[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
287 ड्रोन मार गिराने का रूस का दावा, यूक्रेन कहा- हमने रक्षात्मक कार्रवाई की
छत्तीसगढ़ सरकार को हाई कोर्ट के नोटिस के बाद NEET PG मेडिकल काउंसलिंग स्थगित
विवेकानंद विद्यापीठ में मां सारदा देवी जयंती समारोह कल से
मुखर्जी संग जिन्ना की तस्‍वीर पोस्‍ट कर आजाद का BJP-RSS पर हमला
धान खरीदी में अव्यवस्था के खिलाफ बस्तर के आदिवासी किसान सड़क पर
विश्व असमानता रिपोर्ट 2026: भारत की राष्ट्रीय आय का 58% हिस्सा सबसे अमीर 10% लोगों के पास
लोकसभा में जोरदार हंगामा, विपक्ष का वॉकआउट, राहुल गांधी ने अमित शाह को दे दी चुनौती
जबलपुर पुलिस ने ‘मुस्कान’ अभियान के तहत 73 लापता बच्चों को बचाया, 53 नाबालिग लड़कियां शामिल
महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में ₹82 लाख के इनाम वाले 11 नक्सलियों ने किया सरेंडर
HPZ Token Crypto Investment Scam:  दो चीनी नागरिकों सहित 30 के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
सरोकार

एक जूते से जो बात शुरू हुई …

कुमार प्रशांत
कुमार प्रशांत
Byकुमार प्रशांत
Follow:
Published: October 13, 2025 8:15 PM
Last updated: October 13, 2025 4:46 PM
Share
attack on CJI
SHARE

जूता चलाने वाले ने जब अपना काम कर दिया तब, जिन पर जूता फेंका गया था उन्होंने जूते को जूते की जगह दिखा कर, अपूर्व संयम दिखाते हुए अपना सामान्य काम शुरू कर दिया। हमारे सर्वोच्च न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने ऐसा करके हम सबका सर गर्व से ऊंचा कर दिया। हमारे देश की बड़ी कुर्सियों पर आज जैसी क्षुद्रता से भरे लोग बैठे हैं, उसमें गवई साहब का यह स्थिरचित्त व्यवहार स्वप्नवत् लगता है।

गुलीवर को लिलिपुट में भी ऐसे ‘छोटे’ लोग नहीं मिले होंगे, जैसे हमें मिले हैं। छोटा या नाटा होने में और ‘क्षुद्र’ होने में बहुत बड़ा फर्क है, जिस फर्क को इन दिनों जुमलेबाजी से ढकने की चातुरी दिखाई जा रही है। लेकिन क्षद्म भी इतना चरित्रशून्य नहीं होता है कि बहुत वक्त तक क्षद्म चलने दे।

देखिए न, आज एक जूते ने उसे तार-तार कर दिया है। अब जो नंग सामने आई है, उसे प्रधानमंत्री का मौका देख कर, बड़ी देरी से ‘एक्स’ पर जारी किया बयान भी नहीं ढक पा रहा है। वह जूता और प्रधानमंत्री का यह बयान, ‘ यह हर हाल में निंदनीय है और इससे हर भारतीय क्रुद्ध हो उठा है और ऐसे काम की कोई जगह नहीं है’, एक सा-ही दिखाई देता है।

आज से आधी शति पहले, 1973 में लोकनायक जयप्रकाश ने जो कहा था वह आज की सरकार से ऐसे चिपकता है जैसे इनके लिए, कल ही कहा गया हो : ‘ देश के राजनीतिक नेतृत्व की नैतिक हैसियत जब एकदम से बिखर जाती है तब सभी स्तरों पर अनगिनत बीमारियां पैदा हो जाती हैं।’

इसलिए ही सारे देश को क्षुद्रता का डेंगू हुआ है। क्यों ? देश के आज के राजनीतिक नेतृत्व की नैतिक हैसियत एकदम बिखर गई है याकि देश के आज के राजनीतिक नेतृत्व ने नैतिकता को जूता समझ कर किसी पर फेंक दिया है। अब उसके पास न नैतिकता बची है, न जूता !

