लेंस डेस्क। दिल्ली मिड डे की पूर्व संपादक और पत्रकार वितुषा ओबेरॉय का टोरंटो में निधन हो गया। 14 सितंबर को उनका अंतिम संस्कार ब्रैम्पटन श्मशान घाट पर किया गया।
करीब ढाई दशक तक दिल्ली की पत्रकारिता में सक्रिय रहीं वितुषा ने हर छोटी-बड़ी राजनीतिक घटना को नजदीक से देखा और अपनी बेबाक लेखनी से उसे उजागर किया। करीब डेढ़ दशक पहले वितुषा अपने परिवार के साथ कनाडा चली गई थीं।
लेखक व वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन ने उन्हें याद करते हुए अपनी पोस्ट में लिखा है कि वितुषा ने 2005-07 के बीच सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश वाई.के. सभरवाल के भ्रष्टाचार को अपने अखबार मिड डे में बेनकाब किया था। इस खुलासे के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें और उनके तीन सहयोगियों को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था। लेकिन वितुषा ने हिम्मत नहीं हारी।
उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और आठ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वितुषा और उनके साथियों के खिलाफ अवमानना का कोई मामला नहीं बनता।
यह फैसला भारतीय न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक अनूठी मिसाल कायम की।
वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेरा ने अपनी पोस्ट में वितुषा को याद करते हुए लिखा कि 1989 में दिल्ली के वी.पी. हाउस में उनकी मुलाकात सीपीएम सांसद एम.ए. बेबी से हुई थी, जो उस समय पहली बार राज्यसभा सांसद बने थे।
इस मुलाकात के बाद वितुषा दिल्ली की पत्रकारिता में एक जाना-पहचाना नाम बन गईं। उनकी हंसमुख और मिलनसार प्रकृति, खोजी पत्रकारिता के प्रति जुनून और कठिन परिस्थितियों में भी सच को सामने लाने की हिम्मत ने उन्हें अपने समकालीनों में अलग बनाया। उस दौर में जब पत्रकारिता में महिलाओं की भागीदारी कम थी, वितुषा ने इस चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में अपनी मजबूत पहचान बनाई।