रायपुर। रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज के रिश्वतखोरी के मामले में सीबीआई द्वारा अदालत में दाखिल चार्जशीट में जिस पूर्व आईएफएस और भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (RERA) के अध्यक्ष संजय शुक्ला का नाम शामिल है, वे रेरा की अदालत में बैठकर धड़ल्ले से फैसले सुना रहे हैं।
एफआईआर के बाद से चार्जशीट पेश होने के बाद तक यानी कि 30 जून से लेकर अब तक रेरा में करीब 137 केस की पेशी हुई। इसमें से 50 से ज्यादा केस में फैसला भी हुआ और यह फैसला संजय शुक्ला ने एक सदस्य के साथ मिलकर लिया।
28 अगस्त को चार्जशीट पेश होने के बाद ही अध्यक्ष के तौर पर संजय शुक्ला ने 3 सितंबर को दो मामलों की सुनवाई की है। पहला मामला सचिन नारा विरुद्ध मेसर्स अग्रवाल कंस्ट्रक्शन एंड कान्ट्रक्टर्स और हरबक्श सिंह बतरा है। वहीं दूसरा मामला मीरा देवी और अमृत लाल महाराज विरुद्ध संपदा अधिकारी, हाउसिंग बोर्ड और कार्यपालन अभियंता, हाउसिंग बोर्ड का है। पहले मामले में अग्रवाल कंस्ट्रक्शन एंड कान्ट्रक्टर्स और हरबक्श सिंह बतरा के खिलाफ फैसला है। वहीं, दूसरे मामले में हाउसिंग बोर्ड के खिलाफ फैसला सुनाया है।
पहले एफआईआर और फिर चार्जशीट पेश होने के बाद न तो उनकी गिरफ्तारी हुई है, न ही राज्य सरकार ने उन्हें हटाने की प्रक्रिया ही शुरू की है और न ही रेरा अध्यक्ष, एक संवैधानिक पद होने के नाते राजभवन से ही इस दिशा में किसी पहल की जानकारी है।
भारतीय वन सेवा के 1987 बैच के अफसर संजय शुक्ला के विरुद्ध सीबीआई ने इसी वर्ष 30 जून को एफआईआर दर्ज की थी। एजेंसी ने 28 अगस्त को सीबीआई कोर्ट में चालान भी पेश कर दिया था। यह मामला रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज में अतिरिक्त सीटें हासिल करने के लिए की गई रिश्वतखोरी का था।
इस मामले में रावतपुरा सरकार उर्फ रविशंकर महाराज, रायपुर मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अतिन कुंडू, रेरा चेयरमैन संजय शुक्ला, रावतपुरा मेडिकल कॉलेज के डायरेक्टर अतुल तिवारी, गीतांजलि यूनिवर्सिटी उदयपुर के पूर्व रजिस्ट्रार मयूर रावल, टेक्नीफाई सॉल्यूशंस कंपनी और नई दिल्ली द्वारका एनएमसी के प्रोजेक्ट के डायरेक्टर आर रनदीप नायर, रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज के अकाउंटेंट लक्ष्मीनारायण शुक्ला, एनएमसी के निरीक्षण दल की डॉ. मनजप्पा, डॉ. चैत्रा एमएस, डॉ. अशोक शेल्के, सथीशा और डॉ. चैत्रा के पति रविचंद्र के खिलाफ एफआईआर हुई है।
इनमें अब तक 6 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। हैरानी इस बात की है कि जो प्रभावशाली आरोपी, सार्वजनिक तौर पर नजर आ रहे हैं, सीबीआई ने अब तक उन पर भी हाथ नहीं डाला है। इनमें पूर्व आईएफएस संजय शुक्ला का मामला दिलचस्प है। वे इस समय रेरा जैसी अर्धन्यायिक संस्था के अध्यक्ष हैं और फैसले कर रहे हैं। प्रशासनिक हल्कों में इसे हैरान कर देने वाले उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।
यह सवाल किया जा रहा है कि किसी दागी अफसर द्वारा लिए गए फैसले क्या न्याय सम्मत होंगे? दरअसल, छत्तीसगढ़ गठन के बाद से ही संजय शुक्ला का नाम राज्य के उन अफसरों में शुमार है, जो सरकारों के चहेते माने जाते हैं।
बताते हैं कि छत्तीसगढ़ गठन के बाद से अब तक करीब-करीब 16-17 साल वे वन विभाग की अपनी मूल सेवा से बाहर ही सरकार के ऐसे पदों पर रहे, जहां आमतौर पर सरकारें अपने चहेते या प्रभावशाली अफसरों को ही बैठाया करती है। इनमें काडर पोस्टिंग में आने वाले ऐसे पद भी थे, जहां किसी आईएएस को ही होना था।
संजय शुक्ला डॉ. रमन सिंह के तीनों कार्यकाल में ऐसे ही पदों पर रहे। उन्हें सितंबर 2022 में ही वन विभाग का चीफ बनाया गया था। वे प्रदेश के अकेले ऐसे आईएफएस अफसर रहें हैं जिन्होंने मंत्रालय में प्रमुख सचिव के पद पर भी काम किया। वे 6 साल तक हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर भी रहे। इसके बाद अप्रैल 2023 में कांग्रेस की भूपेश बघेल की सरकार के समय संजय शुक्ला को रेरा का अध्यक्ष बना दिया गया था।
संजय शुक्ला पर आयकर का छापा भी पड़ चुका है। जानकार बताते है कि परिवार के सदस्यों के नाम पर संपत्ति के मामले में उनके विरुद्ध भारी भरकम जुर्माना भी लादा गया था।
इस मामले में वरिष्ठ सेवानिवृत्त आईएएस बीकेएस रे कहते हैं कि उन्हें इस बात की ठोस जानकारी नहीं है कि संजय शुक्ला पर एफआईआर हुई है। उन्हें सोशल मीडिया से इस संबंध में पता चला है। लेकिन, अगर यह जानकारी सही है कि किसी जिम्मेदार संवैधानिक पद पर बैठे किसी अफसर के खिलाफ किसी जांच एजेंसी ने अगर कोर्ट में चार्जशीट पेश कर दी है तो उसे नैतिकता के आधार पर खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए। अगर वह इस्तीफा नहीं देता है तो सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और उन्हें पद से हटा देना चाहिए। यही सुशासन की सही व्यवस्था है।
जो बातें बीकेएस रे कह रहे हैं, यह प्रशासनिक हलकों में आम चर्चा का विषय है।
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