राजधानी दिल्ली में पचास साल से मिट्टी के दीये और सामान बनाकर बेचने वाले एक बुजुर्ग के घर पर ऐन दीवाली से पहले जिस तरह बुलडोजर चलाया गया है, वह विकास के नाम पर मनमानी और बढ़ती संवेदनहीनता का ताजा उदाहरण है। इस सरकारी कार्रवाई के बाद सामने आए एक वीडियो ने विचलित कर दिया है, जिसमें वह बुजुर्ग खुद की छाती पिटते-बिलखते नजर आ रहे हैं।
धनतेरस के दिन पूरे देश में हुई एक लाख करोड़ रुपये के सामानों की खरीद भले ही कोई और कहानी कहे, मगर दीवाली की इस चकाचौंध में वह ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं, जिन तक विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाती। निस्संदेह दीवाली का त्योहार खुशियों और रोशनी का त्योहार है, जिसका अपना लोक और सांस्कृतिक रंग है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह श्रीलंका पर विजय के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटेने का भी दिन है। यह दिन उस राम राज्य को याद करने का भी दिन है, जहां कोई दुखी न हो…. पर क्या लोक में बसी यह कल्पना व्यवहार में भी ऐसी ही है? सच्चाई इससे कोसो दूर है, जिसे इसी से समझा जा सकता है कि देश की कुल संपत्ति का 40 फीसदी हिस्सा शीर्ष एक फीसदी अमीरों के पास सिमट गया है!
बात सिर्फ असमानता की भी नहीं है, बल्कि एक स्वस्थ और जिम्मेदार समाज बनाने की भी है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर की ही बात करें तो वहां के करीब तीन करोड़ लोगों की दीवाली की सुबह भयंकर वायु प्रदूषण से हुई है, जहां एक्यूआई 335 से अधिक दर्ज किया गया।
दीवाली के मौके पर होने वाले प्रदूषण से देश के बड़े हिस्से में कमोबेश कुछ कम ज्यादा ऐसी स्थिति बन जाती है। इसका सर्वाधिक खामियाजा निचले तबके के लोगों को उठाना पड़ता है। समृद्धि और रोशनी के त्योहार दीपावली के मौके पर इस बार हम एक दीया इस संकल्प का भी जलाएं कि किसी के घर अंधेरा न हो और किसी का घर न उजड़े।

