रायपुर। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ न्यूरो फिजिशियन डॉ. संजय शर्मा (Dr sanjay shrama) ने मंगलवार को अपने पेशे से अलग एक सवाल खड़ा किया कि दुनिया की सबसे प्राचीन विष्णु प्रतिमा छत्तीसगढ़ में है लेकिन इसे यथोचित महत्व क्यों नहीं मिल रहा है ? दरअसल मंगलवार को अचानक ही हुई डॉ. संजय शर्मा की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस इसलिए चर्चा में आ गई कि एक न्यूरोलॉजिस्ट पुरातात्विक महत्व की प्रतिमा को लेकर अपनी चिंताएं साझा करने के लिए प्रेस से बात कर रहे थे।

डॉ.संजय शर्मा भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक माने जाने वाले उस मल्हार के बुढ़ीखार से मिली विष्णु की प्रतिमा की बात कर रहे थे जिसे “भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा ‘प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेषों’ की सूची में शामिल किया गया है.”।

मल्हार रायपुर से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर बिलासपुर जिले में स्थित है। डॉ.शर्मा पुरातत्व के अध्ययन में भी रुचि रखते हैं और विगत 5 वर्षों से इसपर अध्ययन कर रहें हैं, मल्हार में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के स्टोर में रखी भगवान विष्णु की प्रतिमा की चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि इसके महत्व का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह भगवान विष्णु की दुनिया की सबसे प्राचीन प्रतिमा है लेकिन हमारी इस धरोहर से आम लोग ही परिचित नहीं हैं।

उन्होंने इस प्रतिमा के महत्व की चर्चा करते हुए लेखिका नंदिता कृष्णा की महत्वपूर्ण किताब the book of Vishnu को उद्धृत किया जो लिखती हैं कि मल्हार में स्थित भगवान विष्णु की शंख, चक्र और गदा धारण की हुई यह चतुर्भुज प्रतिमा 200 ईसा पूर्व है।यह चार फीट ऊंची प्रतिमा है।

डॉ.संजय शर्मा ने अपनी रुचि की वजह से इस प्रतिमा को लेकर विस्तृत अध्ययन किया और प्रेस से बात की।उनका कहना है कि इस महत्वपूर्ण प्रतिमा को मल्हार में ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( एएसआई ) के एक छोटे से ताला बंद स्टोर में रखा गया है।पुरातात्विक महत्व की इस प्रतिमा को आम लोगों के देखने और जानने के लिए एक गरिमामय डोम बनाकर प्रदर्शित करना चाहिए।यह छत्तीसगढ़ की अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर है।
इस दौरान डॉ.शर्मा के साथ डॉ. संदीप दावे, डॉ. संदीप पांडेय, डॉ. पंकज धाबलिया सहित अनेक वरिष्ठ चिकित्सक भी थे जो चाहते थे कि इस प्रतिमा का समुचित महत्व के साथ उचित संरक्षण हो और आम लोग इसके महत्व को जाने। एक डॉक्टर जिस तरह पुरातात्विक महत्व की प्रतिमा से जुड़ी चिंता साझा करने सामने आए इसे पुरातत्वविदों ने सराहा और इस बात पर सहमति जताई कि इसे उचित रूप से प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

प्रदेश के वरिष्ठ पुरातत्वविद और इतिहासकार प्रो. एल.एस.निगम ने द लेंस से कहा कि इस प्रतिमा के महत्व को देश भर के पुरातत्वविद बखूबी जानते हैं लेकिन आम लोग इससे बहुत परिचित नहीं हैं।
प्रो.निगम ने कहा कि हालांकि एएसआई के स्टोर में रखना प्रतिमा की उपेक्षा करना नहीं है लेकिन यह बिल्कुल जायज मांग है कि इस प्रतिमा को महत्व के साथ प्रदर्शित किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी प्रतिमा है जिस पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरातत्वविद और पुरालेखविद डी सी सरकार, प्रो. के. डी. बाजपेयी, जैसे विद्वानों ने भी आलेख लिखे।इस प्रतिमा का महत्व इसलिए भी है कि यह भारतवर्ष की प्राचीनतम अभिलिखित प्रतिमा है। इसकी भाषा प्राकृत है और लिपि ब्राह्मी है। लिपि के आधार पर ही यह माना गया कि यह द्वितीय /प्रथम ईसापूर्व की है।
प्रो. निगम का कहना है कि कायदे से तो इस प्रतिमा को केंद्रीय संग्रहालय में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि छत्तीसगढ़ में कोई केंद्रीय संग्रहालय नहीं है इसलिए राज्य सरकार चाहे तो भारत ऋण पर मांग कर अपने संग्रहालय में रख सकती है। इसका प्रावधान होता है।