फरीदाबाद में फेक एआई इमेज के जरिये कथित रूप से ब्लैकमेल का शिकार बने 19 साल के एक युवक की खुदकुशी की घटना बेहद तकलीफदेह होने के साथ ही इस नई तकनीक के संगीन खतरों से आगाह भी कर रही है, जिस पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
पता चला है कि पखवाड़े भर पहले इस युवक को किसी ने उसकी बहनों की एआई से बनाई गई अश्लील तस्वीरें भेजकर ब्लैकमेल करने की कोशिश की और उससे पैसे वसूलने चाहे थे। हालांकि इस मामले में उसके कुछ परिजनों पर भी शक जताया गया है और जांच से इसके बारे में पता चलेगा।
दरअसल यह घटना मोबाइल के जरिये हमारी जिंदगी में आ घुसे ऐसे खतरे का संकेत है, जिसका कोई भी आसानी से शिकार बन सकता है। यह प्रचलित साइबर क्राइम से एक कदम आगे का खतरा है, जिसकी गंभीरता को समझने की जरूरत है।
कृत्रिम मेधा यानी एआई को वैसे भी बौद्धिक विकास के लिए तो चुनौती माना ही जा रहा है, इसके जरिये जिस तरह से किसी की भी चलती-फिरती छवियां तैयार कर दी जाती हैं, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका दुरुपयोग किस हद तक किया जा सकता है।
एआई के इस्तेमाल से साइबर फ्रॉड के मामले तो सामने आ ही रहे हैं, इनके जरिये किसी की भी प्रतिष्ठा और छवि को अपूरणीय नुकसान पहुंचाया जा सकता है। आखिर फरीदाबाद के उस परिवार को अपना बेटा खोना ही पड़ गया।
एआई पर जिस तरह से नए नए प्रयोग कर शारीरिक और मानसिक श्रम को कम किया जा रहा है, उतनी ही तेजी से उसके दुरुपयोग के मामले भी सामने आ रहे हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब एआई के जरिये दक्षिण भारत और बॉलीवुड के कुछ फिल्मी सितारों के डीफेक वीडियो के जरिये उनकी छवि खराब करने की कोशिशें हो चुकी हैं।
हाल ही में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने साइबर और एआई जनित अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कुछ नए नियम प्रस्तावित किए हैं। इनके मुताबिक एआई टूल्स के जरिये बनाए जाने वाले कंटेंट पर एआई टैग लगाना अनिवार्य किया जा रहा है, लेकिन इसका संबंध तो आमतौर पर कॉपीराइट जैसी चीजों के लिए है।
दरअसल फरीदाबाद की घटना से साफ है कि एआई का दुरुपयोग पारिवारिक और सामाजिक ताने-बाने को भी खासा नुकसान पहुंचा सकता है। उस युवक की मौत के लिए जो भी जिम्मेदार हों, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाई ही जानी चाहिए, लेकिन इस घटना को सबक की तरह भी लिए जाने की जरूरत है। इसके लिए कड़े एआई प्रोटोकाल के साथ ही व्यापक जागरूकता फैलाने की भी जरूरत है।

