झारखंड की माईयां सम्मान और महाराष्ट्र की मेरी बहन योजना में भी देखा था। इन योजनाओं ने चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित किया था।
चुनावी अभियान में महिलाओं की भूमिका

बीजेपी और जदयू दोनों पार्टियों ने पूरी चुनावी अभियान में महिला केन्द्रित स्ट्रेटजी पर काम किया। नीतीश सरकार महिला केंद्रित योजनाओं की घोषणा कर रही थी, वहीं बीजेपी ने छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली से महिला कार्यकर्ताओं को बिहार चुनावी अभियान में भेजा था। भाजपा से जुड़ी राज्यसभा सांसद धर्मशिला गुप्ता बताती हैं कि चुनावी अभियान में आ रही महिलाओं का चयन केन्द्रीय स्तर पर हुआ और ये महिलाएं चुनाव से तीन महीने पहले ही बिहार आ गई थी। पार्टी ने महिला महिलाओं का समन्वय स्थापित करके बूथ स्तर पर काम किया।
महिला कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के साथ बैठक करके उन्हें केंद्र और राज्य की योजनाएं खासतौर पर पक्का घर, शौचालय, उज्ज्वला योजना आदि के बारे में बताया। उन पर महिलाओं को मतदान केंद्र तक लाने की जिम्मेदारी भी थी। बिहार में महिला मतदाताओं की कुल संख्या तीन करोड़ 50 लाख है।
वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट जीविका से जुड़ी दीदियों की संख्या एक करोड़ 40 लाख से अधिक है, जो वर्तमान में करीब 11 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) से जुड़ी है। गौरतलब है कि हर बूथ पर महिलाओं को पहुंचाने के लिए जीविका के कैडर का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा आंगनबाड़ी सहायिकाएं और सेविकाएं और आशा कार्यकर्ता भी खूब सक्रिय रहीं।
महिलाओं के लिए बिहार सरकार की मुख्य योजना
नीतीश सरकार के नेतृत्व में महिलाओं को लेकर इन निम्नलिखित योजनाओं का असर धरातल पर सबसे अधिक देखने को मिला है। सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के द्वारा जारी सूचना एवं आंकड़ों के मुताबिक राज्य के कई क्षेत्रों में महिलाओं को आरक्षण की व्यवस्था की गई है। वर्ष 2006 में पंचायत में 50% आरक्षण,प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति में 50% आरक्षण,वर्ष 2007 में नगर निकायों में 50% आरक्षण, वर्ष 2013 में बिहार पुलिस अन्य सभी सरकारी सेवाओं में 35% आरक्षण और मेडिकल, इंजीनियरिंग एवं स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध शैक्षणिक संस्थाओं के नामांकन में 33% आरक्षण की व्यवस्था महिलाओं के लिए की गई है।
मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना के अंतर्गत बेटियों के जन्म से लेकर स्नातक तक की पढ़ाई के लिए सभी जरूरतों पर ध्यान रखते हुए विभिन्न चरणों में ₹94,100 की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। वहीं मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना के अंतर्गत सरकारी विद्यालयों में कक्षा 9वीं में पढ़ने वाली छात्राओं को साइकिल के लिए ₹3 हजार का प्रावधान है।
एनडीए की सफलता में सबसे अहम रही जीविका योजना। जीविका महिला सशक्तिकरण के लिए बिहार सरकार का मुख्य कदम है। राज्य में महिलाओं के 11 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों का गठन हो चुका है। जिससे राज्यभर में 1 करोड़ 40 लाख से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी है। जीविका समूहों के माध्यम से अब तक 10.40 लाख से अधिक बैंक खाते खोले जा चुके हैं।
मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के अंतर्गत बी.पी.एल अथवा ₹60 हजार वार्षिक से कम आय वाले परिवार की कन्या के विवाह पर ₹5 हजार की सहायता की व्यवस्था है।
नतीजे दिखाते हैं कि इन सारे ही प्रयासों का एनडीए को भरपूर फायदा मिला।

