रायपुर। आज हम आपको एक जलाशय के दर्द की कहानी बता रहे हैं… एक ऐसी कहानी, जो निजीकरण की चकाचौंध से शुरू होती है, जहां समाज की धरोहर को उसी समाज से छीन लिया जाता है और इसका अंत एक नदी को मौत के मुहाने पर धकेलने के खतरों के साथ होता है।
यह कहानी उस तथाकथित ‘विकास’ की है जो पूंजी की ताकत से तांदुला नदी को ‘मिनी गोवा’ का सपना दिखाकर उसकी सांसें थाम रहा है। सौ साल से भी पुराना, ब्रिटिश काल में बना तांदुला डैम कभी औद्योगिक जरूरतों का आधार था तो कभी स्थानीय लोगों की जिंदगी की रीढ़, लेकिन आज ये पर्यटकों की चमक-धमक और मौज-मस्ती का हॉटस्पॉट है।
विकास का नया चेहरा तो चमचमा रहा है, लेकिन उस समाज को, जिसकी जमीन पर यह डैम खड़ा है, अपनी ही विरासत से धीरे-धीरे बेदखल किया जा रहा है। चलिए इस रिपोर्ट में बताते हैं आज के आधुनिक विकास की सच्चाई बताती ये रिपोर्ट।
बालोद की जीवनदायिनी तांदुला जलाशय के किनारे बना तांदुला रिसॉर्ट रसूखदारों का पसंदीदा ठिकाना है। दुर्ग, भिलाई, रायपुर और पूरे छत्तीसगढ़ के धनाढ्य लोग यहां का रुख करते हैं। करीब ढाई साल पहले, सिंचाई विभाग ने इस डैम को एक निजी कंपनी को लीज पर देकर यहां रिसॉर्ट बनवाया।
अब ये जगह एडवेंचर बोटिंग, वाटरस्पोर्ट्स और पर्यटन की हर आधुनिक सुविधा से लैस है, जो धीरे-धीरे ‘मिनी गोवा’ का रूप ले चुकी है। प्री-वेडिंग शूट से लेकर शादी की बुकिंग तक लोग इस रिसॉर्ट को खास मौकों के लिए चुन रहे हैं। खासकर वीकेंड्स पर यहां की रौनक और भीड़ देखते ही बनती है।
हमें यहां पर्यटकों से बात करते देखकर इस रिसोर्ट के प्रोजेक्ट मैनेजर हमारे पास आये तो उनसे भी द लेंस की टीम ने इस रिसोर्ट के बारे में कुछ जानकारियां लीं। 43 कमरों वाला यह रिसॉर्ट चौहान ग्रुप ने सिंचाई विभाग से लीज पर लिया है, जिसका कुल एरिया 90 से 95 एकड का है।
राज्य सरकार ने पर्यटन राजस्व और व्यापार को बढ़ावा देने के विजन के साथ यहां हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। मैनेजर ने बताया कि 80 लोगों के स्टाफ में से करीब 50 स्थानीय लोगों को नौकरी में प्राथमिकता दी गई है, जबकि यह रिसॉर्ट वीआईपी मेहमानों की पहली पसंद बन चुका है।
तांदुला डैम के किनारे बने इस रिसॉर्ट की चमक-दमक और साफ-सफाई देखकर यकीन करना मुश्किल है कि यह छत्तीसगढ़ का हिस्सा है। जहां राज्य के अन्य सरकारी पर्यटन स्थलों की हालत खराब दिखाई देती है, वहीं निजी कंपनी को लीज पर दिए गए इस रिसॉर्ट ने इसे रसूखदारों का पसंदीदा ठिकाना बना दिया। लेकिन, इस चमक का दूसरा पहलू भी है।
स्थानीय लोग अब इस खूबसूरत डैम के किनारे को सिर्फ दूर से निहारते हैं। कभी मुफ्त में सुकून देने वाला यह किनारा अब कीमत वसूलता है। पार्किंग से लेकर समय बिताने तक, हर कदम पर पैसे खर्चने पड़ते हैं।
रास्ते में कुछ स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि निजी कंपनी ने पूरे इलाके को लोहे की तारों से घेर दिया है, जिससे अब कोई वहां आसानी से नहीं जा सकता। जो जगह कभी पीढ़ियों से गांववासियों के लिए सुकून का पल बिताने की जगह हुआ करती थी, वह अब उनके लिए नहीं रही।
