रायपुर। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण रामगढ़ पर्वत के संरक्षण को लेकर पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के महानिदेशक ने राज्य के वन सचिव को इस क्षेत्र की स्थिति की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
सिंहदेव ने अपने पत्र में उल्लेख किया कि हसदेव क्षेत्र में चल रही कोयला खदानों के कारण रामगढ़ पर्वत का अस्तित्व संकट में है। उन्होंने बताया कि वन विभाग ने केते-एक्सटेंशन नामक नई खदान के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया है।
सिंहदेव ने 30 अगस्त 2025 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संबंधित वन सलाहकार समिति के अध्यक्ष सुशील कुमार अवस्थी को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया था।
इस पत्र में सिंहदेव ने रामगढ़ पर्वत और इसके आसपास के क्षेत्र की पारिस्थितिकी से जुड़ी विस्तृत जानकारी साझा की। उन्होंने 2019 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और ICRF, देहरादून द्वारा किए गए जैव विविधता मूल्यांकन का भी हवाला दिया।
सिंहदेव ने बताया कि इन रिपोर्टों के बावजूद, 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद केते-एक्सटेंशन खदान के लिए जनसुनवाई आयोजित की गई, जिसमें 1500 से अधिक आपत्तियां दर्ज की गईं।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरगुजा वन विभाग ने 26 जून 2025 को रामगढ़ पर्वत के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व, जैसे वहां स्थित रामजानकी मंदिर से जुड़े तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए खदान के पक्ष में अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया।
सिंहदेव ने अपने पत्र में बताया कि मौजूदा खदानों की ब्लास्टिंग से पर्वत में कई स्थानों पर दरारें पड़ चुकी हैं। स्थानीय लोगों ने जांच दलों के सामने ब्लास्टिंग से होने वाले कंपन और उनसे उत्पन्न दरारों का मुद्दा उठाया है।
यह क्षेत्र लेमरू हाथी परियोजना के अंतर्गत आता है। वर्ष 2022 में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से इस क्षेत्र में नई खदानों से संबंधित सभी आदेशों को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें भाजपा विधायकों के हस्ताक्षर भी शामिल थे।
हालांकि, सत्ता परिवर्तन के बाद राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों की भावनाओं को दरकिनार करते हुए कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा देने के लिए नई खदान खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी।