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लेंस संपादकीय

डीजे के शोर में गुम होती आवाजें !

Editorial Board
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Published: September 10, 2025 9:57 PM
Last updated: September 10, 2025 10:00 PM
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हाल ही में पूरे देश में धूमधाम से गणेशोत्सव मनाया गया है और गणेश प्रतिमाओं का मनोरम झांकियों के साथ विसर्जन भी किया गया, लेकिन इस दौरान नियमों औऱ कानूनों की धज्जियां उड़ाकर जिस तरह से तेज आवाजों में डीजे और लाउडस्पीकर बजाए गए वह सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की वजह से चिंता का कारण होना चाहिए।

दरअसल दल लेंस ने एक जाने -माने विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश गुप्ता के साथ इस बार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में गणेश विसर्जन की झाकियों के साथ चलते बुए उसमें बजने वाले डीजे सिस्टम और लाउडस्पीकर के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने की कोशिश की, तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए।

द लेंस की यह रिपोर्ट दिखाती है कि लंबी झाकियों में, जिसमें हजारों लोग शामिल थे, मानव स्वास्थ्य के लिहाज से स्वीकृत डेसिबल सीमा से कहीं अधिक तेज आवाजों में डीजे बज रहे थे। यह बताने की जरूरत नहीं कि ऐसी तेज आवाजों का सिर्फ सुनने की क्षमता पर ही नहीं, बल्कि दिल की बीमारियों पर भी असर पड़ता है और तेज आवाजें मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालती हैं।

छत्तीसगढ़ के ही बलरामपुर में ऐसी ही एक विसर्जन झांकी के दौरान तेज आवाज में बज रहे डीजे के कारण एक 15 साल के बच्चे की मौत हो जाने की घटना का संज्ञान खुद हाई कोर्ट ने लिया है और राज्य सरकार से जवाब मांगा है। वास्तव में पिछले कुछ वर्षों के दौरान विभिन्न राज्यों के हाई कोर्ट और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक और सार्वजनिक आयोजनों, मंदिरों-मस्जिदों में बजने वाले डीजे और लाउडस्पीकर को लेकर कई तरह के आदेश जारी किए हैं, लेकिन इनकी अक्सर अनदेखी कर दी जाती है।

वास्तव में हम ऐसे देश में रहते हैं, जहां ट्रैफिक के सामान्य नियमों तक का लोग पालन नहीं करना चाहते और जहां तेज आवाजों में गाड़ियों के हॉर्न बहुत आम हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों को दौरान धार्मिक और सार्वजनिक आयोजनों, रैलियों और झाकियों में डीजे की आवाजें तेज होती गई हैं, जबकि अदालतें कह चुकी हैं कि लाउडस्पीकर का संबंध किसी धार्मिक आस्था से नहीं है।

बात सिर्फ धार्मिक आयोजनों की भी नहीं है, हाल ही में बिहार के शिवहर में तो शादी से जुड़े एक समारोह में तेज बजते डीजे से आहत होकर एक बच्ची ने दम तोड़ दिया! सवाल उठता है कि इन बेसुरी और कर्कश आवाजों, को जो सही मायने में उत्सवों को कुरूप बना दे रहे हैं, नियंत्रित करने की जिम्मेदारी किसकी है?

हर त्योहारों और धार्मिक आयोजनों से पहले जब लाउड स्पीकर या डीजे के इस्तेमाल के संबंध में निर्देश जारी किए जाते हैं, तो उन पर फिर कड़ाई से अमल क्यों नहीं किया जाता? ध्यान रहे, हम ये सवाल यहां जनस्वास्थ्य को लेकर उठा रहे हैं, धार्मिक आस्थाओं और उत्सव पर नहीं।

देखें लेंस रिपोर्ट:

TAGGED:DJ soundEditorialSuprim Court
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