‘कोबरापोस्ट’ नाम के न्यूज पोर्टल पर छपी एक रिपोर्ट में अनिल अंबानी की कंपनी पर बड़ी ‘वित्तीय धोखाधड़ी’ करने का आरोप लगाया गया है। घोटाला भी कोई छोटा मोटा नहीं, बल्कि 28 हजार 874 करोड़ की बैंकिंग धोखाधड़ी का। यानी अगर आरोप को सच मानें तो अनिल अंबानी विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, सुब्रत रॉय आदि से भी बड़े ‘कलाकार’ हैं।
कोबरापोस्ट ने दावा किया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस कैपिटल, रिलायंस होम फाइनैंस जैसी लिस्टेड ग्रुप कंपनियों से बैंक लोन, IPO और बॉण्ड के जरिए जुटाए गए करीब 28,874 करोड़ रुपये निकालकर प्रमोटरों से जुड़ी कंपनियों में भेज दिए गए। आरोप है कि सिंगापुर, मॉरीशस, साइप्रस, अमेरिका और ब्रिटेन में मौजूद विदेशी कंपनियों के जरिए 1.535 बिलियन डॉलर (करीब 13,047 करोड़ रुपये) की अतिरिक्त रकम ‘धोखाधड़ी से’ भारत लाई गई।
उन्होंने भारत के बैंकिंग सिस्टम में सेंध मर ली है और विभिन्न तरीकों से बचे हुए हैं। ने केवल बचे हुए हैं, बल्कि सेलेब्रिटी का स्टेटस पाकर मजे कर रहे हैं। चिंता की बात यह है कि अनिल अंबानी का करीब दो दशकों से यह धतकरम जारी है। उन्हें डिफेन्स सेक्टर का कोई अनुभव नहीं है, लेकिन वे डिफेन्स के प्रोजेक्ट में हाथ डालकर बैठे हैं। मुंबई की मेट्रो ट्रेन की विफलता उनकी नाकामी की पुरानी कहानी है।
अनिल अंबानी की नीयत का सबूत है मुंबई मेट्रो

मुंबई मेट्रो लाइन 1 (वर्सोवा-अंधेरी-घाटकोपर कॉरिडोर) भारत की पहली पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) पर बनी मेट्रो है, जिसे 2007 में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (RInfra, अनिल अंबानी ग्रुप) की सब्सिडियरी मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (MMOPL) को सौंपा गया। MMOPL में RInfra की 74% हिस्सेदारी है, जबकि मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MMRDA) की 26%। यह 12 किमी लंबी लाइन, जो रोज 4.6 लाख यात्रियों को सेवाएं देती है, निर्माण में कई चुनौतियों का शिकार रही।
2007 में बोली जीतने पर MMOPL ने 2,356 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया। लेकिन देरी और विवादों से लागत 84% बढ़कर 4,321 करोड़ हो गई।
परियोजना को 2011 तक चालू करने का लक्ष्य था, लेकिन यह 2014 में ही पूरी हुई – यानी 3 साल की देरी! 2014 की लुईस बर्गर रिपोर्ट (MMRDA द्वारा नियुक्त कंसल्टेंट) ने पलटकर कहा कि ज्यादातर देरी MMOPL की ओर से हुई – बोली में लागत कम आंकी गई, और कई खर्च अतिरिक्त बताए गए जो अस्वीकार्य थे। नतीजा? यात्रियों को सालों इंतजार, और ट्रैफिक जाम की समस्या । अनिल अंबानी की कंपनियां मेट्रो प्रोजेक्ट में फंसीं, लेकिन घोटालों के आरोप मुख्य रूप से फंड डायवर्जन और बैंक फ्रॉड से जुड़े हैं।
कल्पना तो कीजिए, एक शख्स जो कभी दुनिया का छठा सबसे अमीर आदमी था – 42 बिलियन डॉलर की जेबें लहरातीं, प्राइवेट जेट्स पर उड़ान, यॉट्स पर पार्टी और मुंबई के पेंटहाउस में राज! लेकिन वही अनिल अंबानी, आज कर्ज के जाल में फंसा, कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता, और कभी-कभी भाई मुकेश की जेब से उधार लेता नजर आता है।
उनकी कहानी कोई बिजनेस बाइबल नहीं, बल्कि एक हॉलीवुड थ्रिलर है – जहां सनकी फैसले हीरो को विलेन बना देते हैं, और हर ट्विस्ट में गच्चा खाने की गारंटी! बैंकों को चूना लगाने का धारावाहिक!MTN डील – भाई का धोखा, अफ्रीका का सपना टूटा!2008 का दौर था। अनिल अंबानी की सनक चरम पर – वे सोचते थे, “टेलीकॉम में मैं भाई मुकेश को पीछे छोड़ दूंगा!”
साउथ अफ्रीका की MTN कंपनी से 23 बिलियन डॉलर की मेगा डील पक्की हो गई। कल्पना कीजिए, अफ्रीकी बाजारों पर कब्जा, रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCom) का साम्राज्य दोगुना! लेकिन… भाई मुकेश ने कोर्ट में मुकदमा ठोक दिया – “पहले मुझसे पूछो!” सौदा रद्द, अनिल जी का दिल टूटा, और 10 बिलियन डॉलर का नुकसान! सनकी फैसला? हां, क्योंकि अनिल ने फैमिली एग्रीमेंट की धज्जियां उड़ा दीं। गच्चा? पूरा का पूरा! आज भी वो डील उनके ‘बुरे फैसले’ वाली किताब का पहला चैप्टर है।
राफेल डील – डिफेंस में कूदे, लेकिन उड़ान भरी नहीं!
