देश में फिर एक स्वयंभू धर्माचार्य पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं और वह इन पंक्तियों के लिखे जाने तक फरार ही है।आरोपी स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती है जो दिल्ली के श्री शारदा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन मैनेजमेंट एंड रिसर्च (एसआरआईएसआईआईएम) से जुड़ा था।यह संस्थान कर्नाटक के श्रृंगेरी शारदा पीठम से संबद्ध है।
इस स्वयंभू स्वामी पर इस मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की 17 छात्राओं ने यौन शोषण के आरोप लगाएं हैं।यह स्वामी कमजोर आर्थिक स्थिति वाली छात्राओं को निशाना बनाता था।उनके सामने आपत्तिजनक प्रस्ताव रखता था, यौन सम्बन्धों के लिए प्रलोभन भी देता था।
पार्थसारथी के नाम से भी जाना जाने वाला यह स्वामी इस मैनेजमेंट संस्थान का प्रबंधक भी था लेकिन बताते हैं कि यौन प्रताड़ना के इस मामले के सामने आने के बाद श्रृंगेरी पीठ ने इससे पल्ला झाड़ लिया है और जब तक पुलिस इसे पकड़ पाती यह फरार हो गया।
इस मामले की पहली शिकायत इसी वर्ष जुलाई के अंतिम सप्ताह में संस्थान को भी और पुलिस को भी मिल गई थी।तात्कालिक सवाल तो यह है कि तब से अब तक पुलिस क्या कर रही थी? ऐसे कैसे हुआ कि पहली शिकायत मिलने के बाद जिस समय पुलिस छात्राओं से पूछताछ कर रही थी और 17 छात्राओं ने अपने यौन उत्पीड़न की शिकायतें भी की तब यह स्वामी भाग निकला?
दरअसल आज के समाज की ये एक ऐसी विद्रूप तस्वीर है जिसमें ऐसे स्वयंभू धर्माचार्य अनुयायियों की अपनी ताकत और दान से हासिल अकूत दौलत के भरोसे एक आपराधिक हौसले के साथ अय्याशी की ज़िंदगी जीते हैं। आसाराम से लेकर राम रहीम तक और चर्चों से लेकर मदरसों तक भी शायद ही कोई धर्म ऐसा बचा हो जहां कथित बाबाओं,पादरियों या मौलवियों की ऐसी शर्मनाक करतूतें दर्ज ना हों।
ये दरअसल समाज की चिंता का कारण होना चाहिए।धर्मभीरू समाज में चौतरफा चिंताओं से घिरे लोग अक्सर ऐसे कुकर्मी बाबाओं, पादरियों, मौलवियों के चंगुल में फंसते ही हैं और मुश्किल से मुक्त हो पाते हैं।
दुर्भाग्य से आज हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां ऐसे कुकर्मियों की भी पूजा होती है। ये लोग राजनीति,नौकरशाही और ठेकेदारों के अपवित्र गठजोड़ का संरक्षण भी पाते हैं। जो समाज तर्क, विज्ञान, शिक्षा, अनुसंधान की जगह ढकोसलों, अंधविश्वास, कुतर्कों, धार्मिक उन्माद जैसी प्रवृत्तियों के प्रभाव में बहता हो वहां ऐसे स्वयंभू चैतन्यानंदों का बोलबाला ही होगा।