नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के फतेहपुर ईस्ट कोयला खदान के आवंटन में कथित घोटाले के मामले में कोयला मंत्रालय के पूर्व अधिकारियों एच सी गुप्ता और के एस क्रोफा के साथ ही एक कंपनी और उसके निदेशक एवं प्रबंध निदेशक को बड़ी राहत मिली है।
यह आवंटन कोयला मंत्रालय ने एमएस आरकेएम पावरजेन प्राइवेट लिमिटेड को किया था। गौरतलब है कि कोयला मंत्रालय में एच.सी. गुप्ता सचिव और के.एस. क्रोफा संयुक्त सचिव के पद पर तैनात थे।
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में 31 अक्टूबर के आदेश में विशेष न्यायाधीश धीरज मोर ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला, जो यह साबित करे कि क्रोफा और गुप्ता का कार्य जनहित के बिना था। यह कोयला खदान आवंटन घोटाले से संबंधित हालिया चौथा मामला है जिसमें राउज एवेन्यू के दो विशेष न्यायाधीशों ने सरकारी कर्मचारियों को राहत दी है इनका प्रतिनिधित्व अदालत में अधिवक्ता राहुल त्यागी और मैथ्यू एम फिलिप कर रहे थे।
दो मामलों में उन्हें दिसंबर 2024 और जून 2025 में बरी किया गया था और तीसरे में अप्रैल 2025 में मुक्त किया गया।
मौजूदा मामला नवंबर 2006 में कोयला मंत्रालय द्वारा 38 खदानों के आवंटन के लिए आमंत्रित आवेदनों से संबंधित है। विज्ञापन के बाद कंपनी ने छत्तीसगढ़ के फतेहपुर पूर्वी खदान के लिए 1200 मेगावाट की प्रस्तावित ताप विद्युत संयंत्र के लिए आवेदन किया था।
अगस्त 2014 में केंद्रीय जांच ब्यूरो सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की जिसमें आरोप लगाया गया कि कंपनी ने अपनी कुल संपत्ति को गलत तरीके से दिखाकर आवंटन हासिल किया और सरकारी अधिकारियों ने दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर इसे अनुचित लाभ पहुंचाया।
सीबीआई के अनुसार पात्रता के लिए न्यूनतम कुल संपत्ति 500 करोड़ रुपए थी जबकि आरकेएम पावरजेन की केवल 21.51 करोड़ रुपए थी। सरकारी कर्मचारियों पर साजिश या लाभ के बदले रिश्वत का आरोप नहीं था बल्कि आपराधिक कदाचार का था।
न्यायाधीश ने कहा कि विद्युत मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार प्रति मेगावाट 0.50 करोड़ रुपए कुल संपत्ति वाली कंपनी कोयला खदान आवंटन के लिए पात्र थी। यहां कंपनी का संयंत्र 1200 मेगावाट का था इसलिए मानदंड के तहत 600 करोड़ रुपए की जरूरत थी जो कि चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा गणना की गई 1699.41 करोड़ रुपए से काफी कम है।
यह साबित हो गया कि कंपनी ने अपने आवेदन या फीडबैक फॉर्म में कोई झूठी जानकारी नहीं दी। कोई सबूत नहीं कि आरोपी सरकारी कर्मचारी स्क्रीनिंग समिति या कोयला मंत्रालय को कंपनी द्वारा की गई किसी कथित गलत जानकारी से अवगत थे या किसी जाली दस्तावेज का इस्तेमाल किया गया था।
अदालत ने यह भी साफ किया कि कंपनी ने दस में से नौ मानदंडों में सभी आवेदकों में शीर्ष स्थान प्राप्त किया और आवंटन के लिए सबसे योग्य थी।