रिसॉर्ट से कुछ दूर जाने पर इसी रास्ते में एक और बिल्डिंग दिखाई दी जो जर्जर हालत में थी।
प्राइवेट रिसॉर्ट से महज 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने जोहार पर्यटक विश्राम गृह, तांदुला के बारे में न तो किसी स्थानीय को खबर थी, न ही इंटरनेट पर इसका कोई जिक्र। लेकिन इस बिल्डिंग को बनवाने वाले और यहां के अधिकारियों को जरूर पता होगा, क्योंकि इसका निर्माण सरकारी फंड से ही हुआ होगा।
इस इलाके में जल, जंगल और जमीन, तीनों की कोई कमी नहीं है। यहां बॉक्साइट और लोहा प्रचुर मात्रा में मिलता है और यही वजह है कि प्रशासनिक अधिकारी बालोद जिले को अपनी पोस्टिंग के लिए पहली पसंद बताते हैं।
इसके बाद मछुआरों को हो रही दिक्कतों के बारे में बात करने के लिए सिवनी गांव की ओर हम आगे निकले ही थे कि वहां एक नहर दिखाई दी। कुछ लोग वहीं पर ही मछली पकड़ते दिखे। यही वह नहर है, जो भिलाई स्टील प्लांट, दुर्ग-भिलाई शहर और बेमेतरा जिले तक पानी पहुंचाती है।
गेट के जरिए इस पानी को जरूरत के हिसाब से रोका या भेजा जाता है। इस बीच तेज बारिश शुरू हो गई और हमने पास ही एक पुराने पेड़ के नीचे बैठे कुछ स्थानीय लोगों को देखा। उनसे हमने तांदुला रिसॉर्ट बनने के बाद गांववासियों को हो रही परेशानियों के बारे में बात की।
इसके बाद हम सिवनी गांव पहुंचे और मुछआरों की बस्ती में पहुंचकर मछुआरों से बात की।
मछुआरों और स्थानीय लोगों से बातचीत में ये भी पता चला कि मामला सिर्फ रिसॉर्ट के निर्माण तक सीमित नहीं है। तांदुला के सूखा डैम में अब पहले की तरह पानी नहीं भर रहा जैसे पहले ये नदी लबालब रहा करती थी। रिसॉर्ट बनने की वजह से अब जल्दी ही डैम का पानी छोड़ दिया जाता है जिससे भारी बारिश के बावजूद तांदुला नदी सूखती जा रही है।
तांदुला रिसॉर्ट तो मानो बांध के दिल में ही ठाठ से बस गया है। और बस इतना ही नहीं, बांध के भराव क्षेत्र में ही एक चमचमाता वॉटर पार्क भी है। निजी कंपनी अब इस बांध के आसपास अपने हिसाब से कांक्रीट का जंगल खड़ा कर रही है।
ये कहानी सिर्फ तांदुला तक सीमित नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ में कई जगहों पर बांध के किनारे या उनके बीच धड़ल्ले से रिसॉर्ट्स बनाए जा रहे हैं। कोरबा का बूका, सतरेंगा, महासमुंद का कोडार, बिलासपुर का खूंटाघाट, कोटा, धमतरी, बालोद और नवा रायपुर के आसपास ऐसे कई रिसॉर्ट्स की लम्बी फेहरिस्त है।
कभी सरकार ने बनवाकर निजी हाथों में सौंपा, तो कभी सीधे निजी लोगों को पानी की इस धरोहर को सजाने की छूट दे दी। इस पर स्थानीय लोग भी सवाल उठाते हैं। वो असल खूबसूरती जो कभी इन जलाशयों की शान थी, क्या वो अब इन चमकदार रिसॉर्ट्स की चकाचौंध में गुम हो गई है? और जब समाज की संपत्ति से उसी समाज को बेदखल कर दिया जाए तो ये आधुनिक विकास किसके लिए?
तांदुला डैम पर द लेंस की यह वीडियो रिपोर्ट देखें