लेंस डेस्क। पाकिस्तान में न्यायिक व्यवस्था और संविधान को लेकर गंभीर संकट पैदा हो गया है। शनिवार को लाहौर हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस शम्स महमूद मिर्जा ने 27वें संवैधानिक संशोधन का विरोध करते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के दो प्रमुख जज जस्टिस सैयद मनसूर अली शाह और जस्टिस अथर मीनल्लाह ने भी इसी संशोधन को संविधान और न्यायपालिका पर आघात मानकर इस्तीफा सौंपा था।
संशोधन का एक और विवादास्पद हिस्सा यह है कि इससे सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को 2030 तक चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज के पद पर बने रहने की छूट मिल गई है। आलोचक मानते हैं कि इससे सैन्य प्रभाव और शक्तियां बढेंगी। वैश्विक संगठन इंटरनेशनल कमीशन ऑफ जुरिस्ट्स ने भी इस संशोधन को न्यायिक स्वायत्तता पर स्पष्ट आक्रमण करार दिया है।
जस्टिस मिर्जा मार्च 2028 में रिटायर होने वाले थे मगर उन्होंने इस संशोधन को देश की न्याय प्रणाली के लिए घातक बताते हुए पद त्यागना बेहतर समझा। उनका यह फैसला पाकिस्तान के न्यायिक इतिहास में महत्वपूर्ण घटना माना जा रहा है क्योंकि हाईकोर्ट के किसी जज का संशोधन विरोध में इस्तीफा पहली बार हुआ है।
संवैधानिक परिवर्तनों के लिए से अधिकारी आसिम मुनीर पर संविधान हथियाने के प्रयास के इल्जाम लगाए जा रहे हैं।
विवाद की जड़ है 27वां संवैधानिक संशोधन जिससे एक नई संघीय संवैधानिक अदालत यानी एफसीसी स्थापित की गई है। यह अदालत अब संविधान संबंधी सभी प्रमुख मुकदमों की सुनवाई करेगी जबकि मौजूदा सुप्रीम कोर्ट को केवल दीवानी और फौजदारी मामलों तक सीमित कर दिया गया है।
न्यायाधीशों का मानना है कि इससे सुप्रीम कोर्ट दूसरी श्रेणी की अदालत बन जाएगी। जस्टिस मनसूर अली शाह ने अपने त्यागपत्र में संशोधन को संविधान पर गहरा प्रहार कहा। उनके विचार से यह परिवर्तन न्यायपालिका को कार्यकारी नियंत्रण में ले आता है और पाकिस्तान की प्रजातांत्रिक ढांचे को कमजोर करता है।

