नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को भारत को तगड़ा झटका दिया हैं।उन्होंने फार्मास्युटिकल प्रोडक्कट पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की है।
गौरतलब है कि अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 45 फीसदी हेनरिक दवाएं भारत से आयात की जाती है। ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म सोशल ट्रथ पर लिखा है कि हम किसी भी ब्रांडेड या पेटेंटेड दवा उत्पाद पर 100 फीसदी टैरिफ लगाएंगे , जब तक कि कोई कंपनी अमेरिका में अपना दवा निर्माण संयंत्र स्थापित न कर रही हो।”
ट्रंप के इस ऐलान के बाद आज आज शुक्रवार को जब भारतीय शेयर बाजार खुले तो फार्मा सेक्टर में दो फ़ीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई। यह विशेष टैरिफ व्यवस्था 1 अक्टूबर से लागू होगी।
अमेरिका में मौजूद कंपनियों पर नहीं पड़ेगा असर
ट्रंप ने कहा कि नए टैरिफ़ का देश में दवा निर्माण संयंत्र स्थापित कर दवाएं बना रही कंपनियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह छूट उन परियोजनाओं पर लागू होगी जहाँ निर्माण शुरू हो चुका है, जिनमें “निर्माणाधीन” और प्रस्तावित परियोजाएं भी शामिल हैं।
250 फीसदी तक बढ़ेगा टैरिफ
ट्रम्प की व्यापक और दंडात्मक टैरिफ घोषणाओं में नवीनतम वृद्धि उस चेतावनी के तुरंत बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि विदेशी फार्मा उत्पादों पर आयात कर 250 फीसदी तक बढ़ सकता है।
अगस्त में यह संकेत दिया गया था कि अब तक की उनकी सबसे ऊँची दर की धमकी शुरुआत में “छोटा टैरिफ” लगाने से शुरू होगी। उन्होंने उस समय CNBS को आगे बताया था कि यह दर एक या डेढ़ साल में अपने “अधिकतम” स्तर पर पहुँच जाएगी, जो 150 फीसदी और फिर अंततः 250 फीसदी तक पहुँच जाएगी।
बिना प्रेस्क्रिप्शन की पर्चियां टैरिफ से बाहर
यह नया खुलासा बुधवार को राष्ट्रीय सुरक्षा जाँचों की एक नई श्रृंखला की घोषणा के ठीक बाद हुआ है। हालाँकि इनमें रोबोटिक्स, चिकित्सा उपकरण और औद्योगिक मशीनरी के आयात शामिल थे, लेकिन दवाइयों को एक अलग जाँच में शामिल बताया गया था।
अमेरिकी वाणिज्य विभाग के अनुसार, “दवाएं, जैसे कि डॉक्टर द्वारा लिखी दवाएं, बिना डॉक्टर के पर्चे के मिलने वाली दवाएं, बायोलॉजिक्स और विशेष दवाएं, इस जांच के दायरे में नहीं आएंगी, क्योंकि उन आयातों की जांच एक अलग धारा 232 जांच के तहत की जा रही है।”
भारतीय दवा निर्माताओं पर भारी असर
कुछ ही दिन पहले, ब्लूमबर्ग के एक विश्लेषण से पता चला था कि दवा आयात पर ट्रंप की 250 फीसदी टैरिफ चेतावनी से भारतीय दवा निर्माताओं पर भारी असर डालेगी।
स्वास्थ्य सेवा खुफिया फर्म सिम्फनी हेल्थ द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश में (2024 तक) सभी गर्भनिरोधक गोलियों का लगभग 65 फीसदी भारत स्थित कंपनियों, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड और ल्यूपिन लिमिटेड द्वारा निर्मित किया जाएगा, जिससे दक्षिण एशियाई देश की “दुनिया की फार्मेसी” के रूप में पहचान बनी रहेगी।
भारतीय दवाओं का बड़ा बाजार
आंकड़ों से यह भी पता चला कि भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में सिर्फ़ गर्भनिरोधक गोलियाँ ही नहीं थीं। उच्च रक्तचाप और अवसाद के इलाज दूसरे नंबर पर थे, जहाँ 50 फीसदी से ज़्यादा अमेरिकी नुस्खे भारतीय विकल्पों से पूरे किए गए।
पिछले साल भारतीय कंपनियों से जुड़े अन्य नुस्खों में कोलेस्ट्रॉल (43 फीसदी ) और अस्थमा व सीओपीडी (27 फीसदी ) शामिल थे।
अमेरिका को होती है भारी बचत
फार्मा डेटा प्रदाता IQVIA के आकलन से पता चला है कि भारत से प्राप्त दवाओं से 2022 में अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को लगभग 220 बिलियन डॉलर की बचत हुई । यह भी बताया गया कि देश में दस में से चार नुस्खे भारतीय ब्रांडों द्वारा वितरित किए गए थे।
जहां तक भारतीय दवा निर्माताओं की अमेरिका पर निर्भरता का सवाल है, विश्लेषण से पता चला है कि सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड और ग्लैंड फार्मा लिमिटेड जैसी कंपनियां अपने राजस्व के एक तिहाई से अधिक के लिए पश्चिमी देश पर निर्भर हैं।