नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया।
इस मौके पर पीएम ने बताया कि 1963 में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लिया था। यह डाक टिकट और सिक्का संघ के स्वयंसेवकों की समाज को मजबूत करने वाली निरंतर सेवा को दर्शाता है। उन्होंने विशेष सिक्के और टिकट के लिए देशवासियों को बधाई दी।
संघ की प्रशंसा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि आरएसएस की सदी लंबी यात्रा समर्पण, निःस्वार्थ सेवा, देश के प्रति निष्ठा और अनुशासित जीवन का अनूठा उदाहरण है। उन्होंने यह भी कहा कि आज की पीढ़ी सौभाग्यशाली है जो इस ऐतिहासिक शताब्दी समारोह का हिस्सा बन रही है। पीएम ने जोर देकर कहा कि आरएसएस ने अपनी स्थापना से ही राष्ट्र के निर्माण को अपना प्रमुख लक्ष्य बनाया।
पीएम ने कहा कि विजयादशमी के दिन आरएसएस के 100 साल पूरे होना कोई संयोग नहीं है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई, अन्याय पर न्याय और अंधेरे पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि 100 साल पहले दशहरे के दिन स्थापित हुआ आरएसएस हजारों वर्षों की भारतीय परंपरा का पुनर्जनन है। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि हमें इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने का अवसर मिला।
स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस का योगदान
मोदी ने बताया कि आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार स्वतंत्रता संग्राम में जेल गए थे और उनके साथ संगठन के कई स्वयंसेवकों ने भी हिस्सा लिया। 1942 के चिमूर आंदोलन में स्वयंसेवकों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।
स्वतंत्रता के बाद हैदराबाद के निजामों और गोवा, दादरा व नगर हवेली की आजादी के लिए भी संघ ने बलिदान दिए। पीएम ने कहा कि हर परिस्थिति में आरएसएस ने ‘राष्ट्र प्रथम’ के सिद्धांत को अपनाया और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के लक्ष्य को आगे बढ़ाया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौरान भी आरएसएस ने लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में अटूट विश्वास बनाए रखा। उन्होंने कहा कि संगठन के खिलाफ कई बार प्रतिबंध और साजिशें हुईं, लेकिन आरएसएस कभी समाज से अलग नहीं हुआ।
स्वयंसेवकों का मानना है कि वे समाज का हिस्सा हैं, न कि उससे अलग। इस विश्वास ने उन्हें हर कठिनाई का सामना करने की ताकत दी।
डाक टिकट और सिक्के की खासियत

डाक टिकट पर 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल आरएसएस स्वयंसेवकों की तस्वीर है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयंसेवकों को परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था। यह ऐतिहासिक परेड राजपथ (अब कर्तव्यपथ) पर हुई थी।
स्मारक सिक्का शुद्ध चांदी से बना है और इसकी कीमत 100 रुपये है। सिक्के के एक तरफ अशोक स्तंभ और दूसरी तरफ भारत माता की भव्य छवि है, जिसमें वह वरद मुद्रा में सिंह के साथ दिखाई देती हैं। सिक्के पर आरएसएस का बोध वाक्य ‘राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम’ (सब कुछ राष्ट्र को समर्पित, यह राष्ट्र का है, मेरा कुछ नहीं) अंकित है। यह सिक्का और टिकट आरएसएस के राष्ट्र निर्माण में योगदान को रेखांकित करते हैं।