रायपुर। माकपा ने चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को छत्तीसगढ़ सहित बारह राज्यों में लागू करने के फैसले का कड़ा विरोध किया है। पार्टी का कहना है कि बिहार में इस प्रक्रिया से समाज के कमजोर वर्गों को मतदान के अधिकार से वंचित किया गया और आयोग ने इसकी तटस्थता व खामियों पर उठे सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया।
माकपा ने छत्तीसगढ़ के चुनाव अधिकारियों की बैठक में कहा कि यह प्रक्रिया नागरिकता निर्धारण के अधिकार क्षेत्र में दखल देती है, जो संविधान के अनुसार आयोग के अधिकार में नहीं है।
पार्टी ने बिहार के अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि आयोग वहां की गलतियों से सबक नहीं ले रहा। बिहार में आयोग को मानना पड़ा कि नामांकन के लिए शुरू में ग्यारह दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है। आधार को भी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद केवल निवास का प्रमाण माना गया।
माकपा का कहना है कि गरीब और कमजोर वर्गों के पास अक्सर ये दस्तावेज नहीं होते, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो रहे हैं।
पार्टी ने मतदाता नामांकन का बोझ मतदाताओं पर डालने की नीति का विरोध किया और कहा कि यह जिम्मेदारी पूरी तरह आयोग की है। माकपा ने आरोप लगाया कि आयोग बिहार में 2003 के दिशानिर्देश साझा करने और सवालों के जवाब देने से बच रहा है, जिससे प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
माकपा ने माना कि मतदाता सूची में त्रुटियां नहीं होनी चाहिए और संशोधन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, लेकिन एसआईआर को नागरिकता निर्धारण का हथियार बनाकर भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए, पार्टी ने इस प्रक्रिया का कड़ा विरोध किया है।
गौरतलब है कि दूसरे चरण में देश 12 राज्यों में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस चरण में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, पुडुचेरी, मध्य प्रदेश, लक्षद्वीप, केरल, गुजरात, गोवा, छत्तीसगढ़ और अंडमान-निकोबार शामिल है।
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने सोमवार को एक प्रेस वार्ता में इन 12 राज्यों में एसआईआर लागू करने की घोषणा की थी। उन्होंने एसआईआर की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि आखिरी बार 2000 से 2004 के बीच एसआईआर की गई थी। इसलिए, लगभग दो दशकों के बाद मतदाता सूची में गलतियों को सुधारने के लिए विशेष गहन संशोधन बेहद जरूरी हो गया है।