अनिल जी को डिफेंस सेक्टर की चमक भा गई – “मैं भारत का आर्म्स किंग बनूंगा!” 2016 में फ्रांस के साथ राफेल फाइटर जेट्स की 36 हजार करोड़ की डील में उनकी रिलायंस डिफेंस पार्टनर बनी। कोई अनुभव नहीं, लेकिन सनक ऐसी कि ऑफसेट क्लॉज के तहत ठेका हासिल! विपक्ष चिल्लाया – “क्रोनी कैपिटलिज्म!” लेकिन अनिल के लिए ये ‘मेक इन इंडिया’ का सपना था।
नतीजा? कंपनी कर्ज में डूबी, प्रोजेक्ट्स डिले हुए, और 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो केस में 8,000 करोड़ का अवॉर्ड पलट दिया – अब 3,300 करोड़ रिफंड! सनकी? क्योंकि डिफेंस में एंट्री के लिए कर्ज लिया, लेकिन नेवल शिप्स बनाने का सपना अधर में लटका। ED की 35 ठिकानों पर छापे और CBI की FIR! एक समय वो बोर्डरूम में ‘फिटनेस सनकी’ बनकर जिम जाते थे, आज कोर्ट जाते हैं।
पिपावाव डिफेंस खरीदा – कर्ज का जहाज डुबोया!
2015-16 का सनकी मोमेंट: अनिल अंबानी ने पहले से 7,000 करोड़ कर्ज वाली पिपावाव डिफेंस को खरीद लिया। सोचा, “डिफेंस में मैं हल्कुल जैसा बनूंगा!” लेकिन कंपनी का कर्ज 12,000 करोड़ हो गया, प्रोजेक्ट्स रुके, और रिलायंस नेवल इंजीनियरिंग दिवालिया! सनकी फैसला? हां, क्योंकि अनुभव शून्य था, लेकिन महत्वाकांक्षा आसमान छू रही थी। 2020 में ब्रिटेन कोर्ट में ‘मैं कंगाल हूं’ घोषणा, पत्नी टीना की ज्वेलरी बेची! एक समय 115 किलो वजन पर ‘फिटनेस सनकी’ बने, आज कर्ज सनकी!
जियो का तूफान – भाई ने मारा, अनिल डूबे!

2016 में मुकेश अंबानी का जियो लॉन्च – फ्री डेटा, सस्ते प्लान्स! अनिल जी की RCom CDMA टेक्नोलॉजी पर चल रही थी, 4G का इंतजार किया, लेकिन देरी हो गई। सनकी? बिल्कुल, क्योंकि फैसले लेने में टालमटोल – अपग्रेड न किया, Jio ने 8 करोड़ कस्टमर्स छीन लिए! RCom ने 2017 में वायरलेस बंद किया, 2019 में US में सब्सिडियरी दिवालिया। कर्ज? 45,000 करोड़! तीन चाइनीज बैंकों ने लंदन कोर्ट में घसीटा, मुकेश भाई ने आखिरी मिनट में 550 करोड़ दिए बचाने को।
भाई-भाई का खेल, लेकिन अनिल अंबानी हार गए!UMPP प्रोजेक्ट – पावर का सपना, ब्लैकआउट रियलिटी!2000 के दशक में अनिल अंबानी की सनक: ‘अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट’ (UMPP) में झपट्टा! 10 साल डिले, लागत 1.2 लाख करोड़ बढ़ी। सोचा, सस्ती बिजली से राज, लेकिन गैस सप्लाई मुकेश पर निर्भर – कीमत दोगुनी, कोर्ट-कचहरी! सनकी फैसला? हां, क्योंकि एनर्जी सेक्टर में जल्दबाजी, लेकिन एग्जीक्यूशन जीरो। प्रोजेक्ट फेल, कर्ज का पहाड़, और 2025 में SECI ने रिलायंस पावर पर 3 साल का बैन – फर्जी बैंक गारंटी के लिए!
फ्रॉड टैग्स का तांता – बैंक वाले ‘सनकी’ बने!
SBI ने RCom को फ्रॉड घोषित किया (31,580 करोड़ कर्ज), बैंक ऑफ बड़ौदा ने पीछा किया। ED ने 35 ठिकानों पर छापे मारे – 17,000 करोड़ लोन डायवर्जन! अनिल अंबानी चिल्लाए, “मैं सिर्फ नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर था!” लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज। शायद नहीं, लेकिन पुराने फैसलों की सजा! गच्चा? SEBI का 5 साल का मार्केट बैन, और येस बैंक से 5,000 करोड़ का नुकसान। एक समय ‘गेम-चेंजर’ कहलाते, आज ‘फ्रॉड’ टैग!
अनिल अंबानी के फैसले हमेशा ‘बिग बैंग’ स्टाइल के रहे – तेज, चमकदार, लेकिन बिना ब्रेक के! डाइवर्सिफिकेशन की सनक ने कर्ज 1 लाख करोड़ पहुंचा दिया, लेकिन एक्जीक्यूशन में चूक। आज वे डिफेंस सिटी बना रहे (रत्नागिरी में), लेकिन पुराने घाव हरे हैं।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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