यह जूता किसी दलित पर नहीं फेंका गया है। जिस पर फेंका गया वह संयोग से दलित है। सच यह है कि यह असहमति पर फेंका गया वह जूता है, जो इस सरकार व इस पार्टी के सभी लोग देश पर लगातार फेंकते आ रहे हैं। घृणा इनके दर्शन की संजीवनी बूटी है। इनकी रोज-रोज की जुमलेबाजी देश को मूर्ख बनाने की बाजीगरी है।

गवई साहब हमारे सर्वोच्च न्यायाधीश हैं। सभी कह रहे हैं, लिख रहे हैं कि वे दलित हैं। कोई यह क्यों नहीं कह रहा है कि न न्याय की कोई जाति होती है, न न्यायाधीश की ? जब दिल व दिमाग से जाति-धर्म-संप्रदाय-लिंग-भाषा-प्रांत की लकीरें मिट जाती है, तब न्याय का ककहरा लिखने की शुरुआत होती है। इसलिए हमें कहना चाहिए कि हमारे गवई साहब न दलित हैं, न सवर्ण हैं। वे हमारी न्यायपालिका के सर्वोच्च न्यायमूर्ति हैं।

हमें गहरा खेद है कि जिसका जूता था उन वकील राकेश किशोर के पास अब वह जूता भी नहीं रहा। एक वही जूताग्रस्त मानसिकता तो थी उन जैसों के पास ! पिछले 10-12 सालों में इस सरकार ने देश के हर नागरिक के हाथ में यही मानसिकता तो थमाई है कि अपना जूता दूसरों पर फेंको !

प्रधानमंत्री से ले कर उनका पूरा मंत्रिमंडल यही करता है; उनकी पार्टी का अध्यक्ष अपनी पूरी पार्टी को साथ ले कर यही करता है। अपना-अपना स्वार्थ साधने के लिए दूसरे कई छुटभैय्ये भी हैं जो इनके साथ हो लिए हैं। बात पुरानी है लेकिन एकदम खरी है कि तुम वही होते हो जिनके साथ तुम रहते हो।

यह गवई साहब पर भी उतना ही लागू होता है जितना चंद्रचूड़ साहब पर होता था। चंद्रचूड़ साहब ने प्रधानमंत्री के साथ मिल कर गणपति वंदना करना जरूरी समझा तो गणपति ने उन्हें ‘मूषक’ बना दिया। अब वे यहां-वहां, हर जगह यह बताते-कहते घूम रहे हैं कि मैं ‘मूषक’ नहीं बना था। लेकिन सौ-सौ चूहे वाली बिल्ली हमने-आपने भी देखी तो होगी ! सो चंद्रचूड़ साहब कहते कुछ हैं, हमें सुनाई कुछ दूसरा ही देता है, दिखाई कुछ तीसरा देता है।

गवई साहब ने मुख्य न्यायाधीश बनते ही कहा था कि वे आंबेडकर को माथे पर धर कर चलते हैं। हमने कोई एतराज नहीं किया, हालांकि होना तो यह चाहिए कि उनके व दूसरे किसी भी न्यायमूर्ति के माथे पर संविधान ही हो- न गांधी हों, न आंबेडकर। लेकिन अब हमें दिखाई कुछ और भी देता है।

गवई साहब सरकारी ‘मूषकों’ के साथ, उनके उड़नखटोले में या उनकी गाड़ी में यहां-वहां बेज़रूरत घूमते हैं; सरकारी होने का कोई भी फायदा वे छोड़ते नहीं हैं। न्यायमूर्ति की सबसे ऊंची कुर्सी से वे भी वैसी ही गोलमोल बातें करते हैं जैसी बातें उस कुर्सी से हम अक्सर ही सुनते रहे हैं। किसी भी मुकदमे के दौरान फैसलों से इतर न्यायाधीश जो टिप्पणियां करते हैं, वे बहुत मतलब की नहीं होती हैं। विष्णु की मूर्ति के संदर्भ में गवई साहब की वह टिप्पणी भी न जरूरी थी, न निर्दोष थी।

