पाकिस्तान ने तीन दिन पहले अपने संविधान में 27वां संशोधन कर न केवल सैन्य प्रमुख जनरल असीम मुनीर को और ताकतवर बना दिया है, बल्कि देश में अलग से एक संवैधानिक अदालत की स्थापना का प्रावधान कर देश की सर्वोच्च अदालत को कमजोर कर दिया है।
इस संशोधन के बाद जनरल असीम मुनीर को चीफ फील्ड मार्शल का दर्जा मिल गया है और सेवानिवृत्ति के बाद भी वह दंड से मुक्त रहेंगे। यह संशोधन अपने आपमें यह समझने के लिए काफी है कि वहां भले ही शाहबाज शरीफ की अगुआई वाली लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार है, लेकिन सत्ता का असली केंद्र सेना ही है।
शरीफ सरकार विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद यह संविधान संशोधन पारित करवाने में सफल हुई है। पाकिस्तान के 27 वें संविधान संशोधन का दूसरा और कहीं अधिक महत्वपूर्ण प्रावधान संवैधानिक अदालत के गठन से संबंधित है। इसके गठन के बाद देश के सारे संवैधानिक मामले इसी अदालत में सुने जाएंगे।
इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है और यह कहा जा रहा है कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की हैसियत एक जिला अदालत जैसी रह जाएगी तो इसे समझा जा सकता है। वास्तव में यह कदम न्यायपालिका की स्वायत्तता पर सीधे दखल है और इसने सुप्रीम कोर्ट और सरकार को आमने सामने ला दिया है।
इससे नाराज सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने इस्तीफा दे दिया है और आने वाले दिनों में कुछ और जज इस्तीफा दे दें तो हैरत नहीं। दरअसल इस कदम के जरिये संविधान को भी निशाना बनाया गया है, जैसा कि इस्तीफा देने वाले एक जज जस्टिस मंसूर अली ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि संविधान की कब्र पर रखी गई है 27 वें संशोधन की नींव!
यह सचमुच विडंबना ही है कि 1947 में विभाजन के बाद अस्तित्व में आए पाकिस्तान में हर संस्थाएं लगातार कमजोर होती गई हैं। संविधान को दांव पर लगा देने का यह पहला मामला नहीं है। पाकिस्तान में 1956 में पहला संविधान अस्तित्व में आ सका था, लेकिन 1958 में राष्ट्रपति सिकंदर मिर्जा ने देश में पहली बार मार्शल लॉ लागू कर अयूब खान को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया।
नतीजतन वहां 1962 में दूसरा संविधान अस्तित्व में आया। 1971 में जुल्फीकार अली भुट्टो की पहल पर 1973 में तीसरा संविधान लागू किया गया, जो आज तक जारी है, लेकिन 27 वें संशोधन ने उसके लिए भी चुनौती पेश कर दी है। वास्तव में ये सारे कदम पाकिस्तानी सरकार और सेना ने अपनी चौतरफा नाकामियों को ढंकने के लिए उठाए हैं, इसे लेकर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।

