इसी महीने की शुरुआत में रायबरेली में चोरी के शक में भीड़ द्वारा मार डाले गए दलित युवक हरिओम वाल्मिकी के परिजनों से मिलने जा रहे लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का जिस तरह से विरोध किया गया वह दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में बढ़ती राजनीतिक असहिष्णुता का भी उदाहरण है।
राहुल के फतेहपुर पहुंचने से ठीक पहले जिस तरह से हरिओम के भाई औऱ बहन का एक वीडियो सामने आया उससे भी समझा जा सकता है कि यहां प्रशासन कैसे काम कर रहा है। इस वीडियो में हरिओम के भाई और उनकी बहन यह कहते नजर आ रहे हैं कि उनके परिवार को नौकरी दी गई है और राज्य सरकार की कार्रवाई से वे संतुष्ट हैं।
इसके साथ ही वे यह भी कहते हैं कि राहुल गांधी और अन्य नेता उनके यहां राजनीति करने न आएं! इसके बावजूद राहुल गांधी जब उनके घर गए, तो नजारा इसके एकदम उलट था, जहां बेहद भावुक और शोकाकुल माहौल में हरिओम के पिता और मां उनका हाथ थामे नजर आए। इस मुलाकात की जो तस्वीरें आई हैं, वे उस वीडियो में कही गई बातों से मेल नहीं खातीं।
यह भी पता चला है कि राहुल के वहां पहुंचने से पहले हरिओम के भाई और उनकी बहन को सरकारी नौकरियां दी गई हैं, जो निश्चय ही राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार का एक सकारात्मक कदम है, बावजूद इसके कि इससे इस परिवार को हरिओम की मौत से जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई नहीं हो सकती।
ऐसा हर उस दलित परिवार के साथ है, जिन्हें सिर्फ सामाजिक पायदान में निचले क्रम में होने के कारण मानवीय यातना का सामना करना पड़ता है। दरअसल हरिओम के साथ जो कुछ हुआ उसने देश और देश के सबसे बडे सूबे में दलितों की स्थिति को भी उजागर किया है।
नौ साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में दलितों के उत्पीड़न की घटना के बाद कहा था कि गोली चलानी हो तो मुझ पर चलाएं, दलितों पर नहीं। यह दुखद है कि इतने वर्षों बाद भी दलितों का उत्पीड़न नहीं रुका है, तो सवाल किससे किया जाए? आखिर इसे रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी तो सरकार की ही है।