हमारी न्यायपालिका आज भी ऐसे ही चल रही है, जैसे देश में कुछ भी असामान्य नहीं है। जिस संविधान व लोकतंत्र की वजह से ही न्यायपालिका का अस्तित्व है, उस पर रोज-रोज हमले हो रहे हैं, यह हमें दिखाई देता है, अदालतों को नहीं।

अदालतों के पास समय बहुत थोड़ा है और हमारा लोकतंत्र बहुत नाज़ुक दौर से गुजर रहा है। वह गुजर ही न जाए, इसकी तत्परता गवई साहब की न्यायपालिका के व्यवहार व आचार में दिखाई नहीं देती है।

संवैधानिक महत्व के मुद्दों को, नागरिक स्वतंत्रता के सवालों को प्राथमिकता के आधार पर सुना जाए और न्यायपालिका को जो भी कहना हो, वह स्पष्ट शब्दों में कहा जाए, ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसा रवैया संविधान को मजबूत नहीं बनाता है, आंबेडकर को जिंदा नहीं करता है।

बिहार में केंद्र सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग ने ‘सर’ का जो ढकोसला खड़ा किया था, उसने चुनावी न्याय को सर के बल खड़ा कर दिया है। उसे न्यायपालिका की सीधी फटकार क्यों नहीं मिली ? ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग व सर्वोच्च न्यायालय के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है।

आधार कार्ड को मतदाता का न्यायसम्मत प्रमाण मानने की बात को जिस कठोरता से अंतिम तौर पर कह देने की जरूरत थी, गवई साहब की अदालत वैसा नहीं कह सकी। इसलिए आयोग रह-रह कर आधार कार्ड का माखौल उड़ता है और कहता है कि आप आधार दो या न दो, हमारे बताए दस्तावेज तो देने ही होंगे। यह मतदाता का अपमान है, न्यायपालिका की खुली अवमानना है।

जूते की बात छोड़िए, लोकतंत्र पर सीधा हमला खरीदे व जुटाए जिस बहुमत की आड़ में हो रहा है, वह बहुमत है ही नहीं। इसके जितने प्रमाण कोई नागरिक जुटा सकता है, उतने प्रमाण सामने रख दिए गए हैं। अब जो काम बचा है वह न्यायपालिका का है, क्योंकि संविधान ने उसे ही यह जिम्मेवारी दी है तथा यही उसके होने की सार्थकता भी है कि वह लोकतंत्र के साथ खड़ा रहे।

आप वह मत करिए जो आपके कमजोर प्रतिनिधियों ने पहले किया है। संविधान ने नहीं कहा है कि आपको संतुलन साधना है, कि आपको बीच का रास्ता निकालना है. सत्य या न्याय संतुलन से नहीं, संविधान के पालन से सिद्ध होता है। चंद्रचूड़ साहब ने अपनी असलियत ढकने के लिए एक बौद्धिक तीर चलाया कि हमारा संविधान नहीं कहता है कि हमारे जजों की निजी आस्थाएं नहीं होनी चाहिए।

हां, हमारे संविधान ने ऐसा नहीं कहा है लेकिन चंद्रचूड़ साहब बड़ी चतुराई से यह छिपा गए कि संविधान ने साफ शब्दों में कहा है कि आपकी निजी आस्थाओं की छाया भी आपके फैसलों पर नहीं पड़नी चाहिए। यह आसान नहीं है, तो जज बनना इतना आसान कहां है। जिस तरह सड़क पर चलता हर ऐरा-गैरा जज नहीं बन सकता, ठीक उसी तरह बड़ी शिक्षा पा कर या विदेशों से डिग्री ला कर या किसी पूर्व जज का परिजन होने से कोईं जज नहीं बन जाता।

