Supreme Court on conversion law: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मांतरण कानून पर बड़ा फैसला सुनाया है और कहा कि कानून का दुरुपयोग सहन नहीं किया जाएगा। दरअसल उत्तर प्रदेश के विवादास्पद ‘गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021’ के तहत दर्ज की गईं पांच प्राथमिकी (FIR) को रद्द करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसी शिकायतें केवल पीड़ित व्यक्ति या उनके करीबी रिश्तेदार ही दर्ज करा सकते हैं। तीसरे पक्ष यानी असंबंधित व्यक्तियों द्वारा दाखिल FIR को अमान्य बताते हुए जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा ‘आपराधिक कानून निर्दोषों को तंग करने का उपकरण नहीं है।’
यह फैसला न केवल उत्तर प्रदेश के इस कानून की सख्ती पर सवाल खड़े करता है बल्कि पूरे देश में फैले ‘एंटी-कन्वर्जन’ कानूनों के दुरुपयोग पर ब्रेक लगाने का काम कर सकता है।
मामलों की पृष्ठभूमि
यह फैसला छह याचिकाओं के समूह पर आया, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं। इनमें मुख्य रूप से 2022-2023 के बीच दर्ज FIR शामिल हैं जो कथित सामूहिक धर्मांतरण के आरोपों पर आधारित थीं। ये मामले थे –
FIR 224/2022, फतेहपुर (15 अप्रैल 2022): विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष हिमांशु दीक्षित ने इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया पर 90 हिंदुओं के धोखे से कन्वर्जन का आरोप लगाया जिसमें सैम हिगिनबॉटम विश्वविद्यालय, प्रयागराज के VC डॉ. राजेंद्र बिहारी लाल, निदेशक विनोद बी. लाल समेत कई लोगों के नाम शामिल थे, कोर्ट ने तीसरे पक्ष की शिकायतों के दुरुपयोग को अमान्य ठहराया, जांच में खामियां पाईं और कहा कि धार्मिक सभाएं अपराध नहीं। पहले पुलिस ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की थीं, लेकिन अब सभी केस समाप्त हो गए है।
FIR 47/2023 (20 जनवरी 2023): शिकायतकर्ता सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने नकदी-नौकरी-शादी के लालच का दावा किया लेकिन आरोपी बाद में हिंदू धर्म में लौटे।
FIR 54/2023, 55/2023, 60/2023: ये तीनों 14 अप्रैल 2022 की ही घटना से जुड़ीं, जो कोर्ट ने ‘एक-दूसरे की नकल’ करार दिया।
FIR 538/2023 (प्रयागराज, 11 दिसंबर 2023): हत्या प्रयास, वसूली और कन्वर्जन के आरोपों वाली यह FIR आंशिक रूप से रद्द हुई, यूपी एक्ट के हिस्से को हटाया गया, लेकिन IPC के सीमित आरोपों पर अलग सुनवाई बरकरार।
कोर्ट ने इन FIRs को टी.टी. एंटनी बनाम केरल राज्य (2001) के सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांत से अमान्य ठहराया, जिसमें एक ही घटना पर कई FIR को दुर्भावनापूर्ण माना गया। बेंच ने जोर दिया कि धार्मिक विश्वास ‘व्यक्तिगत और निजी’ मामला है, इसलिए तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप ‘स्वतंत्रता में घुसपैठ’ है।
उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021
उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा 2021 में पारित यह कानून जबरन, धोखे या प्रलोभन से धर्मांतरण को रोकने का दावा करता है। असंशोधित धारा 4 के मुताबिक, FIR केवल पीड़ित, उनके माता-पिता, भाई-बहन या रक्त/विवाह/गोद से जुड़े रिश्तेदार ही दर्ज करा सकते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में, संगठनों जैसे विश्व हिंदू परिषद या बजरंग दल के सदस्यों द्वारा तीसरे पक्ष की शिकायतों का इस्तेमाल अल्पसंख्यक समुदायों खासकर ईसाई मिशनरियों को निशाना बनाने के लिए किया गया। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई अन्य FIR रद्द कर चुका है जिसमें कहा गया कि ‘कानून निर्दोषों को तंग करने का हथियार नहीं।’
धर्मांतरण कानून : राज्यों की स्थिति
कानून के जानकार कह रहें हैं की सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला दूरगामी है और इसका असर व्यापक रूप से पड़ सकता है खासकर इसलिए क्योंकि उत्तराखंड, उडीसा, गुजरात, झारखंड, हिमाचल इन राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून है और राजस्थान व छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारें ऐसे कानून बनाने की घोषणा कर चुकीं हैं।
हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में कथित तौर पर धर्मांतरण का मुद्दा उठाकर अल्पसंख्यक वर्गों को निशाना बनाया गया है इनमें सबसे ताज़ा मामला छत्तीसगढ़ के दुर्ग का है जिसमें केरल की 2 ननों को बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के सदस्यों द्वारा किये गए FIR पर गिरफ्तार कर लिया गया था हालांकि देश भर में विरोध होने के बाद इस पर सुनवाई हुई और आरोपों के निराधार पाए जाने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी लेकिन ये मामला अभी भी तूल पकड़ा हुआ है क्योंकि आदिवासी युवतियों ने महिला आयोग में शिकायत की है और इस पर फैसला आना अभी बाकी है। इसके अलावा और भी कई ज़िलों से ऐसे कई केसेस आये हैं जिसपर FIR दर्ज की गयीं हैं।

