Trump on Russian Oil: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लगातार दबाव के बीच भारत रूस से कच्चे तेल की खरीदारी को धीरे-धीरे कम करने की दिशा में कदम उठा रहा है। ये दावा रॉयटर्स की रिपोर्ट में किया गया है रिलायंस जैसी बड़ी रिफाइनिंग कंपनियां सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए अपनी रूसी तेल खरीद को समायोजित कर रही हैं। ट्रम्प ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि साल के अंत तक यह खरीद लगभग शून्य हो जाएगी।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं, क्योंकि रूसी तेल सस्ता होने से भारत को वैकल्पिक स्रोतों से महंगे तेल पर निर्भर होना पड़ेगा, जिसका असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ सकता है। ट्रम्प ने हाल ही में रूसी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जो 21 नवंबर 2025 से पूरी तरह लागू होंगे।
व्हाइट हाउस में 22 अक्टूबर को पत्रकारों से बातचीत में ट्रम्प ने पांचवीं बार दोहराया, ‘मैंने कल ही भारतीय पीएम मोदी से फोन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि तेल खरीदारी तुरंत बंद नहीं हो सकती, लेकिन दिसंबर तक इसे जीरो कर देंगे।’ यह 40 प्रतिशत तेल का मामला है, बड़ा कदम है। इससे पहले 19 अक्टूबर को ट्रम्प ने कहा था कि मोदी ने रूस से तेल बंद करने का वादा किया है।
अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीद के बदले 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ भी लगाया है, जो कुल 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। ब्रिटेन ने भी इन रूसी कंपनियों पर सैंक्शन थोपे हैं जबकि यूरोपीय संघ ने रूसी LNG पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। ट्रम्प का मकसद रूस पर युद्ध रोकने का अतिरिक्त दबाव बनाना है लेकिन भारत जैसे आयातक देशों को इससे आर्थिक नुकसान हो सकता है।
भारतीय सरकारी तेल कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम अब अपने शिपमेंट दस्तावेजों की जांच कर रही हैं। वे नवंबर के बाद आने वाले जहाजों के बिलों को स्कैन कर रही हैं ताकि रोसनेफ्ट या लुकोइल से सीधी सप्लाई न हो। 21 नवंबर तक कंपनियों को इन रूसी फर्मों से सभी लेन-देन खत्म करने होंगे, वरना अमेरिकी ट्रेजरी ब्लैकलिस्टिंग या जुर्माने की कार्रवाई कर सकती है।
सितंबर 2025 में भारत ने अपने कुल तेल आयात का 34 प्रतिशत रूस से लिया था, जो पहले आठ महीनों में 10 प्रतिशत घटा है। फिर भी, रिलायंस और नायरा एनर्जी जैसी निजी कंपनियां अपनी खरीद बढ़ा रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद 2022 से भारत ने रूसी तेल को सस्ते दामों पर अपनाया, जिससे 140 अरब डॉलर का फायदा हुआ। यह तेल पेट्रोल-डीजल बनाने में इस्तेमाल होता रहा। लेकिन अब सैंक्शंस से भारत को इराक (21 प्रतिशत आयात), सऊदी अरब (15 प्रतिशत), अमेरिका (7 प्रतिशत) या नाइजीरिया जैसे देशों पर निर्भरता बढ़ानी पड़ेगी। ये विकल्प महंगे हैं, इसलिए रिफाइनिंग लागत चढ़ेगी।
भारत क्यों तेल खरीदी आसानी से बंद नहीं कर रहा?
क्योंकि रूसी तेल अब भी 3-6 डॉलर प्रति बैरल सस्ता है, लंबे कॉन्ट्रैक्ट बंधन हैं (जैसे रिलायंस का 10 साल का डील) और वैश्विक बाजार में स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है। अगर भारत पीछे हटा तो तेल कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक उछल सकती हैं। ट्रम्प ने ओबामा-बाइडेन की नीतियों को दोषी ठहराते हुए कहा कि इनसे रूस-चीन करीब आए, लेकिन भारत के लिए यह आर्थिक संतुलन का सवाल है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सावधानी से आयात घटाएगा ताकि ऊर्जा सुरक्षा बनी रहे।

