महज 24 घंटे के भीतर नेपाल में जेन-जी आंदोलन ने ओली सरकार का तख्ता पलट कर देश को भारी हिंसा, आगजनी और अराजकता की अंधी सुरंग में धकेल दिया है। आंदोलनकारी युवाओं ने एक पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खनाल की पत्नी को जिंदा जला दिया, तो ओली सरकार में विदेश मंत्री रहीं एक और पूर्व प्रधानमंत्री देउबा की पत्नी को सरेराह पीट दिया।
प्रधानमंत्री ओली के बाद राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने भी इस्तीफा दे दिया है, ओली सरकार ने कल भड़की हिंसा के बाद फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर से प्रतिबंध हटा लिया था, लेकिन जैसा कि हमने कल भी लिखा था, इस हिमालयी देश में भीतर ही भीतर युवाओं में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और बेरोजगारी को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही थी और नतीजा सामने है।
दरअसल यह लंबे संघर्ष के बाद निरंकुश राजशाही से मुक्ति के बाद नेपाल की सत्ता में आए समूचे राजनीतिक वर्ग की नाकामी का नतीजा है, जिन्होंने सत्ता की जोड़तोड़ में देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियां उड़ा दीं।
1996 से 2006 के बीच माओवादियों के भूमिगत आंदोलन और लंबे गृहयुद्ध के बाद सात दलों के गठबंधन के साथ समझौते से नेपाल में राजशाही खत्म हुई थी और वह हिंदू राष्ट्र से एक गणतांत्रिक देश में बदल गया था। लेकिन उसके बाद वहां पिछले 17 सालों में ताश के पत्तों की तरह सरकारें गिरती रहीं और पंद्रह बार प्रधानमंत्री बदल गए!
इस राजनीतिक अस्थिरता के लिए नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सारे धड़े और नेपाली कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दल भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने वाली कोई दूरगामी नीतियां नहीं बनाई। इसके उलट नेपाली राजनेताओं पर विलासिता पूर्ण जिंदगी जीने और अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने के आरोप आम हैं।
जेन जी आंदोलन का एक चर्चित हैशटैग ही, नेपी किड्स (यानी नेपोटिज्म किड्स) है। आम तौर पर नेपाल का आंदोलन अभी नेतृत्वविहीन दिख रहा है और जैसा कि मीडिया में आ रही खबरों से पता चल रहा है कि ओली सरकार को सत्ता से बेदखल किए जाने को ही ये युवा अपनी जीत मान रहे हैं! ऐसे में इस आंदोलन के दिशाहीन होने का अंदेशा भी है।
वास्तव में नेपाल के इस घटनाक्रम ने भारत के दो अन्य पड़ोसी देशों श्रीलंका और बांग्लादेश में हुए ऐसे ही आंदोलनों की याद दिला दी है, जब वहां के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को देश छोड़कर भागना पड़ा है।
भयंकर आर्थिक बदहाली से जूझता श्रीलंका अब पटरी पर लौटता दिख रहा है, जहां 2024 में हुए चुनाव के बाद राष्ट्रपति बने अनुरा कुमारा दिशानायके के नेतृत्व में राजनीतिक स्थिरता लौट आई है। वहीं बांग्लादेश में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से हालात अब तक सामान्य नहीं हो सके हैं और वहां कोई निर्वाचित सरकार नहीं है।
निस्संदेह चीन और भारत जैसे बड़े देशों के बीच में स्थित नेपाल की स्थिति इन दोनों देशों से भिन्न है। इसके अलावा नेपाल ने राजशाही का न केवल लंबा निरंकुश दौर देखा था, बल्कि इसी साल अप्रैल में वहां राजशाही के पक्ष में फिर से आंदोलन भड़क उठा था।
अभी यह पता नहीं है कि क्या जेन जी आंदोलन के पीछे राजशाही के समर्थक तो नहीं हैं, लेकिन इस वक्त वहां राजनीतिक वर्ग और युवाओं के बीच संवाद और विश्वास का जो गहरा संकट पैदा हो गया है, उसे जल्द से जल्द दूर करने की जरूरत है।
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