नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
केरल विधानसभा ने सोमवार को राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के भारतीय चुनाव आयोग के कदम के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया और चुनाव आयोग से पारदर्शी तरीके से SIR करने का आग्रह किया।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी यूडीए, जिसने पहले ही एसआईआर के खिलाफ अपनी कड़ी आपत्ति जताई थी, ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा सदन में पेश किए गए प्रस्ताव का समर्थन किया।
प्रस्ताव में मुख्यमंत्री ने एसआईआर को लागू करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा ‘जल्दबाजी में उठाए गए कदम’ के बारे में सदन की चिंताओं से अवगत कराया और उनके इस कदम के पीछे ‘गलत मंशा’ होने का संदेह जताया।
उन्होंने कहा कि इस बात को लेकर व्यापक चिंता है कि चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर कराने का कदम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने का ‘पिछले दरवाजे’ से किया जा रहा प्रयास है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में हाल ही में की गई एसआईआर प्रक्रिया ऐसी चिंताओं की पुष्टि करती है और यह ‘बहिष्कार की राजनीति’ को दर्शाती है।
विजयन ने आरोप लगाया कि बिहार में लागू एसआईआर के कारण मतदाता सूची से लोगों को ‘अतार्किक रूप से बाहर’ किया गया। उन्होंने कहा कि पूरे देश में इस बात को लेकर संदेह है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर भी यही पैटर्न अपनाया जा रहा है।
प्रस्ताव में मुख्यमंत्री ने चुनावी राज्यों – केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में एसआईआर लागू करने के प्रयासों पर सवाल उठाया, जबकि बिहार एसआईआर प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि इसे एक ईमानदार कदम नहीं माना जा सकता।
उन्होंने जोड़ा कि व्यापक आशंका है कि चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर, जिसके लिए दीर्घकालिक तैयारी और परामर्श की आवश्यकता होती है, को जल्दबाजी में लागू करने का प्रयास लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने आगे कहा कि इससे आयोग पर संदेह होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘केरल में स्थानीय निकाय चुनाव जल्द ही होने वाले हैं. उसके तुरंत बाद विधानसभा चुनाव होंगे. ऐसी स्थिति में एसआईआर को जल्दबाजी में कराना गलत इरादे से किया गया है।’
इससे पहले केरल में 2002 में मतदाता सूची का व्यापक संशोधन किया गया था. उन्होंने कहा कि वर्तमान संशोधन 2002 के आधार पर किया जाना ‘अवैज्ञानिक’ है। विजयन ने कहा कि एसआईआर की यह अनिवार्यता कि 1987 के बाद जन्मे लोग केवल तभी मतदान कर सकते हैं जब वे अपने पिता या माता का नागरिकता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें, देश के वयस्क मताधिकार को कमज़ोर करने वाला निर्णय है।
उन्होंने यह भी कहा कि 2003 के बाद जन्मे लोग केवल तभी मतदान कर सकते हैं जब वे अपने पिता और माता के नागरिकता दस्तावेज़ प्रस्तुत करेंगे।
प्रस्ताव में कहा गया है कि इस संबंध में विशेषज्ञ अध्ययनों से पता चला है कि एसआईआर में ऐसे प्रावधानों के कारण समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लोग मतदाता सूची से बाहर हो जाते हैं।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि जिन लोगों को सूची से बाहर रखा जाएगा, उनमें से ज़्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, महिलाएं और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों से होंगे।
विजयन ने प्रस्ताव में यह भी कहा कि मतदाता सूची में आप्रवासी मतदाताओं के मताधिकार को बरकरार रखा जाए।उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम, जो धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, को पुनर्जीवित करने की कोशिश करने वालों द्वारा
एसआईआर के संभावित इस्तेमाल पर भी चिंता व्यक्त की। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि यह लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विधानसभा सर्वसम्मति से मांग करती है कि चुनाव आयोग ऐसे कार्यों से दूर रहे जो लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने यह भी मांग की कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण पारदर्शी तरीके से किया जाए।
कुछ सदस्यों द्वारा सुझाए गए संशोधनों के बाद अध्यक्ष एएन शमशीर ने घोषणा की कि सदन ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया है। ज्ञात हो कि बिहार एसआईआर विवादों के घेरे में है। बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान ड्राफ्ट मतदाता सूची से लगभग 65 लाख लोगों के नाम को हटाया गया है।