जज की कुर्सी पर बैठने से भी लोग जज नहीं बन जाते। यह योग्यता व पात्रता संविधान के साथ खड़े होने की आपकी हिम्मत से आती है। चंद्रचूड़ साहब याद करें तो उन्हें याद आएगा कि आपातकाल में उनके पिता समेट पांच जज थे, जिनमें से चार ने संविधान को रद्दी की टोकरी में फेंक कर, सरकार की खैरख्वाही की थी।

भारतीय न्यायपालिका का मुंह उस दिन जो काला हुआ, वह दाग आज तक नहीं धुला है। चन्द्रचूड़ों ने उसे और भी काला कर दिया है। किसी सरकार के पक्ष या विपक्ष में फैसला देने की बात नहीं है, जो लिखा हुआ संविधान देश की जनता ने आपको सौंपा है, उसका पालन करने की बात है।

जूता चला यह बहुत बुरा हुआ। लेकिन यही जूता वरदान बन जाएगा यदि इसने हमारी न्यायपालिका को नींद से जगा दिया। जूता चलाने की असहिष्णुता जिसने समाज का स्वभाव बना दिया है, वह अपराधी पकड़ा जाए, इसके लिए सन्नद्ध व प्रतिबद्ध न्यायपालिका अपनी कमर सीधी कर खड़ी हो, तो जूते का क्या, वह फिर से पांव में पहुंच जाएगा।

  • लेखक गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष हैं।

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे Thelens.in के संपादकीय नजरिए से मेल खाते हों।

TAGGED:attack on CJICJI BR GavaiLatest_NewsTop_News
Previous Article bihar election 2025 मांझी, कुशवाहा की नाराज़गी से हड़कंप, NDA की साझा प्रेस कॉन्‍फ्रेंस टली, जूनियर मांझी का चुनाव लड़ने से इनकार
Next Article Israel-Hamas war इजरायली संसद में ट्रंप को रोकना पड़ा भाषण, विरोध में दिखाए गए पोस्‍टर, जानिए फिर क्‍या हुआ?
Lens poster

Popular Posts

छत्तीसगढ़ के उपभोक्ताओं पर ‘बिजली’ गिरनी शुरू

रायपुर। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बिजली बिल हाफ योजना का दायरा समेटने के बाद पहली बार…

By दानिश अनवर

व्हाइट हाउस हमले के बाद ‘थर्ड वर्ल्ड’ देशों के नागरिकों की अमेरिका में एंट्री बैन

लेंस डेस्‍क। अमेरिका अब सभी विकासशील और गरीब देशों (जिन्हें वे थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज कहते…

By अरुण पांडेय

जम्‍मू, राजस्‍थान में लगातार धमाके की आवाज, भारत-पाक तनाव के बीच IPL रोका गया, तीन दिन से LOC पर गोलीबारी जारी

नई दिल्ली । भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान ( INDIA PAKISTAN…

By Lens News Network

You Might Also Like

Shashi Tharoor
देश

प्रोटोकॉल दरकिनार कर ट्रंप से मिलने जा पहुंचे सांसद और बेइज्जत हुए

By Lens News Network
Election Commission notice
देश

छह साल से निष्‍क्रिय 334 गैर मान्यता प्राप्त दलों पर तलवार, छत्तीसगढ़ के सात दलों को EC का नोटिस

By अरुण पांडेय
Patna High Court
बिहार

पटना हाईकोर्ट का सख्त आदेश, सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म से हटाएं पीएम की मां का AI वीडियो

By आवेश तिवारी
अन्‍य राज्‍य

कूनो नेशनल पार्क में किलकारी, चीता ‘मुखी’ ने दिया 5 शावकों को जन्म

By पूनम ऋतु सेन

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?