छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुक्रवार को एक बड़ी औद्योगिक दुर्घटना में मजदूर और फैक्ट्री के अफसर समेत 6 लोगों की मौत हो गई। औद्योगिक क्षेत्र सिलतरा स्थित गोदावरी इस्पात में गर्म स्लैग के गिर जाने से यह हादसा हुआ। कई मजदूर घायल हुए हैं।
प्रारंभिक खबरें फैक्ट्री प्रबंधन की आपराधिक लापरवाही की कहानी हैं और अभी तक बस एक एफआईआर हुई फैक्ट्री प्रबंधन के खिलाफ पर कोई गिरफ्तारी नहीं। पुलिस ने कहा–जांच चल रही है।
इस बड़े हादसे की खबर दिल्ली तक तो सुनी ही नहीं गई होगी,छत्तीसगढ़ के भी मीडिया के एक बड़े हिस्से में इस खबर का जो ट्रीटमेंट नजर आया वो बताता है कि आज हिंदुस्तान में उद्योगों में काम करने वाली जिंदगियों की किसे परवाह है?
पिछले कुछ महीनों में लखनऊ, अमरोहा, शिवकाशी जैसे शहरों में पटाखा फैक्टरियों में विस्फोट और मजदूरों के परखच्चे उड़ जाने की खबरें किसे याद रहती हैं ? छत्तीसगढ़ में ही औद्योगिक शहर कोरबा में वेदांता उद्योग समूह द्वारा अधिग्रहीत बाल्को में अक्टूबर 2010 में हुआ चिमनी हादसा किसी को याद भी है ?
चालीस से ज्यादा मजदूरों की जान उस हादसे में गई थी लेकिन अदालतें अभी सुनवाएं ही कर रही हैं। पंद्रह साल बाद अभी कुछ महीने पहले ही खबर आई कि अदालत ने इस मामले में पांच प्रमुख कंपनियों को आरोपी बनाने की मंजूरी दी है।
औद्योगिक दुर्घटनाओं में दुनिया में भारत की हालत दयनीय ही है। पिछले वर्ष का एक आंकड़ा बताता है कि 240 औद्योगिक दुर्घटनाओं में 4 सौ से ज्यादा मजदूरों की मौत हुई और इससे दोगुने मजदूर घायल हुए। विश्व इतिहास की भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में आज भी कोई भोपाल गैस त्रासदी को भला कैसे भूल सकता है ?
सवाल बस यही है कि हिंदुस्तान में ऐसे हादसों के सबक क्या हैं ? जवाब में फिर कोई एक खूनी हादसा ही दर्ज मिलेगा!
दरअसल ये नीतियों का मामला है। ये एक ऐसी व्यवस्था का मामला है जिसमें औद्योगिक विकास का मतलब आकर्षक निवेश, भरपूर उत्पादन और बेहिसाब मुनाफा है। ये एक ऐसी मुनाफाखोर व्यवस्था है जिसमें उद्योगों में काम करने वाले बस आंकड़ा हैं। श्रम सुधारों के नाम पर नए श्रमिक विरोधी कानून हैं, एक सरकारी अमला है श्रम विभाग जो उद्योगपत्तियों के पहरेदार से अधिक नहीं दिखता।
भारत में जब से निजी औद्योगिक निवेश की आंधी चली है तब से श्रमिक कल्याण वैसे भी कूड़ेदान की चीज हो गई है। कोई सवाल नहीं करता कि किस उद्योग में श्रमिकों की सुरक्षा के क्या उपाय हैं? कभी कोई जांच सुनाई नहीं देती। अगर होती तो गोदावरी इस्पात में प्रबंधन की लापरवाही पकड़ी जाती और 6 जिंदगियां बच जाती।
वैश्वीकरण के दौर में जिस देश में औद्योगिक विकास की बुनियाद सिर्फ निजी मुनाफा होगा वहां मजदूरों की सुरक्षा, मजदूरों का कल्याण सत्ताधीशों के नारों में भी सुनाई नहीं देगा। देश में नए श्रम कानून किस तरह श्रमिक हड़तालों पर अंकुश लगाते हैं पता कीजिए।
इस देश में मजदूरों ने बड़ी लड़ाइयां लड़ कर अपने काम की स्थितियों को बेहतर बनाया है लेकिन अब यूनियन बनाने से लेकर सामाजिक सुरक्षा तक सब कुछ ऐसा है जिसका मजदूर संगठन विरोध कर रहे हैं।
औद्योगिक हादसों के पीछे महज तात्कालिक लापरवाहियों की तलाश हादसों को रोकेगी नहीं। इस बात को महसूस करना होगा कि अंतहीन निजीकरण, अंधाधुंध आधुनिकीकरण, बेहिसाब निवेश अगर औद्योगिक विकास का एक पहलू है तो दूसरा पहलू मानवीय है यह श्रमिक सुरक्षा से लेकर श्रमिक कल्याण तक का पहलू है।
यह श्रमिकों के अधिकारों, श्रमिक हितैषी कानूनों और श्रमिकों की लड़ाइयों के लिए जरूरी स्पेस का पहलू है। वरना गोदावरी इस्पात जैसे हादसे होते ही रहेंगे।