बिलासपुर। यदि पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई हो, तो बेटी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के एक मामले में सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने साफ किया कि मिताक्षरा कानून के तहत, यदि पिता की मृत्यु के समय उनका कोई पुत्र जीवित हो, तो बेटी को संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता। बेटी को संपत्ति का अधिकार तभी मिल सकता है, जब कोई पुत्र न हो।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “मिताक्षरा कानून के तहत यदि कोई हिंदू व्यक्ति 1956 से पहले मर जाता है, तो उसकी स्व-अर्जित संपत्ति पूर्ण रूप से उसके पुत्र को मिलती है। बेटी को ऐसी संपत्ति में अधिकार तभी मिल सकता है, जब कोई पुरुष संतान न हो।
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 1929 ने पुत्र के पूर्ण अधिकार को प्रभावित नहीं किया। इसने केवल उन मामलों में कुछ महिला वारिसों और बहन के पुत्र को शामिल किया, जब कोई पुरुष वारिस न हो।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में, चूंकि सुधिन की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी और वह मिताक्षरा कानून के अधीन थे, उनकी संपत्ति उनके पुत्र बैगदास को मिली।
क्या था मामला
न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने 13 अक्टूबर को दिए गए फैसले में निचली अदालतों के निर्णय को सही ठहराया। यह मामला छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में सुधिन की पैतृक संपत्ति से संबंधित था, जिसमें उनकी बेटी रगमनिया ने हिस्सेदारी मांगी थी।
रगमनिया ने 2005 में एक सिविल मुकदमा दायर कर संपत्ति में हिस्सा और स्वामित्व की मांग की थी। लेकिन चूंकि सुधिन की मृत्यु 1950-51 में हो गई थी, इसलिए निचली और अपीलीय अदालतों ने उनके दावे को खारिज कर दिया, क्योंकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू नहीं था।
उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के अरशनूर सिंह बनाम हरपाल कौर (2020) और अरुणाचला गौंडर बनाम पोनुसामी (2022) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि 1956 से पहले किसी हिंदू पुरुष की संपत्ति केवल पुरुष वारिसों को मिलती थी। बेटी को हिस्सा तभी मिल सकता है, जब कोई पुत्र न हो।
चूंकि सुधिन के एक पुत्र जीवित थे, इसलिए रगमनिया का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं था। कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि उन्होंने कानून का उचित उपयोग किया।

